विनय सिंह बैस की रचना

खंत मतइया,
कौड़ी पइया,
गंग बहइया।

गंगा मइया बालू दिहिन,

बालू लइके भुजवा का दीन,

भुजवा हमका लावा दिहिस,

लावा लावा हम चबावा,

ठोर्री-ठोर्री घसवरवा का दीन।

घसवरवा हमका घास दिहिस,

घास लइके गइया का दीन,

गइया हमका दूध दिहिस,

दूध कय हम खीर बनाएन।

खीर गय जुड़ाय,

राजा गय रिसाय।

पान फूल खाइत है,

तबला बजाइत है,

घोड़ा मां चढ़ि के आइत है।

बताव तुम्हरे बियाहे मां,

पों बाजै की भों।

पों पों पों,
पों पों पों।

भों भों भों
भों भों भों।।।।।

(विनय सिंह बैस)
नई दिल्ली

विनय सिंह बैस, लेखक/अनुवाद अधिकारी

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