रिपोर्ट में दावा : बंगाल में नई RTI याचिका के निपटारे में लगेंगे 24 साल!

कोलकाता। केंद्र की मोदी सरकार जहां पारदर्शी और सुचितापूर्ण प्रशासन का दावा करती है। वहीं, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और जनता को सरकार के कामों की जानकारी हो, इसके लिए लाए गए सूचना का अधिकार को लेकर एक हैरान करने वाला खुलासा हुआ है। दरअसल, सतरक नागरिक संगठन ने सर्वे करके एक रिपोर्ट तैयार की है। अपनी रिपोर्ट में देश के 26 राज्यों में आरटीआई आवेदक की शिकायत का निपटारे में लगने वाले समय के बारे में बताया है। इन राज्यों में सबसे बुरी स्थिति गैर भाजपाई राज्य पश्चिम बंगाल की है।

ममता बनर्जी की सरकार वाले इस राज्य में पश्चिम बंगाल राज्य सूचना आयोग को एक आरटीआई आवेदक की शिकायत का निपटारा करने में 24 साल से अधिक समय लगेगा।गौरतलब है कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के अधिनियमन की 17 वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर सतरक नागरिक संगठन ने ये रिपोर्ट जारी की है। नागरिक संगठन ने इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए औसत मासिक निपटान दर और विभिन राज्य सूचना आयोगों में एक शिकायत के निराकरण में लंबित समय का अध्ययन किया है।

जिससे वे शिकायत के निपटारे में लगने वाले समय की गणना कर सकें।  नागरिक संगठन ने अपनी इस रिपोर्ट में दावा किया है कि आकलन के मुताबिक, पश्चिम बंगाल राज्य सूचना आयोग को एक शिकायत को निपटाने में अनुमानित 24 साल और 3 महीने का समय लगेगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि अगर कोई शिकायत 1 जुलाई, 2022 को दायर की जाती है तो वर्तमान मासिक दर के हिसाब से पश्चिम बंगाल राज्य सूचना आयोग में साल 2046 में उस मामले का निपटारा संभव होगा।

वहीं इस रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि ओडिशा और महाराष्ट्र राज्य सूचना आयोगों द्वारा अपीलों के निपटान का अनुमानित समय पांच साल से अधिक है, जबकि बिहार के लिए यह दो साल से अधिक है। वहीं इनके अलावा 12 राज्य सूचना आयोगों को किसी मामले को निपटाने में एक साल या उससे अधिक समय लगेगा। नागरिक संगठन ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि देश के 26 राज्यों के सूचना आयोगों में 30 जून तक 3.14 लाख से अधिक अपील और शिकायतें लंबित थीं। इन्ही के आधार पर डेटा तैयार किया गया।

इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि राज्य सूचना आयोगों में शिकायतों का बैकलॉग लगातार बढ़ रहा है। साल 2019 के आकलन में पाया गया कि 31 मार्च, 2019 तक 26 सूचना आयोगों में कुल 2.18 लाख याचिकाएं लंबित थीं। ये आंकड़ा 30 जून, 2021 तक बढ़कर 2.86 लाख हो गया था। बता दें कि इस अधिनियम के तहत  सूचना आयोग के लिए सूचना देने में देरी होने पर या आरटीआई अधिनियम का कोई अन्य उल्लंघन होने पर लोक सूचना अधिकारी पर जुर्माना लगाना अनिवार्य है, लेकिन जांच में ये पता चला है कि उन्होंने ऐसे 95 प्रतिशत मामलों में दंड नहीं लगाया।

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