ऊंचे पर्वत पर खड़े हुए बौने लोग

डॉ. लोक सेतिया, विचारक

कुछ ऐसा ही लग रहा है जैसे कोई किसी की बड़ी रेखा को छोटा कर दिखाने को अपनी सामने बड़ी रेखा नहीं खींच कर जिस की बड़ी लग रही है उसे मिटा कर छोटा करने की कोशिश कर रहे हैं।। अपने धर्म अपने कर्म को ऊंचे मापदंड पर पहुंचाने की बात को दरकिनार करते हुए हम औरों के धर्म और कर्मों की गलतियां ढूंढते हुए उन्हें बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं।।

ऐसा करते समय सबसे पहले तो खुद अपने ही धर्म और संस्कृति की शिक्षाओं को भूलकर उनका अनादर कर रहे हैं क्योंकि हमारे धर्म और संस्कृति में दोषारोपण करने को अनुचित कहा गया है और यह समझाया गया है कि अपने खुद को ऊंचे मापदंडों पर खरे साबित करने के लिए बुराई करने की नहीं अच्छाई तलाश करने का प्रयास करना चाहिए।।

इधर तो जिन देवी-देवताओं की पूजा करते हैं सोशल मीडिया पर उनको किसी वस्तु की तरह उपयोग कर रहे हैं।। इतने अनुचित और अनावश्यक संदेश भगवान और देवी देवताओं को लेकर प्रसारित प्रचारित कर रहे हैं कि समझ नहीं आता कि क्या हम अपने पूजनीय समझे जाने वाले संतों मुनियों द्वारा सिखाई बातों को भुला चुके हैं। शायद फिर से हम सभी को अपने ही धर्म और संस्कृति को एक बार दोबारा से पढ़ कर विचार करना होगा कि हम धर्म को किस सीमा तक क्षतिग्रस्त कर रहे हैं।।

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