वास्तु के अनुसार भवन निर्माण, जानिये किस दिशा में क्या होना चाहिए

वाराणसी । दिशाओं के ज्ञान को ही वास्तु कहते हैं। यह एक ऐसी पद्धति का नाम है, जिसमें दिशाओं को ध्यान में रखकर भवन निर्माण व उसका इंटीरियर डेकोरेशन किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वास्तु के अनुसार भवन निर्माण करने पर घर-परिवार में खुशहाली आती है। वास्तु में दिशाओं का बड़ा महत्व है। अगर आपके घर में गलत दिशा में कोई निर्माण होगा, तो उससे आपके परिवार को किसी न किसी तरह की हानि होगी, ऐसा वास्तु के अनुसार माना जाता है। वास्तु में आठ महत्वपूर्ण दिशाएँ होती हैं, भवन निर्माण करते समय जिन्हें ध्यान में रखना नितांत आवश्यक है। ये दिशाएँ पंचतत्वों की होती हैं।

किस दिशा का क्या है महत्व :
उत्तर दिशा :– इस दिशा में घर के सबसे ज्यादा खिड़की और दरवाजे होना चाहिए।
घर की बालकनी व वॉश बेसिन भी इसी दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर धन की हानि व करियर में बाधाएँ आती हैं। इस दिशा की भूमि का नीचा होना वास्तु में अच्छा माना जाता है।

दक्षिण दिशा :– इस दिशा की भूमि तुलनात्मक रूप से ऊँची होना चाहिए। इस दिशा की भूमि पर भार रखने से गृहस्वामी सुखी, समृद्ध व निरोगी होता है। धन को भी इसी दिशा में रखने पर उसमें बढ़ोतरी होती है। दक्षिण दिशा में किसी भी प्रकार का खुलापन, शौचालय आदि नहीं होना चाहिए।

पूर्व दिशा :– पूर्व दिशा सूर्योदय की दिशा है। इस दिशा से सकारात्मक व ऊर्जावान किरणें हमारे घर में प्रवेश करती हैं। गृहस्वामी की लंबी उम्र व संतान सुख के लिए घर के प्रवेश द्वार व खिड़की का इस दिशा में होना शुभ माना जाता है। बच्चों को भी इसी दिशा की ओर मुख करके पढ़ना चाहिए। इस दिशा में दरवाजे पर मंगलकारी तोरण लगाना शुभ होता है।

पश्चिम दिशा :– इस दिशा की भूमि का तुलनात्मक रूप से ऊँचा होना आपकी सफलता व कीर्ति के लिए शुभ संकेत है। आपका रसोईघर व टॉयलेट इस दिशा में होना चाहिए।

उत्तर-पूर्व दिशा :– ‘ईशान दिशा’ के नाम से जानी जाने वाली यह दिशा ‘जल’ की दिशा होती है। इस दिशा में बोरिंग, स्वीमिंग पूल, पूजास्थल आदि होना चाहिए।
घर का मुख्य द्वार इस दिशा में होना वास्तु की दृष्टि से बेहद शुभ माना जाता है।

उत्तर-पश्चिम दिशा :– इसे ‘वायव्य दिशा’ भी कहते हैं। यदि आपके घर में नौकर है तो उसका कमरा भी इसी दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में आपका बेडरूम, गैरेज, गौशाला आदि होना चाहिए।

दक्षिण-पूर्व दिशा :– यह ‘अग्नि’ की दिशा है इसलिए इसे आग्नेय दिशा भी कहते हैं। इस दिशा में गैस, बॉयलर, ट्रांसफॉर्मर आदि होना चाहिए।

दक्षिण-पश्चिम दिशा :– इस दिशा को ‘नैऋत्य दिशा’ भी कहते हैं। इस दिशा में खुलापन अर्थात खिड़की, दरवाजे बिल्कुल ही नहीं होना चाहिए। गृहस्वामी का कमरा इस दिशा में होना चाहिए। कैश काउंटर, मशीनें आदि आप इस दिशा में रख सकते हैं।

