डॉ. विक्रम चौरसिया, नई दिल्ली । इंसान को संपूर्ण रूप से विकास के लिए ही समाज की आवश्यकता हुई, जिसकी पूर्ति के लिए समाज की पहली इकाई के रूप में परिवार का उदय हुआ, क्योंकि बिना परिवार के समाज की रचना के बारे में सोच पाना असंभव था व आज भी है, देखे तो समुचित विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, मानसिक सुरक्षा के वातावरण का होना नितांत आवश्यक है। परिवार में रहते हुए परिजनों के कार्यों का वितरण आसान हो जाता है, साथ ही भावी पीढ़ी को सुरक्षित वातावरण एवं स्वास्थ्य पालन पोषण द्वारा मानव का भविष्य भी सुरक्षित होता है। उसके विकास का मार्ग प्रशस्त होता है, आज भी संयुक्त परिवार को ही सम्पूर्ण परिवार माना जाता है।

एकल परिवार स्वयं में एक बहुत ही बड़ी विडंबना है, यहां बच्चों को तो छोड़िए, बड़ों पर अंकुश लगाने वाला कोई नहीं होता है। परिवार में यदि अनुशासन नहीं तो परिवार बिखरते देर नहीं लगती। आज के बढ़ते पारिवारिक झगड़े, तलाक, बच्चों का उद्दंडतापूर्ण व्यवहार, इसका ज्वलंत उदाहरण है। दादा-दादी का संरक्षण एवं स्नेह मिलना तो दूर उनके प्रति बच्चों के दिलो में लगाव उत्पन्न ही नहीं हो पा रहा है। क्योंकि आज के माता-पिता उन्हें अपने साथ रख पाने में असमर्थ हैं, जो साथ हैं भी तो वे भी कुछ घरों में तिरस्कृत है, बच्चा वही सीखेगा जो देखेगा।

परिवार के महत्व व उसकी उपयोगिता को प्रकट करने के उद्देश्य से ही प्रतिवर्ष 15 मई को संपूर्ण विश्व में ‘अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस’ मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने 1994 को अंतरराष्ट्रीय परिवार वर्ष घोषित कर की थी। तब से इस दिवस को मनाने का सिलसिला जारी है। परिवार ही संस्कार व प्यार स्नेह को संभाल कर रखता है तभी तो कहा भी जाता है ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ अर्थात पूरी पृथ्वी हमारा परिवार है। ऐसी भावना के पीछे परस्पर वैमनस्य, कटुता, शत्रुता व घृणा को कम करना है।

याद रहे यदि संयुक्त परिवारों को वक्त रहते नहीं बचाया गया तो हमारी आने वाली पीढ़ी ज्ञान संपन्न होने के बाद भी दिशाहीन होकर विकृतियों में फंसकर अपना जीवन बर्बाद कर देगी। अनुभव का खजाना कहे जाने वाले बुजुर्गों की असली जगह वृद्धाश्राम नहीं बल्कि घर है। छत नहीं रहती, दहलीज नहीं रहती, दर-ओ-दीवार नहीं रहती, वो घर घर नहीं होता, जिसमें कोई बुजुर्ग नहीं होता। ऐसा कौन-सा घर परिवार है जिसमें झगड़े नहीं होते? लेकिन यह मनमुटाव तक सीमित रहे तो बेहतर है, मनभेद कभी नहीं बनने दिया जाए।

vikram
डॉ. विक्रम चौरसिया

चिंतक/आईएएस मेंटर/दिल्ली विश्वविद्यालय 9069821319 इंटरनेशनल यूनिसेफ काउंसिल दिल्ली निर्देशक

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