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कुण्डलिया
(कबीर दास जी के दोहे का भावार्थ, जो अबतक किसी ने नहीं बताया)
निन्दक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाय।।
निर्मल करे सुहाय, किन्तु निन्दा की सीमा।
पार करे तो कूट कूट कर कर दो कीमा।।
आँगन का है अर्थ, बना कर रख लो बन्धक।
निगरानी में रहे, चौबिसो घण्टे निन्दक।।