समय की कमी के चलते केवल क्रिकेट में ही T-20 का कांसेप्ट नहीं आया बल्कि पूजा-पाठ और लोक मान्यता में भी आ गया है!

विनय सिंह बैस, रायबरेली। बैसवारा के गांव-घरों में पहले किसी छोटे कार्य के पूरा होने पर लोग सत्यनारायण स्वामी की कथा और बड़ा कार्य पूरा होने पर रामचरित मानस का अखंड पाठ कराया करते थे। लेकिन जैसे-जैसे महिला सशक्तिकरण बढ़ा है, अब महिलाओं द्वारा अधिक मानता मानी जाने लगी है। मानता कितने समय में पूर्ण होती है, इसके आधार पर निम्नलिखित पूजा महिलाओं द्वारा की जाती है :-

1. संकठा माता की पूजा : साल भर में मानता पूरा होने पर संकठा महारानी का प्रसाद वितरण किया जाता है। इसमें खोया, शक्कर, पिसे चावल से बने हुए छोटे-बड़े पेड़े (छोटा प्रसाद के लिए, बड़ा पेट भरने के लिए) घर के अंदर बासी मुंह महिलाओं को खिलाया जाता है। इसमें एक कन्या, एक विधवा महिला सहित अन्य महिलाओं को प्रसाद खिलाया जाता है। इसके साथ ही महिलाओं को श्रृंगार का सामान जैसे- चूड़ी, बिंदी, सिंदूर आदि भी बांटा जाता है।

इकहरी खिलाने वाली महिलाएं 9 या 11 महिलाओं को प्रसाद खिलाती हैं और दोहरी खिलाने वाली महिलाएं 14 से 16 महिलाओं को प्रसाद देती हैं। इसके लिए निमंत्रण एक दिन पहले ही भेज दिया जाता है। यह प्रसाद सोमवार के दिन खिलाया जाता है। क्षमता अनुसार महिलाएं सवा किलो, ढाई किलो, सवा पांच किलो का प्रसाद बांटती है।

2. अवसान माई की पूजा या दुरकैंया खिलाना : छह महीने में कार्य होने पर अवसान मैया या दुरकैंया का प्रसाद वितरित किया जाता है। इसमें भुना चना, गुड़, लाई का प्रसाद दिया जाता है। क्रय शक्ति बढ़ने पर अब पेड़ा भी बाटा जाने लगा है। इस पूजा में भी महिलाओं को श्रृंगार का सामान जैसे- चूड़ी, बिंदी, सिंदूर आदि बांटा जाता है। इस पूजा में मिट्टी के छोटे-छोटे ढीले (टुकड़े), लोटे में कलश रखकर पूजा की जाती है। यह प्रसाद वितरण बृहस्पतिवार के दिन किया जाता है।

3. तुरंत महारानी या चट्पट मैया का प्रसाद वितरण : किसी मानता के तुरंत या एक आध हफ्ते में पूरा हो जाने पर तुरंत महारानी या चट्ट बीबी की पूजा की जाती है। इसमें 9 या 11 सुहागिन महिलाओं को शुक्रवार या सोमवार के दिन खोया, शक्कर मिला करके बरगद या महुवा के पत्ते पर खड़े-खड़े उन्हें प्रसाद खिलाया जाता है। इस पूजा में भी महिलाओं को श्रृंगार का सामान जैसे – चूड़ी, बिंदी, सिंदूर आदि बांटा जाता है।

समय की कमी के चलते केवल क्रिकेट में ही पांच दिवसीय टेस्ट मैच, एक दिवसीय मैच और T-20 का कांसेप्ट नहीं आया बल्कि पूजा-पाठ और लोक मान्यता में भी आ गया है।

विनय सिंह बैस, लेखक

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