कोलकाता। पश्चिम बंगाल में पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में खाली हाथ रही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) राज्य के चुनावी परिदृश्य में एक बार फिर मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने के लिए 2023 के पंचायत चुनाव पर नजरे टिकाये हुए है और ग्रामीण क्षेत्रों से अपने जुड़ाव पर जोर देने की तैयारी में है। माकपा की केंद्रीय समिति के सदस्य सुजान चक्रवर्ती ने कहा कि पार्टी विभिन्न पहल के जरिये दूरदराज क्षेत्रों के लोगों से बेहतर तरह से जुड़ रही है। पिछले दशक के उत्तरार्द्ध में, विपक्ष की तत्कालीन नेता ममता बनर्जी के नेतृत्व में भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलनों के मद्देनजर माकपा को 2008 के पंचायत चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ा था।
इसके अलावा, 2011 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। माकपा नेताओं ने दावा किया कि पार्टी कड़ी मेहनत कर रही है और इस बार बदलाव करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। चक्रवर्ती ने एक समाचार एजेंसी से कहा, ‘‘वर्ष 1978 में सत्ता में आने के बाद वाम मोर्चा द्वारा गठित पंचायत प्रणाली की विश्वसनीयता, इसे एक वास्तविक स्थानीय स्वायत्त शासन बनाती है। हाल के दिनों में सत्तारूढ़ दल (तृणमूल कांग्रेस) के कृत्यों के चलते इसकी (पंचायत प्रणाली) विश्वसनीयता समाप्त हो गई है।’’
उन्होंने आरोप लगाया कि पंचायतें लूट का जरिया बन गई हैं और विधवा पेंशन तथा 100 दिन की रोजगार योजना जैसी सेवाओं के नाम पर ग्रामीण इलाकों के लोगों को ठगा जा रहा है। माकपा ने पंचायतों में ‘‘भ्रष्टाचार’’ के बारे में शिकायत दर्ज करने के वास्ते लोगों के लिए एक ‘हेल्पलाइन’ भी स्थापित की है। पूर्वी बर्द्धमान जिले में एक पंचायत क्षेत्र के माकपा नेता ने दावा किया कि हाल के वर्षों में तृणमूल कांग्रेस के कुछ पंचायत नेताओं की संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि के आरोपों के बीच माकपा ‘स्थानीय शासन में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों के बीच उपजे आक्रोश’ को भुनाने का प्रयास कर रही है।
चक्रवर्ती ने कहा कि जिला स्तर पर वामपंथी संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में लोगों की भीड़ जुटना काफी उत्साहजनक है। उन्होंने कहा कि वाम मोर्चा के अध्यक्ष बिमान बोस सहित माकपा के वरिष्ठ नेता समर्थन जुटाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में नियमित रूप से जनसभाएं करने के साथ ही लोगों के साथ संवाद कर रहे हैं।