डीपी सिंह की मुक्तक

हे पवनसुत आपके चरणों में मेरा चित रहे
आपके गुणगान में दिन-रात आनन्दित रहे
हे प्रभो! वर दीजिए इस दास का मानस-पटल
आपकी मनमोहिनी छवि से सदा भूषित रहे

भावनाएँ शुद्ध हों, निष्काम निश्छल प्यार हो
संस्कृति सद आचरण का सर्वदा व्यवहार हो
पावनी कल-कल निरन्तर ज्ञान की गङ्गा बहे
आपके चरणों में रत हों, प्रीत की रसधार हो

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