रोजगार विहीन बिहार और पलायन

राजकुमार गुप्त, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता

इस बार के 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्य मुद्दा “रोजगार विहीन बिहार और पलायन होगा।” मजे की बात यह है कि आजादी के बाद शुरुआती दौर में 40 वर्षों तक कांग्रेसियों का बिहार पर शासन रहा फिर लगभग 4 वर्षों तक सोशलिस्ट पार्टी और जनता पार्टी बाद के 15 वर्षों तक लालू जी की आरजेडी फिर लगभग 12 वर्षों तक जेडीयू और बीजेपी, बीच के लगभग 2 साल जेडीयू ने मांझी जी के साथ शासन किया, यानी कुल 73 सालों में सबसे अधिक कांग्रेसियों ने 40 साल और लगभग 33 साल गैर कांग्रेसियों ने शासन किया और इस तरह से देखा जाए तो राज्य को पिछड़ा बनाए रखने में लगभग सभी दलों का ही हाथ है।

अब अगर आज बिहार के मतदाता चुनावी मौसम में सभी प्रत्याशियों से यदि यह सवाल करते हैं कि अन्य राज्यों की तुलना में बिहार पिछड़ा क्यों है अथवा इसका औद्योगिकरण अब तक क्यों नहीं हो पाया या फिर शिक्षा या स्वास्थ्य के क्षेत्र में राज्य क्यों पिछड़ा हुआ है? जबकि यहां के मतदाताओं ने बारी बारी से लगातार सभी को मौका दिया था।

यह बात ठीक है कि बिहार एक लैंड लॉक राज्य है परंतु यह तो प्रशासन की जिम्मेदारी थी कि मास्टर प्लान बनाकर औद्योगिकरण किया जाता या फिर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में विकास किया जाता और सबसे बड़ी बात यहां के बाहुबलियों द्वारा गरीबों, पिछड़ों और दलितों का शोषण किया जाना भी एक कारण है और इन बाहुबलियों की सभी राजनीतिक दलों पर गहरा प्रभाव है अतः इनसे भी निपटने में आज तक कोई भी दल ठीक से कामयाब नहीं हो पाया।
आज की परिस्थिति में बिहारियों के लिए आगे कुआं तो पीछे खाई है करे तो क्या करें? पलायन मजबूरी थी और है या फिर कह सकते हैं की ये एक अभिशाप की तरह बिहारियों के पीछे पड़ा हुआ है।

लॉक डॉउन के दौरान प्रवासी बेशक अपने प्रदेश में चले आए हो परंतु स्थिति थोड़ी भी सामान्य होने पर वापस अपने-अपने कर्मस्थल की ओर लौटने को मजबूर होंगे कारण कोरी आश्वासनों से पेट नहीं भरा करते अर्थात निकट भविष्य में भी बड़े पैमाने पर पलायन रुकता नहीं दिख रहा है न ही बिहार की राजनीति में इस मुद्दे पर ठोस कदम उठाने या कड़े निर्णय लेने वाला कोई राजनेता फिलहाल दिख रहा है।

अतः लगता नहीं कि निकट के कुछ वर्षों में भी बिहार को पलायन से जल्दी मुक्ति मिलने वाली है और यह पलायन सिर्फ रोजी रोजगार का ही नहीं पढ़ाई लिखाई से लेकर स्वास्थ्य सुविधाओं का भी है। आज सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक किसी में भी इस मुद्दे पर बात करने की हिम्मत नहीं होगी कारण इस स्थिति के लिए सभी बराबर के भागीदार हैं।

नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत हैं । इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।

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