क्या आप जानते हैं कैसे हुई थी काल भैरव की उत्पत्ति, यहाँ जानिए पौराणिक कथा

कहा जाता है सभी कष्टों का अंत करने के लिए भैरव बाबा को प्रसन्न किया जाना चाहिए। कई भक्त हैं जो पूजा-पाठ करते हैं और काल भैरव से वरदान भी मांगते हैं। जी दरअसल काल भैरव भगवान शिव का पांचवा अवतार है। ऐसी मान्यता है कि उनकी उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध से हुई है। आपको हम यह भी बता दें कि हिंदू धर्म में आठ भैरव माने गए हैं – 1. असितांग भैरव, 2. रुद्र भैरव, 3. चंद्र भैरव, 4. क्रोध भैरव, 5. उन्मत्त भैरव, 6. कपाली भैरव, 7. भीषण भैरव और 8. संहार भैरव। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं भगवान काल भैरव की पौराणिक कथा, जिसे सुनने और पढ़ने से बड़े लाभ मिलते हैं।

काल भैरव की पौराणिक कथा: कालाष्टमी की पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार की बात है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली। इस बात पर बहस बढ़ गई, तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई। सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया, परंतु ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने अपना अपमान समझा। शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है। इस अवतार को ‘महाकालेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है।

इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है। शिवजी के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए। भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं। इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए। भैरव बाबा को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता है। इसका एक नाम ‘दंडपाणी’ पड़ा था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

sixteen − eight =