ये सवाल कभी शायद खुद आपने भी अपने आप से किया हो। यूं ये सवाल दुनिया भर के लोग औरों से करते हैं। बेशक ऐसे लोगों को अपनी क़ाबलियत पर गरूर होता है और बाक़ी लोग उनको नाकाबिल लगते हैं। आज जो बात मुझे कहनी है उसका मकसद अलग है भले सब दुनिया आपको नासमझ और नादान या किसी काम का नहीं मानती हो आपको अपने को लेकर ज़रा भी दुविधा मन में नहीं रखनी चाहिए।
सबसे पहले तो किसी को किसी और को जांचने परखने का अधिकार क्यों हो उनको जो खुद अपने को शायद नहीं परखना चाहते औरों को अच्छा खराब घोषित करते हैं और खुद को लेकर सोचना जानते ही नहीं। दुनिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है जो अपनी नज़र में हर तरह से शानदार हैं।
होंगे भी मगर उनको इक बात की समझ नहीं है कि कोई भी आदमी सभी कुछ नहीं हासिल कर सकता फिर भी सभी में कुछ अच्छाई भी होती है जिसकी पहचान उनको नहीं होती है और ऐसे लोग कमियां ढूंढते हैं अच्छाई नहीं देख पाते हैं।
अब उस सवाल का जवाब आपको किसी को नहीं देना खुद सोचना है और समझना भी है। जिनको लेकर समझा जाता है सत्ता पाकर सब कुछ हासिल किया है और काबिल हैं सफल हैं नाम है शोहरत है।
वास्तव में देखेंगे तो उन्होंने देश समाज को कुछ भी नहीं दिया होता है। जनता ने उनको भरोसा कर जनकल्याण और देश समाज की सेवा करने को निर्वाचित किया था शासक बनकर सत्ता का मनमाना उपयोग करने का अधिकार नहीं दिया था। लेकिन सत्ता की लूट जारी रही है लोग बदलते रहे हैं। हुआ करते थे कभी जो लोग इक आदर्श थे अपना तन मन धन देश समाज को अर्पण किया करते थे। आजकल खुद को गरीब परिवार का बताने वाले और गरीबी क्या है ये समझने का दम भरने वाले देश की गरीबी का उपहास करते हैं
अपनी शान रहन सहन अपने तमाम ऊंचे ख्बाब जनता के धन से पूरे करते हैं। करोड़ों रूपये अपने गुणगान पर बर्बाद करते हैं। कितने झूठ बोलते हैं जिस बात को कभी अनुचित बताते थे सत्ता मिलते खुद और बढ़चढ़कर करते हैं। कोई नैतिकता कोई मर्यादा का पालन नहीं करते सत्ता और ताकत पाने को। देश सेवा जनता की सेवा भाषण तक वास्तव में अपने अपने दल अपनी संस्था संगठन या अपने ख़ास लोगों को खज़ाने की लूट की छूट देने का काम किया करते हैं। उन के चाहने वाले उनकी आलोचना नहीं पसंद करते बचाव में कहते हैं तो क्या फलां नेता को सत्ता सौंप दी जाये , अब उनको कोई नहीं समझा सकता कि सत्ता किसी दल की भी विरासत नहीं है न किसी भी परिवार की बपौती है।
सवा सौ करोड़ में काबिल ईमानदार बहुत लोग मिल सकते हैं और अगर हमने देश की समाज की भलाई करनी है तो दल जाति धर्म परिवार की बात छोड़ केवल सच्चे ईमानदार लोगों को चुनना होगा जिनको आजकल के लोभी सत्ता के भूखे नेताओं की तरह लाखों करोड़ों अपने ऐशो आराम पर खर्च करना देशभक्ति नहीं लगता हो। मुझे ऐसे लोग कभी अच्छे नहीं लगते जो खुद आपने आप को महान घोषित करवाने को किसी भी सीमा तक जा सकते हैं।
मुझे कई साल पहले मेरे जन्म दिन पर बेटे अनुराग ने इक डायरी भेंट की थी जिस के पहले पन्ने पर लिखा था। हिंदी में अनुवाद किया है इंग्लिश में लिखा हुआ है।
Popularity is a crime from the moment it is sought; it is only a virtue where men have it whether they will or no.
