चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड का डाटा जारी किया

चुनाव आयोग द्वारा डेडलाइन 15 मार्च 2024 के 1 दिन पूर्व 763 पेज की दो लिस्ट वेबसाइट पर अपलोड की
लोकसभा चुनाव 2024 में वोट देते समय चुनाव आयोग द्वारा जारी 763 पेजों की लिस्ट में उल्लेखित राजनीतिक पार्टियों व कंपनियों को जनता द्वारा रेखांकित करने की संभावना- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में होने वाले लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा 16 मार्च 2024 को दोपहर 3 बजे घोषित हो चुकी होगी! जिसके सटीक अनुमान मैंने मेरे दिनांक 9 मार्च 2024 के आर्टिकल की हेडिंग, लोकसभा चुनाव 2024, तारीखों की घोषणा 14-15 मार्च 2024 को होने की संभावना, सात चरणों में मतदान व अप्रैल के दूसरे सप्ताह में प्रथम चरण का मतदान होने की संभावना के साथ प्रिंट मीडिया व पोर्टेबल चैनलों में प्रकशित हुआ था जो करीब-करीब सटीक साबित हुआ है जो रेखांकित करने वाली बात है। बड़े बुजुर्गों की कहावत है कि पल-पल में स्थितियां परिस्थितियां बदल जाती है इसका अंदाजा भी नहीं लग पाता, जो अब सटीक सिद्ध हो रहा है क्योंकि हमने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि चुनाव आयोग द्वारा खुद राजनीतिक पार्टियों के द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से चुनावी चंदा इतनी बड़ी भारी मात्रा में उठाया जाता है। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर अपलोड डाटा और इमेज से हमने देख कि सत्ताधारी पार्टी ने सबसे अधिक करीब 6000 करोड़ से अधिक दान उठाया है तो बंगाल की पार्टी नें भी भारी मात्रा में दान उठाया है आंकड़े 2019 से 2023 तक दिए हैं जो देखकर मेरा अनुमान है कि भारत ही नहीं एब्रॉड में भी लोगों को हैरानी हुई होगी। अब मेरा मानना है कि चूंकि अब चुनाव अधिकारी ने इलेक्ट्रोल बॉन्ड का डाटा जारी कर दिया है और अब 16 मार्च 2024 को चुनाव की तारीखों की घोषणा भी हो चुकी है, अब उम्मीदवार पर्चा दाखिल करेंगे तो उन्हें अपनी संपत्ति की भी घोषणा करनी होगी तो जनता इन दोनों डाटा को चुनाव में वोट देने से पहले रेखांकित जरूर करेगी ऐसा मेरा मानना है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे लोकसभा चुनाव 2024 में वोट देते समय चुनाव आयोग द्वारा जारी 763 पेजों की लिस्ट को उल्लेखित राजनीतिक पार्टियों व कंपनियों को जनता द्वारा रेखांकित करने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

साथियों बात अगर हम चुनाव आयोग द्वारा दिनांक 14 मार्च 2024 को अपनी वेबसाइट पर जारी इलेक्टोरल बॉन्ड के डाटा की करें तो, चुनाव आयोग ने गुरुवार (14 मार्च) को इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा अपनी वेबसाइट पर जारी कर दिया। वेबसाइट पर 763 पेजों की दो लिस्ट अपलोड की गई हैं। एक लिस्ट में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी है। दूसरी में राजनीतिक दलों को मिले बॉन्ड की डिटेल है। चुनावी बॉन्ड का डेटा 12 अप्रैल 2019 से 11 जनवरी 2024 तक का है। राजनीतिक पार्टियों को सबसे ज्यादा चंदा देने वाली कंपनी फ्यूचर गेमिंग और होटल सर्विसेज पीआर है, जिसने 1,368 करोड़ के बॉन्ड खरीदे। कंपनी ने ये बॉन्ड 21 अक्टूबर 2020 से जनवरी 24 के बीच खरीदे। कंपनी के खिलाफ लॉटरी रेगुलेशन एक्ट 1998 के तहत और आईपीसी के तहत कई मामले दर्ज हैं। सत्ताधारी पार्टी सबसे ज्यादा चंदा लेने वाली पार्टी है। उसको सबसे ज्यादा 6,060 करोड़ रुपए मिले हैं। चुनावी बॉन्ड इनकैश कराने वाली पार्टियों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, एआईएडीएमके, बीआरएस, शिवसेना, टीडीपी, वायएसआर कांग्रेस, डीएमके, जेडीएस, एनसीपी, जेडीयू और राजद भी शामिल हैं।

