आपकी कुंडली में कौन सी दोष के कारण विवाह नहीं हो रहे हैं और आगे दिक्कत हो सकते हैं, जाने कब तक आपका विवाह हो जाएगा

वाराणसी। विवाह सभी युवक-युवतियों के जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग है। यदि यह समय पर न हो, तो अक्सर लोग चिंता में डूब जाते हैं। कभी-कभार तो विवाह होने में इतना समय लग जाता है कि लोगों की आधी उम्र निकल जाती है। बहुत प्रयासों के बावजूद भी युवक-युवतियों के जीवन में शादी का योग नहीं बन पाता है। ज्योतिष शास्त्र में योग्य युवक-युवतियों की शादी में देरी होने के कई कारण देखे जाते हैं। इसमें ग्रह दोष, कुंडली दोष और वास्तु दोष आदि शामिल हैं, जिन्हें जानने के बाद ही आपके जीवन से इन दोषों को दूर किया जा सकता है। ग्रह दोष ज्योतिष शास्त्र में मंगल, शनि, सूर्य, राहू और केतु को विवाह में विलंब का कारक बताया गया है।

जन्म कुंडली के सप्तम भाव में अशुभ व सबसे क्रूर ग्रह स्थित हों, तो सप्तमेश व उसके कारक ग्रह बृहस्पति और शुक्र के कमजोर होने से विवाह में बाधा आती है। इसके अलावा जब चंद्र और शुक्र साथ में होते हैं। उनके सप्तम में मंगल और शनि विराजमान होता है, तो भी शादी में विलंभ होता है। यदि कुंडली में शनि व सूर्य पारस्परिक संबंध रखते हों और लग्न या सप्तम भाव प्रभावित हो रहा हो, तो विवाह में बाधाएं आती हैं।

जन्म कुंडली का दोष : ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, जन्म कुंडली में कुछ ऐसे दोष होते हैं, जो युवक-युवतियों के विवाह के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न करते हैं। कुंडली में विवाह का योग बनाने वाले ग्रहों के मुकाबले ऐसे ग्रहों का प्रभाव अधिक रहता है जो विवाह में रुकावट डालते हैं। युवक की कुंडली में शुक्र विवाह कारक ग्रह है। यदि कुंडली में शुक्र ग्रह कन्या राशि में नीच है, तो विवाह में कई प्रकार की बाधाएं उत्पन्न होती हैं।

मंगल दोष भी है कारण : विवाह में जिस दोष को सबसे गंभीर माना जाता है वह है मंगल दोष। इसे सामान्य भाषा में मांगलिक दोष भी कहा जाता है। जिस युवक-युवती की कुंडली में 1, 4, 7, 8 तथा 12वें भाग में कहीं भी मंगल स्थित होता है और उसके साथ शनि, सूर्य, राहू जैसे ग्रह बैठे हों, तो इसे द्रिगुणी मंगल कहा जाता है। इसके अलावा कुंडली में यदि सप्तमेश 6, 8,12 भाव में स्थित होते हैं, तो विवाह में देरी होती है।

वास्तु का भी पड़ता है प्रभाव : वास्तु शास्त्र के मुताबिक, जिन युवक-युवतियों के विवाह में अधिक समय लग रहा है, उन्हें सोते समय अपने पलंग के नीचे लोहे की कोई वस्तु नहीं रखनी चाहिए। उन्हें इस बात का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वहां कोई पुराना कबाड़ न पड़ा हो। यदि आप अपने शयनकक्ष में दक्षिण-पश्चिम दिशा में सिर करके सोते हैं, तो अपनी इस आदत को बदल डालिए, क्योंकि वास्तु शास्त्र में इस दिशा को स्थिरता का प्रतीक माना गया है।

पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री

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ज्योतिर्विद् वास्तु दैवग्य
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
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