रिया सिंह की कविता : “चित्”
“चित्” चित् में जितने ग़म थे, सब ओझल से हो गए जब कुछ दर्द उभर
हिंदी विश्वविद्यालय में ‘सिने शिक्षा : रोजगार की संभावनाएं एवं भविष्य की चुनौतियाँ’ विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार
वर्धा : महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रदर्शनकारी कला विभाग की ओर से बुधवार, 10
वार्तालाप भगवान का ( हास-परिहास ) : डॉ लोक सेतिया
उठो अब तो जागो आपको काम पर जाना है बहुत दिन घर पर आराम कर
कोरोना काल में हिंदी कविता विषय पर ऑनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
कोलकाता : सांस्कृतिक पुर्निर्माण की ओर से कोरोना काल में हिंदी कविता विषय पर एक ऑनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी
खत हवेली का फुटपाथ के नाम ( व्यंग्य-व्यथा ) : डॉ. लोक सेतिया
सत्ता का मज़ाक है कि अट्टहास है क्या है। ये जो बिगड़े रईस ज़ादे होते
रिया सिंह की कविता : “संघर्ष ”
संघर्ष है जीवन तो, संघर्ष भी है अपनों से मिले कुछ दर्द भी है इन
सोमरस से कोरोना का ईलाज ( हास-परिहास ) : डॉ लोक सेतिया
जो काम पैसे से नहीं होता सिफारिश से नहीं होता शराब की इक बोतल से
दीपा ओझा की कविता : “काश किसी दिन ऐसा होता”
“काश किसी दिन ऐसा होता” काश किसी दिन ऐसा होता सब कुछ सपने जैसा होता
डॉ. लोक सेतिया की कविता : “कैद”
“कैद” कब से जाने बंद हूं एक कैद में मैं छटपटा रहा हूँ रिहाई के
शहंशाह तलाश लिया हमने ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया
नारद जी को समझना था या समझाना उनको पता नहीं चला मगर जैसा उन्होंने वादा