दलदल के उस पार है, लाखों की सौगात
ऊपर बैठी ताक में, गिद्धों की बारात
गिद्धों की बारात, लड़कियाँ देख न पाएँ
सिर पर उनके भूत, कि रातों रात कमाएँ
पहले तो स्वीकार, नग्नता का उनको मल
करतीं किन्तु वबाल, निगलता है जब दलदल
–डीपी सिंह
दलदल के उस पार है, लाखों की सौगात
ऊपर बैठी ताक में, गिद्धों की बारात
गिद्धों की बारात, लड़कियाँ देख न पाएँ
सिर पर उनके भूत, कि रातों रात कमाएँ
पहले तो स्वीकार, नग्नता का उनको मल
करतीं किन्तु वबाल, निगलता है जब दलदल
–डीपी सिंह