बिनोद कुमार रजक की कविता : कोरोना का कटघरे में साक्षात्कार 

कोरोना आप कटघरे में आ गए
क्या कहना है?
कैसा महसुस कर रहे हैं?
सवाल ये इसलिए कि
यह तो आप की जगह नहीं
सच कहूँ तो मेरा अस्तित्व तो था ही नहीं
इंसानों की लोलुपता, जालसाजी और गलत
अविष्कार के नतीजे मेरे उद्भव का कारण
पर आप पर संगीन आरोप है कि
आप इंसानी जिस्मों से नफरत करते हैं
क्या सच है?
आरोप – प्रत्यारोप के तो आप इंसान पुतले है
क्या आप यह स्वीकार करते हैं?
इंसानो की मौतें करने और सांसे तोड़ने में
आपको खुशी मिलती हैं
क्या आप इंसान खुश होने का अवसर नहीं तलासते?
मैं भी तलासता हूँ
कैसे लाशें बिछा कर?
यह तो आप की सोच है और कोरोना आप की करनी
खुशी तलाशने  के और भी तो तरीके हैं
हम इंसान आर्थिक लाभ होने पर, श्रेष्ठता का पद पाने पर,
दूसरे से अव्वल होने पर, विजय के शंखनाद पर
खुश होते हैं
असल चूक तो तुम इंसानों से यही पर होती है-
श्रेष्ठता की होड़ ने तुम इंसानों को कितना नीचे गिरा दिया है?
कहना क्या चाहते हो ? कोरोना!
जो तुम इंसान समझना नहीं चाहते
कोरोना तुमनें असंख्य जाने एक झटके में ली है
स्वास्थ्य की बड़ी संगठन संस्था ने
तुम्हें महामारक की उपाधि दी है
क्या इसी उपाधि की भूख के खातिर
निर्दोष, निरपराध, मासूम इंसानों को
काल की गाल में पहुंचा दिया
हाँ-हाँ- हाँ,…. …… हाँ-हाँ-हाँ
तुम इंसान निर्दोष, निरपराध, मासूम
अरे! तुम तो प्राणी पिशाच हो
अरे! तुम तो सृष्टि के सभी
बड़े प्राणी को़ भक्ष जाते हो
तुम्हारी आत्मा की भूख का भैचाल
तब ़भी शांत नहीं होता जब
प्राणियों के छोटे-छोटे बच्चे की करुण
चू-चू-चू, ची-ची-ची आवाज सुन कर भी
अनसुना कर उसे कच्चा चबा जाते हो
संसार में तुमसे बड़ा भूखा-नंगा कोई नहीं
तुम हत्यारो की भूख ने मुझे बनाया
मेरे निर्जीव वजूद को दिया मकसद
हम भायरस वायरस तो पहले भी थे
आगे भी रहेंगे पर अब वो दिन दूर नहीं
जब तुम इंसान इस धरा से गायब हो जाओगे
कोरोना! मत करो ना ऐसी बाते भगवान से डरो
किस भगवान से जिसनें तुम्हें बनाया
या मुझे बनाया इतना घमंड, अंहकार
क्या तुम नहीं जानते हम इंसान इस सृष्टि के श्रेष्ठ जीव है
जीवन की जब जब बात आती हैं हम नवरूप में शक्ति के
साथ उभर कर आते हैं
मैं जानता हूँ तुम इंसान श्रेष्ठ हो
पर तुम मे से भी कोई है जो श्रेष्ठ बनने में
अपना सारा बल लगा रहा है
कौन? मेरा भगवान जो इंसान का शत्रु
युग का जन्मदाता है और मेरा भी
वे मेरे जैसे अनेक जैविक औजार बना रहे हैं
वे सब का इस्तेमाल आने वाले दिनों में भविष्य में करेंगे
विश्व विजयी के लिए
युद्ध का विगुल बजा अपने मांद में
बैठा हैं मौत के सौदागर
कोरोना कहाँ रहता है ? वह नरपिशाच
मैं ढूँढ रहा हूँ  इंसानी देह से देह में जा कर
कई देशों में ढूँढा तुम इंसान भी अब बिना समय का
इंतज़ार किए ढूँढो देर हुई तो तिसरा विश्व युद्ध बिना लड़े जीत
जाएगा वह मरकट
फिर न दोष देना मुझे
मैं चला खोज में विनाशक के मांद
पुजा करनी है ………. उसकी
तुमसे पहले
तुम्हें पहले मिले तो पूछना
स्वार्थ में
क्यों कोरोना बनाया वर्तमान

-बिनोद कुमार रजक

शिक्षक व कवि

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