durga puja

बंगालियों के लिए दुर्गा पूजा उत्साह, उमंग और आनंद का महापर्व है

“अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्द नुते।
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते।।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥“

नई दिल्ली। आदरणीय बानी कुमार द्वारा सृजित और पंडित बीरेंद्र कृष्ण भद्र की आध्यात्मिक वाणी और पंकज कुमार मलिक द्वारा संगीतबद्ध महिषासुर मर्दिनी की वंदना और यशगान आकाशवाणी के माध्यम से महालयाअमावस्या तिथि को सुनना आज भी एक अलौकिक अनुभूति है विशेष कर बांग्ला भाषियों के लिए। वस्तुतः महालया अमावस्या पितरों की विदाई व देवी भगवती के आगमन का संधिकाल माना जाता है।

महालया के दिन ही मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखें तैयार करता है। मान्यता है कि इसी दिन मां दुर्गा कैलाश पर्वत से सीधे धरती पर यानि अपने मायके आती हैं और यहां नौ दिन तक धरती लोक में वास करती है तथा अपनी कृपा का अमृत अपने भक्तों पर बरसाती हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन अत्याचारी राक्षस महिषासुर का संहार करने के लिए भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान महेश ने मां दुर्गा के रूप में एक शक्ति सृजित किया था। जिसके बाद मां आदिशक्ति देवी दुर्गा का रूप में प्रकट हुई। नौ दिनों तक देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ। 10वें दिन मां दुर्गा ने दुष्ट राक्षस महिषासुर का वध कर दिया।

इसी उपलक्ष्य में हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तक शारदीय नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि धर्म की अधर्म पर और सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक है।

मां दुर्गा शाक्त सम्प्रदाय की मुख्य देवी हैं। मां दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती परब्रह्म बताया गया है। वह अंधकार व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली, ममतामई, मोक्ष प्रदायनी तथा कल्याणकारी हैं। उनके बारे में मान्यता है कि वे शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का विनाश करतीं हैं। नवरात्रि के नौ दिन शक्ति की साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। यह पर्व लोगों को आध्यात्मिक रूप से जागृत करने और उन्हें देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।

शेष भारत के लिए शारदीय नवरात्र नियम, संयम, व्रत का पर्व है लेकिन बंगालियों के लिए दुर्गा पूजा उत्साह, उमंग और आनंद का महापर्व है। जैसे शेष भारत के लोग अपने जीवनकाल में 80-90 बसंत जीने का सपना देखते हैं, वैसे ही एक आम बंगाली का सपना अपने जीवनकाल में 80-90 दुर्गा पूजा देखने का होता है। उनके लिए दुर्गा पूजा, मां के धरती पर आगमन की खुशी का महोत्सव है। इसीलिए दुर्गा पूजा की तैयारी महीनों पहले से शुरू हो जाती है।

मैं तीन वर्ष कोलकाता में रहा। कोलकाता में वायुसेना स्टेशन बैरकपुर के पास स्थित पलता के दुर्गा पूजा पंडाल की तैयारी भी पूरे एक महीने पहले शुरू हो जाती है। यूथ क्लब पलता के सदस्य घर-घर जाकर पूजा की पर्ची काटना शुरू कर देते थे। दुकानों, टैक्सियों और रिक्शा चालकों की भी पर्ची काटी जाती थी। यूथ क्लब पलता के सदस्य प्रति वर्ष पिछले साल की अपेक्षा अधिक टाका (रुपए) की पर्ची यह कहकर काटते थे कि इस बार पंडाल पिछले वर्ष की अपेक्षा अधिक भव्य और विशिष्ट बनेगा, इसलिए कम से ₹100 ज्यादा तो देना ही पड़ेगा।

प्रति वर्ष पंडाल की थीम बदल जाती है। कभी ताजमहल, कभी व्हाइट हाउस, कभी राम मंदिर तो कभी चंद्रयान, मंगलयान की थीम पर पंडाल बनेगा। बंगालियों को कोई कितना भी कोमल कहे, आलसी कहे लेकिन कलाकारी, सजावट और नफासत में उनका आज भी पूरे देश में कोई सानी नहीं है।

थीम पर आधारित पंडाल का संतोषजनक ढंग से निर्माण कार्य पूरा हो जाने के बाद फोटोग्राफी की जाती है। यूथ क्लब इसके 1000-1500 फोटो छपवा लेता है। दुर्गा पूजा के दौरान पंडाल देखने आने वालों को यही फोटो ₹100 की वीआईपी एंट्री के बदले मिलते हैं।

महालया के दिन (पंचमी तिथि को) मुहूर्त के अनुसार घट स्थापना और कलश स्थापना होगी। पंडित बीरेंद्र कृष्ण भद्र की आध्यात्मिक वाणी में मां महिषासुर मर्दिनी की वंदना और यशगान होगा। फिर देवी माँ को अपने बच्चों के साथ कैलाश से अपने पैतृक घर (पृथ्वी) की यात्रा शुरू करने के लिए निमंत्रण दिया जाएगा। यह निमंत्रण मंत्रों के जाप और “जागो तुमी जागो” और “बाजलो तोमार आलोर बेनु” जैसे भक्ति गीत गाकर किया जाएगा। उसके पश्चात पायल डे, सुभश्री गांगुली जैसी विभिन्न कलाकार मां दुर्गा का महिषासुर मर्दिनी रूप विभिन्न टीवी चैनलों पर सजीव करेंगी।

