डीपी सिंह की कुण्डलिया

*होली है*

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सब कड़वाहट भूली सारी मैल दिलों की धो ली है
सब पर पानी फेरा अबतक कहा-सुनी जो हो ली है
तुम भी मन में रंग घोल लो, ये लो रंग-रँगोली है
गले मिलो कुछ कहो-सुनो, कुछ रंग मलो जी, होली है

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