डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया

मछली की दुर्गंध में, जो भी पल-बढ़ जाय
ख़ुशबू फूलों की भला, कैसे उसे सुहाय
कैसे उसे सुहाय, रहे दिल डूबा डूबा
पाक प्रेम में मुफ़्त, लुटी जैसे महबूबा
गिद्ध चाहता लाश, न चाहे काजू-कतली
महबूबा भी पाक बिना, ज्यों जल बिन मछली

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