Mission Moon : लूना-25 के क्रैश होने के बाद चंद्रयान 3 क्यों पूरी दुनिया के लिए है खास, क्या होती है सॉफ्ट लैंडिंग

  • चांद से कह रहा चंद्रयान : हम फिर आए हैं सीने पर तिरंगा लहराने

कोलकाता। रूस के चंद्र मिशन लूना-25 के क्रैश होने के बाद भारत के चंद्रयान-3 पर पूरी दुनिया की निगाहें टिक गई हैं। महज चंद घंटों बाद चंद्रयान-3 चंदा मामा की दुर्गम सतह के “सॉफ्ट आलिंगन” के उस वादे को पूरा करने के लिए तैयार है जो आज से तीन साल पहले (2019) 125 करोड़ देशवासियों ने चंद्रयान-2 के गुमशुदा हो जाने के बाद चांद से किया था। सोमवार को लूना 25 को भी चांद के सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी लेकिन उसके पहले रविवार को ही उसका रूसी अंतरिक्ष एजेंसी से संपर्क टूट गया और दावा किया जा रहा है कि चांद की सतह से टकराकर हार्डवेयर डैमेज की वजह से मिशन को अंजाम देने में फेल हो गया है।

इसके साथ ही भारतीय अंतरिक्ष संगठन इसरो ने घोषणा कर दी है कि 23 अगस्त यानी बुधवार शाम 6:00 बजे के करीब चंद्रयान-3 चांद के उस दक्षिणी हिस्से पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा जहां अरबों साल से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है। आखिर क्या है सॉफ्ट लैंडिंग और चंद्रयान-3 से पूरी दुनिया को क्या उम्मीदें हैं। इस बारे में वैज्ञानिक तथ्यों को सरल हिंदी भाषा में शानदार तरीके से लिखने वाले मशहूर लेखक विजय कुमार शर्मा ने जानकारी दी है।

वह कहते हैं, “स्पेस मिशन लॉन्च करना कोई मुश्किल नहीं है, स्पेसशिप का अपने गंतव्य तक पहुंच जाना भी मुश्किल नहीं है। लेकिन स्पेस मिशन का सबसे खतरनाक, चुनौतीपूर्ण और असाध्य हिस्सा सफलतापूर्वक लैंडिंग होता है। कोई चाहे कितना भी एक्सपर्ट हो, यही एक ऐसी चीज है जिसमें असफलता की संभावना हमेशा बनी रहती है। सॉफ्ट लैंडिंग ही एकमात्र उपाय है जो दुनिया भर के स्पेस मिशन के विभिन्न खगोलीय पिंडों पर सुरक्षित लैंडिंग का रास्ता सुनिश्चित करेगा।”

सॉफ्ट लैंडिंग मैकेनिज्म के बारे में तकनीकी पहलुओं को सरल शब्दों में स्पष्ट करते हुए विजय बताते हैं कि स्पेस शिप उतारने के दौरान नीचे की दिशा में रॉकेट फायर किए जाते हैं ताकि न्यूटन के क्रिया के बराबर प्रतिक्रिया के नियम अनुसार ऊपर की दिशा में धक्का लागे और स्पेसशिप की रफ्तार धीमी हो। रफ्तार धीमी करनी इसलिए जरूरी है कि चांद अपने गुरुत्वाकर्षण की वजह से स्पेसशिप को अपनी सतह की ओर तेज रफ्तार में खींच रहा होता है और अगर रफ्तार धीमी नहीं हुई तो स्पेसक्राफ्ट सतह से टकराकर नष्ट हो जाता है। इससे पूरा मिशन फेल हो जाएगा।

चंद्रयान 3 में रॉकेट बूस्टर लगे हैं जिनको नीचे की और फायरिंग किया जाएगा। इससे उसकी रफ्तार धीमी होगी और चांद की सतह तक पहुंचने तक ऑन बोर्ड कंप्यूटर से इस तरह से कमांड सेट किए गए हैं कि चांद के ग्रेविटी को कैंसिल करते हुए बिल्कुल शून्य रफ्तार कर इसके सतह को छुएगा। उसके बाद विक्रम चंद्रयान-3 से निकलकर वन लूनर डे यानी चांद के एक दिन जो धरती के 14 दिनों के बराबर है, सतह पर मिट्टी के सैंपल लेकर रिसर्च करेगा।”

चांद की सतह पर उतर रहे चंद्रयान-3 की गति धीमी करने के लिए सतह के करीब पैराशूट का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा सकता है? इस बारे में विजय बताते हैं कि चांद की धरती पर हवा नहीं है इसीलिए वहां पैराशूट काम नहीं करेगा। एकमात्र उपाय नीचे की ओर रॉकेट की फायरिंग है ताकि ऊपर की ओर लगे उसके धक्के से चंद्रयान की गति कम हो। विजय इस बात की उम्मीद जताते हैं इस बार चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग की उम्मीद पूरी दुनिया को है क्योंकि चंद्रयान-2 की विफलता से भारत ने सबक सीखा है और इस मिशन में कई बदलाव किए गए हैं।

ये भी पढ़ें...

