डीपी सिंह की रचनाएं

सामयिकी

देश जलाने वालों से तो त्रस्त हुई अब जनता है
आज यहाँ कल वहाँ, देश में रोज उपद्रव ठनता है
एक वर्ष से धू धू करती ज्वाला कम क्यों नहीं हुई?
आग बुझाने वालों से भी एक प्रश्न तो बनता है

डीपी सिंह

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