सच सच बताओ क्या हमारे देश की स्वस्थ्य व्यवस्था जैसी है विश्व भर की उसी जैसी होनी चाहिए। जाने किस बात पर लोग ख़ुशी जतला रहे हैं कि भारत के स्वस्थ्य मंत्री विश्व स्वास्थ्य संगठन का दायित्व संभालेंगे। मुझे नहीं लगता है हमारे देश की स्वास्थ्य और शिक्षा की हालत इस से खराब हो सकती थी।
कितने साल से सरकारों ने अपना पल्ला झाड़ लिया था और निजि कारोबार वालों को खुली छूट दी हुई थी। इतना ही नहीं कड़वा सच ये भी है कि हमारी सरकार विश्व स्वाथ्य संगठन को झूठे आंकड़े देती रही है और कभी भी डब्लू एच ओ की दी सलाह पर गौर नहीं किया है। ऐसे लोग जो कोई भी हों हर्षवर्धन या कोई और उनसे डब्लू एच ओ का कोई भला नहीं होने वाला है।
हम लोग जानते ही नहीं पर्दे के पीछे का खेल क्या होता है। मनमोहन सिंह के समय अनुबमणी रामदॉस ने जो ऐम्स के निदेशक रहे थे ने संसद में इक कानून बनवाने की कोशिश की जिस में हर डॉक्टर क्लिनिक नर्सिंग होम अस्पताल के लिए मापदंड तय होने के साथ उपचार जांच आदि को लेकर कितने चार्जेज हो सकते हैं सब का निर्धारण किया जाना था।
किस के पास क्या सुविधा है कितना और कैसा स्टाफ है उसके आधार पर वर्गीकरण किया जाना था और उसी आधार पर ही सभी को किस तरह का अस्पताल है, सर्वोत्तम अच्छा मध्यम निम्न और निकृष्ट श्रेणी का घोषित किया जाना था। मगर उस को संसद में पेश करने से पहले मीडिया में लीक किया गया और उसके बाद उस कानून को किसी समिति को भेजने के बाद स्वस्थ्य मंत्री को ही हटवा दिया गया।
सच बोलेंगे तो लोग खफा हो जाएंगे मगर जो लूट और मनमानी करते हैं और जिनके पास सही में कोई उचित साधन नहीं होते न ही पूरा स्टाफ और सही ढंग उपचार का अपनाते हैं उन्होंने अपनी दुकानें बंद होने से बचाने को शहर शहर से पैसा जमा किया और चंदा या घूस देकर सरकार को कठपुतली बनाने वाले खुश किया और अपना मकसद हासिल किया।
आपको याद नहीं होगा कुछ समय पहले हरियाणा ने भी हॉस्पिटल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट को सख्ती से लागू करने की घोषणा की मगर फिर वही हुआ पीछे कदम हटा लिए। घोषणा की गई पचास बिस्तर से अधिक के अस्पताल पर लागू होगा जबकि 90 फीसदी लोग जाते हैं उन नर्सिंग होम क्लिनिक अस्पताल जहां पचास से कम बिस्तर हैं। जो बड़े अस्पताल हैं वहां केवल पैसे वाले ही जा सकते हैं।
जिनको अपने देश की व्यवस्था को सुधारना नहीं ज़रूरी लगा तो डब्लू एच ओ का क्या भला करेंगे। मगर हम मूर्ख लोग खुश होते है ऐसी बातों से जिनसे हमारा कोई भला नहीं होता है। टीवी वाले आपको हर दिन क्या समझाते हैं। अमुक देश की हालत हमसे खराब है। ये क्या मानसिकता है। अपने देश की कमियों को समस्याओं को उजागर करने की जगह पर्दा डालते हैं। और हम खुश होते हैं अंधे होने से काना होना अच्छा है।
नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत हैं । इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।