मणिपुर, त्रिपुरा में जातीय चूक ने पूर्वोत्तर में भाजपा की किरकिरी की

अगरतला। भले ही भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले पूर्वोत्तर क्षेत्र में कुछ चुनावी फायदा है, पार्टी में आंतरिक कलह, सत्ता विरोधी लहर और मणिपुर में चल रही जातीय परेशानियां तथा पड़ोसी राज्यों में उसके परिणाम संसदीय चुनाव से पहले भगवा पार्टी के लिए अड़चन बनेंगे। हालांकि अरुणाचल प्रदेश, असम और कुछ अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में आंतरिक दरारें इतनी दिखाई नहीं देती हैं, लेकिन त्रिपुरा और मणिपुर में विवाद तथा मतभेद स्पष्ट हैं।

मणिपुर में 3 मई को जातीय हिंसा शुरू होने से पहले 13 अप्रैल से 24 अप्रैल के बीच मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए चार भाजपा विधायकों – थोकचोम राधेशम, करम श्याम, रघुमणि सिंह और पौनम ब्रोजेन सिंह – ने अपने सरकारी पद छोड़ दिए।

चारों भाजपा विधायक क्रमश: मुख्यमंत्री के सलाहकार और मणिपुर राज्य पर्यटन विकास निगम, मणिपुर नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी तथा मणिपुर विकास सोसायटी के अध्यक्ष थे। चारों विधायकों ने दावा किया कि उन्हें अपने पद पर काम करने के लिए उचित जिम्मेदारी, धन और अधिकार नहीं दिए गए।

हालांकि बीरेन सिंह ने दावा किया था कि विधायकों के बीच कोई मतभेद और नाराजगी नहीं है। इस मुद्दे पर 27 अप्रैल को इम्फाल में एक अनिर्णायक पार्टी बैठक में चर्चा की गई थी। बैठक में भाजपा के पूर्वोत्तर समन्वयक और राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ए. शारदा देवी उपस्थित थे।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, 3 मई को भड़की जातीय हिंसा में अब तक 120 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, विभिन्न समुदायों के 400 से अधिक लोग घायल हो गए हैं और 65,000 से अधिक लोग विस्थापित हो गए हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में संपत्तियों और वाहनों को भी नुकसान पहुंचा है। इन सबका मणिपुर में सत्तारूढ़ भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर प्रभाव पड़ेगा।

जातीय हिंसा के बीच भाजपा नेताओं और विधायकों का एक वर्ग बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग कर रहा है। हालांकि, मुख्यमंत्री के करीबी नेताओं और विधायकों ने दावा किया कि नशीली दवाओं के खतरे, म्यांमार से दवाओं के अवैध व्यापार, अवैध पोस्त की खेती और सीमा पार से घुसपैठ को रोकने के उनके (बीरेन सिंह) प्रयासों से बेईमान लोग नाराज हैं और वे उनके खिलाफ साजिश रच रहे हैं।

त्रिपुरा में, राजनीतिक पंडितों ने देखा कि त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा राज्यसभा सदस्य बिप्लब कुमार देब, केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक, मुख्यमंत्री माणिक साहा और अन्य के बीच खुले मतभेद थे। देब और भौमिक को पार्टी बैठकों और विभिन्न संगठनात्मक और सरकारी कार्यों और बैठकों में मंच साझा करते हुए शायद ही देखा गया हो।

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