देवी भागवत पुराण कहता है –
शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे।
गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥
अर्थात रविवार और सोमवार को भगवती हाथी पर आती हैं,
शनि और मंगलवार को घोड़े पर,
बृहस्पति और शुक्रवार को डोली पर,
बुधवार को नाव पर आती हैं।
गजेश जलदा देवी क्षत्रभंग तुरंगमे।
नौकायां कार्यसिद्धिस्यात् दोलायों मरणधु्रवम्॥
अर्थात् दुर्गा हाथी पर आने से अच्छी वर्षा होती है,
घोड़े पर आने से राजाओं में युद्ध होता है।
नाव पर आने से सब कार्यों में सिद्धि मिलती है
और
यदि डोली पर आती है तो उस वर्ष में अनेक कारणों से बहुत लोगों की मृत्यु होती है।

पंडिताई का कार्य करने वाले भट्टाचार्य दादा पत्रा देखकर और गणना करके बता रहे हैं कि चूंकि इस बार नवरात्रि गुरुवार (03 अक्टूबर) से प्रारंभ हो रही इसलिए मां दुर्गा डोली (पालकी) पर सवार होकर आएंगी। हालाँकि यह देश और समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है क्योंकि इससे बीमारी और महामारी फैलने का भय रहता है।

षष्टी के दिन से पंडाल सभी के लिए खुल जाएगा। उसी दिन से पंडाल के बाहर फलों, आइसक्रीम, गोलगप्पा, झालमुड़ी, संदेश, रसगुल्ला, अंडा, माछ-भात, तंबाकू, सिगरेट की दुकाने सजने लगेगी। पूरे देश में कमाने गए बंगाली साल भर दुर्गा पूजा के लिए छुट्टी बचा कर रखते हैं और इस महीने का इंतजार करते रहते हैं। ऑफिस में लड़ाई हो जाए, वेतन कट जाए, चाहे नौकरी चली जाए लेकिन दुर्गा पूजा में ‘दादा’ को घर जाना है तो जाना है।

बैरकपुर के रॉयचौधरी परिवार का बेंगलुरु में रहने वाला इंजीनियर लड़का अपनी पत्नी और इकलौते बेटे के साथ तथा दिल्ली में डॉक्टरी की प्रैक्टिस करने वाली बिटिया अपने पति और अपने छोटी बिटिया के साथ घर वापस जाने की योजना बना चुके हैं, दो महीने पहले ही टिकट बुक कर लिया है।

पूरे कोलकाता के विद्यालयों में दुर्गा पूजा से लेकर काली पूजा तक पूरे एक महीने की छुट्टी रहेगी। इसलिए रॉय चौधरी परिवार और मुहल्ले के बच्चों की उपस्थिति के कारण खूब रौनक रहेगी, धूम मचेगी। सभी बच्चों के लिए नए कपड़े और जूते, महिलाओं के लिए तांत की साड़ी और पुरुषों के लिए रंग बिरंगा सूती कुर्ता खरीदा जाएगा।

षष्टी, सप्तमी, अष्टमी और नवमी पूरे चार दिन रॉयचौधरी परिवार अपने घर के पास क्लब द्वारा स्थापित दुर्गा मां की पूजा करेगा। सुबह-सुबह दुर्गासप्तशती का पाठ, हल्के कोहरे और मीठी ठंड में महिलाएं गुड़हल, हरसिंगार के फूल तोड़ने जायेंगी, फिर दादी माँ कांपती थरथराती उंगलियों से फूलों की माला पिरोयेंगी और पिरोते पिरोते अबूझ और अस्पष्ट शब्दों में श्यामा संगीत या देवी की स्तुति गुनगुनाती रहेंगी।

उनके बहू-बेटा, दामाद-बेटी तथा बच्चे पूजा के बाद कोलकाता के सभी प्रमुख पंडाल देखने जाएंगे। अष्टमी के दिन सभी बड़े पंडालों में मिलने वाला प्रसाद (खिचड़ी और आलू दम) का अलौकिक स्वाद भला कौन नहीं चखना चाहेगा। बागबाजार और बगुइगाटी का भव्य और जग प्रसिद्ध पंडाल भी सबको देखना ही है।

दुर्गापूजा के इन चार दिनों केवल ब्रेकफास्ट ही घर पर बनेगा। लंच और डिनर बाहर ही होगा। पंडाल की असली खूबसूरती तो रात को ही निखर कर आती है। इसीलिए रात भर पंडाल देखने वालों की भीड़ लगी रहती है। अष्टमी के दिन भक्तों का विशेष रूप से तांता लगा रहता है। दशमी के दिन सिंदूर खेला करके मां को विदाई देने तक यह मस्ती और आनंद का उत्सव चलता रहेगा।

विनय सिंह बैस, लेखक/अनुवाद अधिकारी

एक बार मैंने रॉयचौधरी दादा से पूछा कि दादा हम उत्तर भारतीयों के लिए शारदीय नवरात्र नियम, संयम, व्रत का पर्व है लेकिन आपके लिए यह उत्साह, उमंग और आनंद का महापर्व क्यों है?

इस पर दादा गंभीर होकर बोले– “विनय, अगर मां के घर आगमन पर बच्चे मस्ती और आनंद नहीं करेंगे तो ‘माँ रेगे जाबे’ और मां को नाराज कौन करना चाहेगा?”

विनय सिंह बैस
मां दुर्गा के अनन्य भक्त

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