-जॉर्ज सविले इक राजनेता के शब्द हैं।
” शोहरत उसी पल इक गुनाह बन जाती है जब आप उसकी इच्छा रखते हैं। ये आपके उच्च नैतिकता वाले आचरण पर है कि आपको सफलता और शोहरत हासिल होती है या नहीं। “
लेकिन अगर हमने जनता ने देश की मालिक होने के बावजूद भी खुद अपनी चाहत हासिल करने को किसी और का पैसा या सार्वजनिक धन का उपयोग नहीं किया है ये हम कर सकते हैं कभी नहीं। हम सभी साथ साथ चैन से रहते हैं आपसी मतभेद अपनी जगह। हमने अपने विरोधी या आलोचक को नुकसान पहुंचाने का काम नहीं किया है।
जबकि शासक ऐसा अधिकतर करते हैं और अपने गुणगान करने वालों को चाटुकार लोगों को बढ़ावा देते हैं जो सत्ता का अनुचित इस्तेमाल और खतरनाक है क्योंकि ऐसे अंध समर्थक कुछ भी करते देखे गए हैं। हम अपनी आलोचना को अपना अपमान नहीं समझते हैं। हम समझते हैं जब कोई कड़वा सच बोलता है निडर निष्पक्षता से विचार रखता है।
मगर शासक वर्ग को सच अखरता है सत्यमेव जयते देश का आदर्श वाक्य है। समाज की वास्तविकता को दर्शाना हर नागरिक का फ़र्ज़ है और शिक्षित हैं तो समाज को सच बताना अपना कर्तव्य समझना चाहिए । बहुत लोग हर शासक की महिमा बढ़ाई कर के बदले में अपनी आकांक्षा पूरी करते देखे हैं आजकल टीवी चैनल अख़बार यही करने लगे हैं। सत्ताधारी सरकार अपना पक्ष रखती है तमाम तरह से साधन उसके पास हैं और वो हमेशा यही बताते हैं हमने क्या क्या किया वह भी पूरा सच शायद ही बताते हैं।
और जो करना चाहिए था मगर नहीं किया उस पर पर्दा डालने का काम किया जाता है। देश की जनता को वास्तविकता मालूम होनी चाहिए और सरकार जो नहीं करती वो भी पता होना चाहिए। सत्ता के लिए किसी भी तरह के हथकंडे अपनाना देश हित की बात नहीं हो सकती है। आजकल देश की राज्यों की सरकारें आये दिन अनावश्यक आयोजन करने पर सरकारी साधनों और पैसे तथा मशीनरी का दुरूपयोग करते हैं।
शायद उनको याद दिलवाना चाहिए ऐसा करने पर जून 1975 में अलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित किया था ये भी भष्टाचार है तब भी आज भी। अपनी बात से असहमत लोगों की भी राय का आदर करना जो नेता जानते थे उनकी तारीफ उनके विपक्षी भी करते थे। मतभेद होना लोकशाही में ज़रूरी है अन्यथा तानाशाही बन जाती है।
इस बात को समझने को इक मिसाल देना चाहता हूं। आपने अपने घर खाना बनाने को खेत में काम करने को या किसी भी तरह कोई सेवक रखा हो तो क्या वो अपना काम करने को अपनी महानता बताएगा। वास्तव में उसे सही ढंग से और जो समझा कर नियुक्त किया था संतोषजनक कार्य नहीं करने पर आपको हक होगा आदेश देने का कि अगर सही ढंग से काम नहीं करना तो आपकी ज़रूरत नहीं है।
देश से इतना तगड़ा वेतन सुविधाएं पाने के बाद भी जनता ही बदहाल हो तो ये कैसे जनसेवक कैसी कल्याणकारी सरकार है, कभी अपने मतलब की खातिर झूठ को सच बनाते हैं कभी देश समाज में नफरत फैलते हैं। सच देखा जाये तो देश की जनता अच्छी सच्ची और ईमानदार है मगर नेता सरकार अधिकारी कर्मचारी खुद अच्छा वेतन पाने के बाद भी कर्तव्य सच्ची ईमानदारी से निभाना नहीं चाहते।
नागरिक को बेबस और मज़बूर करते हैं उनके सामने हाथ जोड़ अधिकार भी खैरात की तरह मांगने को। जिस देश की आधी आबादी भूखी बदहाल है उस देश का शासक अगर खुद अपने पर हर दिन लाखों खर्च करता है करोड़ों रूपये व्यर्थ के आयोजन आडंबर और अपनी शानो-शौकत पर बर्बाद करता है तो उसे मतलबी और संवेदनारहित ही समझा जाएगा। और ऐसे मुखिया के नीचे के लोग भी उसकी तरह मनमानी करेंगे ही।
नोट :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत हैं । इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।