एक रुपये की इज़्ज़त का सवाल

डॉ. लोक सेतिया, स्वतंत्र लेखक और चिंतक

इधर लोग अपनी इज़्ज़त की बात लाखों नहीं करोड़ों में करने लगे थे। मानहानि के दावे की रकम की कोई सीमा नहीं थी ऐसे में कोई अपनी अवमानना करने के गुनहगार को जुर्म साबित होने के बाद माफ़ी मांगने को भी कुछ दिन देकर इंतज़ार करने पर विवश होकर एक रुपया जुर्माना लगाने का निर्णय कर खुद ही अपनी वास्तविकता उजागर करता है। हालत यही है अपने अपमान को तोलने लगे तो एक रुपया भी मुमकिन है कड़ी सज़ा लगा है।

दे दो दे दो बाबा को एक रुपया दे दो , ये आवाज़ नहीं सुनाई देती है , अब भिखारी भी नहीं मांगते इक दो रुपया आजकल। सच में देश में महंगाई बढ़ी होगी मगर कुछ संस्थाओं की कीमत घटकर उस जगह पहुंच गई है कि हर कोई खरीद सकता है बेचने वालों ने कमाल कर दिया है देश को कंगाल और कंगालों को मालामाल कर दिया है। मगर कोई चाहे तो इसी को दूसरी तरह से देख सकता है इक रूपये की कीमत क्या है कोई हिसाब लगाएगा कि जुर्माना लगाने पर मुकदमे पर कितना समय और पैसा खर्च हुआ। गणित का सवाल बनता है एक रूपये में हाथी बिकता है बाज़ार भाव में मगर खरीदने वाले को उसको रखने पर लाखों खर्च करने पड़ते हैं तो कितने हाथी कोई महल में रख सकता है।

लेकिन शायद ये घोषित किया जाना ज़रूरी है कि हर कोई किसी की आबरू को एक रूपये में तार तार नहीं कर सकता है सामने के पलड़े में तराज़ू पर एक रुपया किस की जेब से आएगा ये भी विचार किया गया होगा। ये इंसाफ़ का तराज़ू है मगर उसके तोलने के बाट बदलते रहते हैं माथा देख का तिलक लगाने जैसी बात है। कॉमेडी शो ऐसी जगह है जहां मज़ाक मज़ाक में किसी की भी ऐसी की तैसी की जा सकती है मगर कहते हैं हंसना हंसाना आसान नहीं है हंसाना बड़ी अच्छी आदत है मगर किसी और को हंसाने में खुद अपना ही मज़ाक बनाना पड़ता है। आमदनी की बात बहुत होती है हर एपिसोड की कीमत करोड़ों में आंकते हैं और आने जाने वाले से एक करोड़ दे दो ना कहकर भीख भी करोड़ रूपये की मांगते हैं।

रुपया डॉलर के सामने कितना भी नीचे गिरा हो इस से अधिक नहीं गिर सकता कि किसी की इज़्ज़त की सज़ा एक रुपया होने तक पहुंच जाये। न जाने क्यों मुझे इक पुरानी गांव की कहानी जैसी बात याद आई। इक पटवारी गांव की गली से गुज़र रहे थे की गली की कुतिया उनको देख कर भौंकने लगी। पटवारी जी बोले अगर तेरे नाम भी दो बिस्वा ज़मीन लगी होती तब देखता तू मुझ पर कैसे भौंकती। पटवारी की औकात को पहचानने को खुद आपकी हैसियत होनी चाहिए तभी बड़े बूढ़े समझाते थे हर किसी की बात को महत्व नहीं देते हर ऐरे गैरे की बात से परेशान होने से अपना रुतबा घटता है। कुछ बातें सुनकर अनसुनी करना अच्छा होता है कोई आपको अपशब्द कहता है तो आपको भी अपशब्द बोलने की ज़रूरत नहीं है चांद की तरफ थूकने से अपने खुद पर थूक आती है।

मुझे इक घटना याद आई कुछ साल पहले इक बैंक की खिड़की पर वाऊचर भर कर देने पर इक व्यक्ति को सौ रूपये की राशि देने से इनकार किया गया मुझे लगा शायद उसके खाते में पैसे नहीं होने से ऐसा कहा है। मगर बैंक अधिकारी ने बताया कि उसके जमा खाते में छह हज़ार रूपये हैं फिर भी केवल सौ रूपये निकलवाने का अर्थ बैंक को उस भुगतान पर ही इतना खर्च आता है तभी मना किया है। ये अचरज की और अनुचित बात लगी मुझे जिस को जितनी ज़रूरत है अपने पैसे क्यों नहीं निकलवा सकता है। बात तो खुद अपनी ही रुसवाई की है फिर भी बता रहा हूं

मुझे अख़बार वाले दो सौ रूपये का चैक भेजते थे और जब बैंक से निकलवाता तो कैशियर की नज़र मुझे अजीब तरह से देखते लगती थी लेकिन ये तीस साल पहले की बात है अब बात हज़ार रूपये तक की होने लगी है। मगर जाने जिस की अवमानना हुई उसको सौ रूपये पाकर कितनी राहत अनुभव होगी। इक कवि ने हास्य कविता सुनाई थी कौन बनेगा करोड़पति को लेकर। कवि जब हज़ार रूपये की राशि जीते तो अमिताभ बच्चन जी ने सवाल किया इतने पैसे का आप क्या करोगे। उन्होंने बहुत कुछ खरीदने की बात कही तो अमिताभ बच्चन जी बोले आप मज़ाक कर रहे हैं भला हज़ार रूपये में ये कैसे मिलेगा। कवि ने कहा मज़ाक की शुरुआत आपने ही की थी। ये कुछ ऐसी ही बात लगती है मज़ाक करते करते खुद अपना मज़ाक बना लिया है। रुपया हंस रहा कि रो रहा मालूम नहीं उसकी खुद की इज़्ज़त आबरू को क्या हुआ अच्छा हुआ या बुरा हुआ कुछ हुआ तो है।

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