चुनाव आयोग ने वेब पर चुनावी बॉन्ड का डेटा अपलोड किया है। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को 15 मार्च तक डेटा सार्वजनिक करने का आदेश दिया था। इससे पहले भारतीय स्टेट बैंक ने 12 मार्च 2024 को सुप्रीम कोर्ट में डेटा सबमिट किया था। कोर्ट के निर्देश पर ने चुनाव आयोग को बॉन्ड से जुड़ी जानकारी दी थी। कोर्ट के निर्देश पर एसबीआई ने चुनाव आयोग को बॉन्ड से जुड़ी जानकारी दी थी। दोनों लिस्ट में बॉन्ड खरीदने वालों और इन्हें इनकैश कराने वालों के तो नाम हैं, लेकिन यह पता नहीं चलता कि किसने यह पैसा किस पार्टी को दिया? इस मामले में याचिका लगाने वाले वकील ने सवाल उठाया कि एसबीआई ने वह यूनिक कोड नहीं बताया, जिससे पता चलता कि किसने-किसे चंदा दिया। ऐसे में कोड की जानकारी के लिए वे फिर सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। कांग्रेस ने इलेक्टोरल बॉन्ड के डेटा पर सवाल उठाए हैं। पार्टी ने कहा, दानदाताओं और इसे लेने वालों के आंकड़े में अंतर है। दानदाताओं में 18,871 एंट्री है, जबकि लेने वालों में 20,421 की एंट्री है। पार्टी ने यह भी पूछा है कि यह योजना 2017 में शुरू हुई थी तो इसमें अप्रैल 2019 से ही डेटा क्यों है? आयोग का कहना है कि उसे यह जानकारी एसबीआई से ऐसी ही मिली है। 2019 से 2024 के बीच 1334 कंपनियों लोगों ने कुल 16,518 करोड़ रु. के बॉन्ड खरीदे, 27 दलों ने भुनाए। इस जानकारी को दो हिस्सों में जारी किया गया है। पहले हिस्से में 336 पन्नों में उन कंपनियों के नाम हैं जिन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदा है और उसकी राशि की जानकारी भी दी गई है। जबकि दूसरे हिस्से में 426 पन्नों में राजनीतिक दलों के नाम हैं और उन्होंने कब कितनी राशि के इलेक्टोरल बॉन्ड कैश कराए उसकी विस्तृत जानकारी है।

साथियों बात अगर हम चुनावी बॉन्ड स्कीम के विवाद में आने की करें तो, 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। वहीं विरोध करने वालों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं। बाद में योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।

साथियों बात अगर हम चुनावी इलेक्टोरल बॉन्ड के विवादों में आने की करें तो, सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा- एसबीआई 12 मार्च तक सारी जानकारी का खुलासा करे। इलेक्शन कमीशन सारी जानकारी को इकट्ठा कर 15 मार्च शाम 5 बजे तक इसे वेबसाइट पर पब्लिश करे। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगा दी थी। साथ ही एसबीआई को 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी 6 मार्च तक इलेक्शन कमीशन को देने का निर्देश दिया था। 4 मार्च को एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर इसकी जानकारी देने के लिए 30 जून तक का वक्त मांगा था। इसके अलावा कोर्ट ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की उस याचिका पर भी सुनवाई की, जिसमें 6 मार्च तक जानकारी नहीं देने पर एसबीआई के खिलाफ अवमानना का केस चलाने की मांग की गई थी।

साथियों बात अगर हम चुनावी बांड को जानने की करें तो, चुनावी बॉण्ड प्रणाली को वर्ष 2017 में एक वित्त विधेयक के माध्यम से पेश किया गया था। इसे वर्ष 2018 में लागू किया गया। वे दाता की गुमनामी बनाए रखते हुए पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए व्यक्तियों और संस्थाओं हेतु एक साधन के रूप में काम करते हैं। केवल वे राजनीतिक दल जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं, जिन्होंने पिछले आम चुनाव में लोकसभा या विधानसभा के लिए डाले गए वोटों में से कम-से-कम 1 प्रतिशत वोट हासिल किए हों, वे ही चुनावी बांड हासिल करने के पात्र हैं।

साथियों बात अगर हम मामला सुप्रीम कोर्ट में जाने की करें तो, पहले चुनावी बॉन्ड के जरिए सियासी दलों तक जो धन आता था उसे वो गुप्त रख सकती थीं। लेकिन पिछले दिनों इस पर विवाद हुआ। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी राजनीतिक दलों को इलेक्शन कमीशन के समक्ष इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी देनी होगी। इसके साथ दलों को बैंक डीटेल्स भी देना होगा। अदालत ने कहा है कि राजनीतिक दल, आयोग को एक सील बंद लिफाफे में सारी जानकारी दें। लेकिन ये मामला केवल यहीं नहीं थमा बल्कि इस पूरे चुनावी बांड स्कीम की वैधता को ही चुनौती दी गई। इसमें यही आपत्ति थी कि चुनावी बांड के जरिए कौन पैसा जमा कर रहा है, कितना पैसा जमा कर रहा है और किस पार्टी के लिए जमा कर रहा है, ये सूचना जाहिर होती ही नहीं थी, इस पर आरटीआई लगाने पर ये कहा जाता था कि ये सूचना नागरिकों को सार्वजनिक नहीं की जा सकती। कई सियासी दल भी इसकी पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे थे। वह भी इसकी पारदर्शिता को बढ़ाने पर जोर दे रहे थे।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड का डाटा जारी किया। चुनाव आयोग द्वारा डेडलाइन 15 मार्च 2024 के 1 दिन पूर्व 763 पेज की दो लिस्ट वेबसाइट पर अपलोड की। लोकसभा चुनाव 2024 में वोट देते समय चुनाव आयोग द्वारा जारी 763 पेजों की लिस्ट में उल्लेखित राजनीतिक पार्टियों व कंपनियों को जनता द्वारा रेखांकित करने की संभावना है।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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