चांद पर उतरने में असफल देशों में एकमात्र भारत ने की दोबारा कोशिश
चंद्रयान-3 की खूबियों का जिक्र करते हुए विजय बताते हैं कि 2019 में भारत ने जब चंद्रयान-2 लॉन्च किया था तब कुछ ही दिनों के अंतराल पर इजरायल ने बेरेशीट, जापान ने हकूटो आर और एक दिन पहले ही रूस ने लूना-25 गंवाया है। इन सभी मिशनों को असफलता हाथ लगी। खास बात यह है कि चांद पर उतरने की कोशिश करने वाले असफल देशों में एकमात्र भारत ही है जो महज तीन सालों के अंतराल पर दूसरा प्रयास कर फिर चांद की वायुमंडल में दस्तक दे चुका है। इसीलिए चंद्रयान-3 का सफलतापूर्वक चांद के उस हिस्से में उतरना बेहद अहम है जहां आज तक रोशनी नहीं पहुंची।

भविष्य के स्पेस मिशन चांद के दुर्गम हिस्से की सॉफ्ट लैंडिंग पर होंगे केंद्रित
यहां अगर सफल लैंडिंग होती है तो इस हिस्से में सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश भारत होगा। विजय आगे कहते हैं,”आज से 50 वर्षों के भीतर हम इंसानों के भेजे अंतरिक्षयान मिल्की वे गैलेक्सी के विभिन्न हिस्सों में अपनी आमद दर्ज़ करा रहे होंगे। उन सुदूर मौजूद ग्रहों तक प्रकाश की गति से भेजे हमारे सिग्नल्स को भी स्पेसशिप तक पहुंचने में घंटों, हफ़्तों, महीनों अथवा वर्षों का समय लगेगा। तब एकमात्र यही तरीका बचता है कि हम “सेफ लैंडिंग” की प्रक्रिया पूर्वनियोजित रूप से इंस्टॉल करके स्पेसशिप्स को दूसरे संसारों के सफ़र पर रवाना करें।

जब तक हम अपनी बगल में मौजूद चाँद पर सेफ लैंडिंग में दक्षता हासिल नहीं कर लेते, तब तक अंतरिक्ष विस्तार की मानवीय महत्वकांक्षाओं पर सवालिया निशान बने रहेंगे। इसलिए चांद पर अगर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग होती है तो यह भविष्य के अंतरिक्ष मिशन को सबसे सफल दिशा देने वाला होगा।”

इसीलिए टिकी है दुनियाभर की निगाहें
वर्ष 2019 में भारत के महत्वकांक्षी चंद्रयान-2 मिशन की विफलता के बावजूद उससे हुए वैज्ञानिक लाभ का जिक्र करते हुए विजय कहते हैं, “महानतम अभियानों के शुरुआती दौर अक्सर मायूसी से ही भरे होते हैं। 2019 में चंद्रयान-2 से संपर्क टूट जाने के बाद इसरो प्रमुख के शिवन को पड़े थे। पूरे देश में उदासी थी। मायूसी के उस दौर में भी दो दिनों तक सवा सौ करोड़ निगाहें रात के आसमान में टकटकी लगा कर चाँद को निहार रही थीं, मानों किसी खो गए अपने को खोज रही हों।

भारत देश में युवाओं, बच्चों और बड़ों की विज्ञान के प्रति जिज्ञासा और समर्पण अभूतपूर्व है। चंद्रयान-2 ने लाखों-करोड़ों युवाओं में अंतरिक्ष के प्रति जुनून जगाने का काम अवश्य किया है। उसकी असफलता से आज एक संकल्प का जन्म अवश्य हुआ था। आज नहीं तो कल, देर अथवा सबेर…. हम हार नहीं मानेंगे, हम फिर उठेंगे, हम फिर आएंगे और चाँद के सीने पर तिरंगा फहराएंगे। यह 125 करोड़ लोगों का चांद से किया गया वादा था जिसे निभाने के लिए चंग्रयान-3 बिल्कुल करीब पहुंचकर दस्तक दे चुका है।”

उल्लेखनीय है कि विजय शर्मा ने ब्रह्मांड के अनंत रहस्याओं और विज्ञान के रोमांचकारी प्रयोगों, अनुभवों को लेकर सबसे पहले “बेचैन बंदर” और उसके बाद “महामानव” दो किताबें लिखी हैं। इनमें से बेचैन बंदर को वर्ष 2019 में भारत सरकार के राजभाषा मंत्रालय की ओर से पुरस्कृत किया जा चुका है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें इसके लिए सम्मानित किया था। वह बहुत ही सरल भाषा में विज्ञान के जटिलतम रहस्यों को लिखते हैं जो विज्ञान से दूर-दूर तक नाता नहीं रखने वाले लोगों को भी आसानी से समझ में आ सकता है। इसलिए आज वह दुनिया भर के सफलतम साइंटिफिक लेखकों में गिने जाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

twenty − sixteen =