डीपी सिंह की कुण्डलिया

ग़लती और गुनाह में, करना सीखो फ़र्क़।
बात जहाँ हो देश की, करो न तर्क-कुतर्क।।
करो न तर्क -कुतर्क, देश को गाली बकना।
फिर चमकीले वर्क चढ़ाकर ग़लती ढकना।।
जिन्हें सगे हों शत्रु, देश से नफ़रत पलती।
करना उनका अन्त, नहीं है कोई ग़लती।।

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