डीपी सिंह की रचनाएं

पर्वत, प्रकृति, गंगा, गीता, इनके प्रति सम्मान कहाँ है
दादा-दादी काका-काकी का सिर पर वरदान कहाँ है
घर ही क्यों? खुद को भी हमने यूँ सीमाओं में कैद किया
खुशियाँ भीतर झाँक सकें जो, अब वो रौशनदान कहाँ है?

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