आशा विनय सिंह बैश, नई दिल्ली। एयर फोर्स अकैडमी, हैदराबाद के मुख्य गेट यानी अन्नाराम की तरफ से अंदर प्रवेश करिए और अगर नाक की सीध में चलते जाइए तो आप ट्विन हैंगर के पास से गुजरते हुए डीएससी गेट पार करते ही एयरफोर्स एकेडमी की सीमा से बाहर आम, अनार अंगूरों के बाग में पहुंच जाएंगे। इन बागों की विशेषता यह है कि वहां जाकर आप सीधे बागान मालिक के कारिदों से सस्ते रेट पर ताजे अंगूर, आम आदि खरीद सकते हैं। इन बागानों की एक और खास बात यह है कि इनमें फुटकर सामान (एक-आध किलो) बिकता नहीं है। पांच किलो से कम तौलते नहीं हैं, बहुत चिरौरी करने पर भी दो किलो से कम तो देते ही नहीं हैं।
तौल के मामले में तो ये लोग सख्त हैं लेकिन इस मामले में उदार हैं कि बाग में पहुंचने के बाद आपने जो अंगूर तोड़कर खा लिया, उसको वे हिसाब में गिनते नहीं हैं। उदाहरण के लिए अगर आपने पांच किलो अंगूर लिए और ढाई सौ ग्राम बाग से तोड़कर खा लिए तो पैसे आपसे सिर्फ पांच किलो के ही लिए जाएंगे। अब आप चाहे इसे उनकी उदारता समझें, भोलापन माने या व्यवसायिक समझ की कमी लेकिन वे सभी के साथ इस मामले में एक समान व्यवहार करते हैं। जाति, धर्म, बोली, भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं करते हैं।
मैं वर्ष 2003 से 2008 तक एयर फोर्स अकादमी, हैदराबाद में पोस्टेड था। हम लोग अंगूर के सीजन में कार्य से फुरसत मिलते ही बाइक में बैठकर इन बागों में अंगूर खरीदने समूह में जाते थे और पांच-दस किलो अंगूर एक साथ लेकर आते थे। 100-200 सौ ग्राम अंगूर सीधे बाग से तोड़कर खा भी लिया करते थे।
लेकिन कुछ लोग विशेषकर पहली बार जाने वाले कुछ ज्यादा ही होशियारी करने की कोशिश करते। वह दो किलो अंगूर लेते और आधा किलो बाग से तोड़ कर खा लेते थे। जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि बागान मालिक या उनके कारिंदों को इससे कोई विशेष आपत्ति नहीं थी इसलिए वह तब तक खाते रहते जब तक साथ वाले ही उन्हें जबर्दस्ती बैठाकर वापस नहीं ले आते थे। वैसे लोग मुफ्त के अंगूर खाकर समझते कि उन्होंने तीर मार लिया है और खूब खुश होते।
लेकिन बाद में होता यह कि इन हरे अंगूरों के ऊपर डाला हुआ सफेद रंग का कीटनाशक अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देता। बिना धुला हुआ आधा किलो मुफ्त का अंगूर खाने वालों को टट्टी पड़नी शुरू हो जाता। वे हग-हग के हलाकान हो जाते। जितना खाया होता उससे कहीं ज्यादा बाहर निकल जाता। फिर बाथरूम में बैठे बैठे अपने जीवन मे कभी भी मुफ्त का न खाने की कसम लेते।
मैं आपका, आपके परिवार का और देश का हित चाहता हूँ इसलिए आपको आगाह कर रहा हूँ कि ‘आसमानी’ दावों और सब कुछ मुफ्त देने के वायदों के चक्कर में कतई न पड़ें, नहीं तो अगले पांच साल तक पोंक-पोंक के पस्त हो जाओगे।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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