ज़िंदगी को फ़नाह कर बैठे  ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया 

कैसे नादान लोग हैं ज़िंदगी से मौत का खेल खेलते हैं। मौत का कारोबार करते

रिया सिंह की कविता : “किताबों से तब प्रेम करना ”

किताबों से तब प्रेम करना  जब लगे तुझे व्यर्थ जीवन किताबों से तब प्रेम करना

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सत्ता का हम्माम सभी एक समान ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया

हमारे ही देश की नहीं दुनिया भर की आम जनता की तकदीर यही है। उसको

रूम्पा की कविता : “फिर से मुस्कुराएगा हिंदुस्तान”

पूरे विश्व ने चुप्पी साध रखी है हर डगर में घूमता कोरोना उस हिटलर को

पारो शैवलिनी की कविता – अम्फान : प्रकृति की चेतावनी

दिन मंगलवार बंगाल के कई इलाक़ों के लिए अमंगल साबित हुआ। अचानक मौसम ने करवट

मदर्स डे स्पेशल : रूम्पा की कविता – “माँ तुम प्रेरणा हो”

माँ तुम प्रेरणा हो जीवन की, तुम ज्योति हो अंधकार मन की, तुम आशा हो

मदर्स डे स्पेशल : अनुपमा की कविता – “सब तुम हो माँ”

सब तुम हो माँ ईश्वर कहीं है तो वो तुम हो माँ। जन्नत कहीं है

कोरोना ज्ञान का संदेश है ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया

शायद अभी नहीं पहचानोगे समझोगे तभी जानोगे कभी कोरोना की कथा लिखोगे उसका संदेश मानोगे।

मदर्स डे स्पेशल : घनश्याम प्रसाद की कविता – “मां का जीवन”

“मां का जीवन” मेरी माँ है तो आंगन है, तुलसी है, घर है.. चूल्हा है,

मदर्स डे स्पेशल : दिनेश लाल साव की कविता – “स्मृतियों की पगडण्डी पर”

स्मृतियों की पगडण्डी पर स्मृतियों की लताओं में उलझा सा इतराता रहा इस जीवन पर