स्मार्त संप्रदाय (सामान्य गृहस्थी) 03 दिसंबर शनिवार को और मोक्षदा एकादशी व्रत वैष्णव संप्रदाय 04 दिसंबर रविवार को
वाराणसी । मार्गशीर्ष महीना बहुत पवित्र माना जाता है। मार्गशीर्ष मास लगते ही मनुष्य को स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए। इंद्रियों को वश में कर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या तथा द्वेष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं, परंतु जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। मार्गशीर्ष माह शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। धर्मग्रंथों में मोक्षदा एकादशी का बहुत महात्मय बताया गया है। इस वर्ष सन् 2022 ई. मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 03 दिसंबर शनिवार सुबह 05 बजकर 40 मिनट शुरू होगी और अगले दिन यानी 04 दिसंबर रविवार सुबह 05 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगा। मोक्षदा एकादशी का व्रत स्मार्त संप्रदाय (सामान्य गृहस्थी) 03 दिसंबर शनिवार को और मोक्षदा एकादशी का व्रत वैष्णव संप्रदाय 04 दिसंबर रविवार को होगा।
नोट – जिन लोगों ने स्मार्त संप्रदाय के गुरुओं से दीक्षा ली है वे लोग 03 दिसंबर शनिवार को व्रत रखें।
जिन लोगों ने वैष्णव संप्रदाय के गुरुओं से दीक्षा ली है वे लोग 04 दिसंबर रविवार को व्रत रखें।
वैष्णव : जिन लोगों ने वैष्णव संप्रदाय के गुरुओं से दीक्षा ली हो और गुरु से कंठी या तुलसी माला गले में ग्रहण करता है या मस्तक एवं गले पर चंदन या गोपी चन्दन, श्री खण्ड, त्रिपुण्ड्र, उर्द्धपुण्ड या विष्णुचरण आदि के चिन्ह् धारण किए हो ऐसे भक्तजन ही वैष्णव कहे जाते हैं।
धर्मग्रंथों के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी की पूजा अर्चना करने से समस्त पापों का नाश होता है। एकादशी का व्रत रखने का फल अश्वमेघ यज्ञ और तीर्थ स्थानों में स्नान-दान आदि से मिलने वाले पुण्य से भी अधिक है। मोक्ष की प्रार्थना के लिए यह एकादशी मनाई जाती है। मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती एक दिन ही पड़ती है। इस दिन भगवान कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया था। मोक्षदा एकादशी का अर्थ है मोक्ष प्रदान करने वाली एकादशी। इस एकादशी का उपवास करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होता है। और पूर्वजों को स्वर्ग तक पहुंचने में मदद मिलती है। शास्त्रों के अनुसार मोक्षदा एकादशी की तुलना मणि चिंतामणि से की जाती है, जिसके बारे में माना जाता है कि इससेसभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
इस प्रकार पूजन करें : शारीरिक शुद्धता के साथ ही मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए। मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की दशमी को भोजन के बाद अच्छी तरह से दातून करनी चाहिए ताकि अन्न का एक भी अंश मुंह में न रह जाए। फिर अगले दिन यानी एकादशी के दिन प्रातः काल पति पत्नी संयुक्त रूप से लक्ष्मीनारायण की उपासना करें। इस दिन सुबह स्नान कर पूजा के कमरे या घर में किसी शुद्ध स्थान पर एक साफ चौकी पर भगवान लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद पूरे कमरे में एवं चौकी पर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें।
चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के कलश/घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें, उसमें उपस्तिथ देवी-देवता, नवग्रहों, तीर्थों, योगिनियों और नगर देवता की पूजा आराधना करनी चाहिए। इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक मंत्रो एवं विष्णुसहस्रनाम के मंत्रों द्वारा भगवान लक्ष्मीनारायण सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाह्न, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, तिल, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र, पुष्पांजलि आदि करें। व्रत की कथा करें अथवा सुने तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
इस व्रत को निराहार या फलाहार दोनों ही तरीकों से रखा जा सकता है। व्रत रखने वाले शाम के समय भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं। लेकिन इस व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है। व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर कुछ दान-दक्षिणा जरूर दें।
एकादशी के दिनों में किन बातों का खास ख्याल रखें : एकादशी के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। ब्रहम्चार्य का पालन करना चाहिए। इन दिनों में शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। व्रत रखने वालों को इस व्रत के दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नाखून नहीं काटने चाहिए। व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए। काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए। किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा मानी जाती है। गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते है।
ज्योतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848