शंकर स्वरूपा मां भगवती शंकरी देवी का शंकरपुर के प्राचीन मंदिर में लगा भक्तो का तांता

अशोक वर्मा, बलिया। बलिया स्टेशन से 4 किलो मीटर उत्तर में शंकरपुर, मझौली, बजहां तीनो गांवो के बीच में है मां भगवती का विशाल मंदिर, जहां पूरे भारत वर्ष से लोग दर्शन को आते है। स्थानीय निवासी आशीष जी महराज प्रदेश प्रवक्ता हिंदू महासभा बताते है कि, लोग इन्हें विभिन्न स्वरूप में देखते है, देवी की प्रतिमा तीन स्वरूप लेती है सुबह में मां कुमारी अवस्था में रहती है, अर्थात मां वैष्णवी रूप में रहती हैं। दोपहर में मां पूर्ण जगदम्बा रूप में रहती है अर्थात शंकरी रूप में। शाम को माता का वृद्ध स्वरूप का भी दर्शन होता है। माता जगत जननी एक ही है।

कथावाचक आशीष जी महाराज ने बताया कि अधिकांश लोगों को देवी के स्वरूप का दर्शन नहीं हो पाता पर उन्होंने कहां की पुर्वोजो द्वारा स्वर्गीय भगवती पाठक और उनके पिताजी स्वर्गीय देवी पाठक द्वारा बताए हुए स्वरूपों के आधार पर ही भक्त अब तक भगवती की पूजा अर्चना करते आएं है। आशीष जी ने बताया कि पंडितजन उनके विभिन्न स्वरूपों को पूजते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ पंडितो ने मंत्र के आधार पर केवल उन्हें वैष्णवी मानते हैं। जैसे मंत्रों में लिख दिया गया है कि प्रसिद्ध वैष्णवी रूपे नारायनी नमोस्तुते।।

आशीष जी महाराज ने बताया कि इस मंत्र का जप मात्र कर देने से देवी प्रसन्न हो जाती है। उन्होंने कहा की वैष्णवी का अर्थ है मां कुमारी अवस्था में है और किसी भी कुंवारी कन्या को सिंदूर नहीं लगाया जाता और मां भगवती के यहां सदियों से सिंदूर चढ़ाया जाता है इसलिए यह बात स्पष्ट हो जाती है कि यह शंकर की अर्धांगिनी है शिव की पटरानी है।

कुछ तथाकथित लोग कहते हैं की इन्हें बलि नहीं चढ़ाई जाती और आशीष जी महाराज ने बताया कि यहां बकरा चढ़ता है परंतु मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के विरोध पर यहां बकरा काटा नहीं जाता बस चढ़ाया जाता है पहले नारियल भी फोड़ा जाता था नारियल भी बली है पर मंदिर प्रशासन इसकी अनुमति अब नहीं देता। मां काली ही बली लेती है महिषासुरमर्दिनी माता देवी जगदम्बा साक्षात शिव जैसी है। शंख, चक्र, गदा, पद्म आदि से सुसज्जित शिव के विराट स्वरूप जैसे माता का स्वरूप है इसलिए इन्हें संकरी कहना हर एक प्रकार से उचित है। नवरात्रों में देवी का दर्शन करने हजारों की संख्या में लोग आते हैं।

वही मंदिर के प्रबंधक विजय प्रताप तिवारी और वहां मौजूद सदस्य अविनाश तिवारी, विजेंद्र तिवारी (छोटू), सूरज तिवारी, चंद्रकेश तिवारी, ज्ञानी चौधरी, ज्ञान प्रकाश तिवारी आदि लोगो ने बताया कि नवरात्र में यहां मेला लगता है और स्थानीय परंपरा के अनुसार दूर-दूर से लोग चैता सुनने आते हैं।

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