नयी दिल्ली। विपक्षी सदस्यों के विरोध के बीच सरकार ने सोमवार को लोकसभा में निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया। इसमें मतदाता पत्र और सूची को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रस्ताव किया गया है। विधि और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने निर्वाचन विधि (संशोधन) विधेयक सदन में जैसे ही कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, ऑल इंडिया मजलिसे इत्तहादुल मुस्लमीन ( एआईएमआईएम), रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी ) बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इसका विरोध किया।
कांग्रेस ने विधेयक को विचार के लिये संसद की स्थायी समिति को भेजने की मांग की। विपक्षी सदस्यों की आशंकाओं को बेबुनियाद बताते हुए रिजिजू ने कहा कि सदस्यों ने इसका विरोध करने को लेकर जो तर्क दिये हैं, वे उच्चतम न्यायालय के फैसले को गलत तरीके से पेश करने का प्रयास है। यह शीर्ष अदालत के फैसले के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि सरकार ने जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन का प्रस्ताव इसलिये किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई व्यक्ति मतदाता के तौर पर खुद को एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकरण न करा सके तथा बोगस तरीके से मतदान को रोका जा सके।
सदस्यों को इस विधेयक पर सरकार का साथ देना चाहिए। विधेयक पेश किये जाने का विरोध करते हुए लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह पुत्तुस्वामी बनाम भारत सरकार मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ है। यहां डाटा सुरक्षा कानून नहीं है और अतीत में डाटा के दुपयोग किये जाने के मामले भी सामने आए हैं। चौधरी ने कहा कि इस विधेयक को वापस लिया जाना चाहिए और इसे विचारार्थ संसद की स्थायी समिति को भेजा जाना चाहिए।
कांग्रेस के ही मनीष तिवारी ने कहा कि आधार कानून में भी कहा गया है कि मतदाता पत्र को इस प्रकार से आधार को नहीं जोड़ा जा सकता है। यह इसे वापस लिया जाना चाहिए। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि आधार को आवास स्थान के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है नागरिकता के लिए नहीं।मतदाता पत्र को आधार से जोड़ना अर्थ है गैर नागरिकों को मतदान का अधिकार देना। ऐसा नहीं किया जा सकता।
तृणमूल के सौगत राय ने कहा, “इस विधेयक में उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लंघन किया गया है और मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। इसलिये हम इसका विरोध करते हैं ।” एआईएमआईएम के असदुद्दीन औवैसी ने कहा कि यह संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों और निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है। यह विधेयक गुप्त मतदान के प्रावधान के भी खिलाफ है। आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को जीवन, निजता आदि के अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता हैं।
पुत्तुस्वामी बनाम भारत सरकार मामले में उच्चतम न्यायालय ने बुनियादी अधिकारों पर जोर दिया था।
उन्होंने कहा कि इस मामले में मतदाता सूची को आधार से जोड़ने से संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होता है। उल्लेखनीय है कि निर्वाचन विधि संशोधन विधेयक के माध्यम से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन किया गया है। इस विधेयक के उद्देश्यों में कहा गया है कि मतदाता सूची में दोहराव और फर्जी मतदान रोकने के लिए मतदाता कार्ड और सूची को आधार कार्ड से जोड़ा जाएगा।
विधेयक के अनुसार चुनाव संबंधी कानून को सैन्य मतदाताओं के लिए लैंगिक निरपेक्ष बनाया जाएगा। मौजूदा चुनावी कानून के प्रावधानों के तहत, किसी भी सैन्यकर्मी की पत्नी को सैन्य मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की पात्रता है लेकिन महिला सैन्यकर्मी के पति इसके पात्र नहीं है। प्रस्तावित विधेयक को संसद की मंजूरी मिलने पर यह स्थिति बदल जाएगी। निर्वाचन आयोग ने विधि मंत्रालय से जनप्रतिनिधित्व कानून में सैन्य मतदाताओं से संबंधित प्रावधानों में ‘पत्नी’ शब्द को बदलकर ‘स्पाउस’ (जीवनसाथी) करने को कहा था।
इसके तहत एक अन्य प्रावधान में युवाओं को मतदाता के रूप में प्रत्येक वर्ष चार तिथियों के हिसाब से पंजीकरण कराने की अनुमति देने की बात कही गई है। वर्तमान में एक जनवरी या उससे पहले 18 वर्ष के होने वालों को ही मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की अनुमति दी जाती है। निर्वाचन आयोग पात्र लोगों को मतदाता के रूप में अधिक तिथियों तक पंजीकरण कराने की अनुमति देने के लिए की वकालत करता रहा है। आयोग ने सरकार से कहा था कि एक जनवरी की एक ही तिथि होने के कारण मतदाता सूची की कवायद से अनेक युवा वंचित रह जाते हैं।