चैत्र नवरात्रि विशेष…

पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी । हिंदू धर्म में नवरात्रि का भी विशेष स्थान है। मां दुर्गा को समर्पित ये नौ दिवसीय त्योहार वैसे तो साल में चार बार मनाया जाता है। दो बार गुप्त नवरात्रि और एक चैत्र और दूसरे अश्विन मास के नवरात्रि। नवरात्रि के त्योहार का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। नवरात्रि में पूरे नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में मां दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना गया है। मान्यता है कि नवरात्रि में विधि पूवर्क पूजा करने से मां दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है और कष्ट, रोग, शत्रु से मुक्ति मिलती है।

चैत्र नवरात्रि : चैत्र माह में पड़ने वाली नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि भी कहा जाता है। पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्रि का त्योहार 2 अप्रैल 2022 से 11 अप्रैल 2022 तक मनाया जाएगा। विशेष बात ये है कि इस वर्ष किसी भी तिथि का क्षय नहीं हो रहा है।

घोड़े पर सवार होकर आएंगी माता रानी : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर साल नवरात्रि पर माता रानी किसी न किसी वाहन पर सवार होकर आती हैं। वहीं लौटते समय माता रानी का वाहन अलग होता है। चैत्र नवरात्रि में मैया घोड़े पर सवार होकर आएंगी। अगर नवरात्रि की शुरुआत रविवार या सोमवार से होती है तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं।

कलश स्थापना शुभ मुहूर्त : चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 01 अप्रैल, शुक्रवार को सुबह 11 बजकर 53 मिनट से शुरू होगी और 02 अप्रैल, शनिवार को सुबह 11 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। इसके बाद 9 दिनों तक कलश का नियमित पूजन होता है। इस बार कलश स्थापना का शुभ समय 02 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 10 मिनट से 08 बजकर 29 मिनट तक रहेगा।

कलश स्थापना की विधि : कलश स्थापना के लिए सबसे पहले मां दुर्गा की तस्वीर के सामने अखंड ज्योति जला दें। इसके बाद एक मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालें, उसमें जौ के बीच डालें। एक कलश को अच्छे से साफ करके उस पर कलावा बांधें। स्वास्तिक बनाएं और कलश में थोड़ा गंगा जल डालकर पानी भरें। इसके बाद कलश में साबुत सुपारी, अक्षत और दक्षिणा डालें। फिर कलश के ऊपर आम या अशोक 5 पत्ते लगाएं और कलश को बंद करके इसके ढक्कन के ऊपर अनाज भरें। अब एक जटा वाले नारियल को लाल चुनरी से लपेटकर अनाज भरे ढक्कन के ऊपर रखें। इस कलश को जौ वाले मिट्टी के पात्र के बीचोबीच रख दें। इसके बाद सभी देवी और देवता का आवाह्न करें और माता के समक्ष नौ दिनों की पूजा और व्रत का संकल्प लेकर पूजा विधि प्रारंभ करें।

नौ दिनों में नौ स्वरूपों की होती है पूजा : नवरात्रि के नौ दिनों में माता रानी के नौ स्वरूपों की पूजा का विधान है. पहले दिन माता शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। दूसरा दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरा चंद्रघंटा, चौथा कूष्मांडा, पांचवां स्कंदमाता, छठवां कात्यायनी, सातवां कालरात्रि, आठवां मां महागौरी और नौवां दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित होता है।
देवी के नवरूप व पूजन से क्या फल मिलते हैं। वैसे फल की इच्छा न करते हुए ही पूजा करना चाहिए।

1. शैलपुत्री : माँ दुर्गा का प्रथम रूप है शैलपुत्री। पर्वतराज हिमालय के यहाँ जन्म होने से इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। नवरात्र की प्रथम तिथि को शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इनके पूजन से भक्त सदा धनधान्य से परिपूर्ण रहते हैं।
मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:

2. ब्रह्मचारिणी : माँ दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। माँ दुर्गा का यह रूप भक्तों और साधकों को अनंत कोटि फल प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की भावना जागृत होती है।
मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:

3. चंद्रघंटा : माँ दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा है। इनकी आराधना तृतीया को की जाती है। इनकी उपासना से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। वीरता के गुणों में वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य अलौकिक माधुर्य का समावेश होता है, आकर्षण बढ़ता है।
मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:

4. कुष्मांडा : चतुर्थी के दिन माँ कुष्मांडा की आराधना की जाती है। इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है।
मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कुष्मांडायै नम:

5. स्कंदमाता : नवरात्रि का पाँचवाँ दिन आपकी उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी है। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती है।
मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कन्दमातायै नम:

6. कात्यायनी : माँ का छठा रूप कात्यायनी है। छठे दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है।
मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:

7. कालरात्रि : नवरात्रि की सप्तमी के दिन माँ कालरात्रि की आराधना का विधान है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है, तेज बढ़ता है।
मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:

8. महागौरी : देवी का आठवाँ रूप माँ गौरी है। इनका अष्टमी के दिन पूजन का विधान है। इनकी पूजा सारा संसार करता है। पूजन करने से समस्त पापों का क्षय होकर कांति बढ़ती है। सुख में वृद्धि होती है, शत्रु-शमन होता है।
मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्यै नम:

9. सिद्धिदात्री : माँ सिद्धिदात्री की आराधना नवरात्र की नवमी के दिन की जाती है। इनकी आराधना से जातक को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। आज के युग में इतना कठिन तप तो कोई नहीं कर सकते लेकिन अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर कुछ तो माँ की कृपा का पात्र बनते ही है।
मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धीदात्यै नम:

वाकसिद्धि हेतु : ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नम: ॐ वद बाग्वादिनि स्वाहा
वाकशक्ति प्राप्त करने वाले को माँ वाघेश्वरी देवी के सम्मुख जाप करने से वाणी की शक्ति मिलती है, जिससे वह जातक जो कहता है वह बात पूर्ण होती है।

पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री

जोतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
9993874848

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