पुराने समय में गृहनिर्माण वास्तु के अनुसार ही होता था, जिससे घर में धन-धान्य व खुशहाली आती थी। आजकल हममें से हर किसी की जिंदगी में आपाधापी व तनाव ही तनाव है। जिससे मुक्ति के लिए हम तरह-तरह के टोटके व प्रयोग करते हैं। वास्तु तनाव व परेशानियों से मुक्ति की एक अच्छी पद्धति हो सकती है। वास्तु की कुछ बातें ध्यान में रखकर आप अपने जिंदगी में परिवर्तन की उम्मीद तो कर सकते हैं किंतु पूर्णत: परिवर्तन तभी होगा, जब आप स्वयं अपने व्यवहार व कार्यशैली में सकारात्मक परिवर्तन लाएँ।

सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं दिशाएं :
आवास या कार्यालय का निर्माण करते समय दिशाओं का सदैव ध्यान रखना चाहिए। सहीं दिशाओं का निर्धारण नहीं होने के कारण हमें नकारात्मक ऊर्जा मिलती रहेगी और कोई भी काम व्यवस्थित रूप से संपन्न नहीं हो सकेगा। किसी भी का निर्माण करने से पूर्व वास्तु शास्त्र की सहायता से हम अधिक ऊर्जावान बन सकते हैं। यह सकारात्मक ऊर्जा कर्म के साथ ही भाग्योदय में भी सहायक होती हैं। जानें दिशाओं के विषय में कुछ तथ्य :

उत्तर दिशा से चुम्बकीय तरंगों का भवन में प्रवेश होता हैं। चुम्बकीय तरंगे मानव शरीर में बहने वाले रक्त संचार एवं स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से इस दिशा का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। स्वास्थ्रू के साथ ही यह धन को भी प्रभावित करती हैं। इस दिशा में निर्माण में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैं मसलन उत्तर दिशा में भूमि तुलनात्मक रूप से नीची होना चाहिए तथा बालकनी का निर्माण भी इसी दिशा में करना चाहिए। बरामदा, पोर्टिको और वाश बेसिन आदि इसी दिशा में होना चाहिए।

उत्तर-पूर्व दिशा में देवताओं का निवास होने के कारण यह दिशा दो प्रमुख ऊर्जाओं का समागम हैं। उत्तर दिशा और पूर्व दिशा दोनों इसी स्थान पर मिलती हैं। अत इस दिशा में चुम्बकीय तरंगों के साथ-साथ सौर ऊर्जा भी मिलती हैं। इसलिए इसे देवताओं का स्थान अथवा ईशान दिशा कहते हैं। इस दिशा में सबसे अधिक खुला स्थान होना चाहिए। नलकूप एवं स्वीमिंग पुल भी इसी दिशा में निर्मित कराना चाहिए। घर का मुख्य द्वार इसी दिशा में शुभकारी होता हैं।

पूर्व दिशा ऐश्वर्य व ख्याति के साथ सौर ऊर्जा प्रदान करती हैं। अतः भवन निर्माण में इस दिशा में अधिक से अधिक खुला स्थान रखना चाहिए। इस दिशा में भूमि नीची होना चाहिए। दरवाजे और खिडकियां भी पूर्व दिशा में बनाना उपयुक्त रहता हैं। पोर्टिको भी पूर्व दिया में बनाया जा सकता हैं। बरामदा, बालकनी और वाशबेसिन आदि इसी दिशा में रखना चाहिए। बच्चे भी इसी दिशा में मुख करके अध्ययन करें तो अच्छे अंक अर्जित कर सकते हैं।

उत्तर-पश्चिम दिशा में भोजन कक्ष बनाएं यह दिशा वायु का स्थान हैं। अतः भवन निर्माण में गोशाला, बेडरूम और गैरेज इसी दिशा में बनाना हितकर होता है। सेवक कक्ष भी इसी दिशा में बनाना चाहिए।

पश्चिम दिशा में टायलेट बनाएं यह दिशा सौर ऊर्जा की विपरित दिशा हैं अतः इसे अधिक से अधिक बंद रखना चाहिए। ओवर हेड टेंक इसी दिशा में बनाना चाहिए। भोजन कक्ष, दुछत्ती, टाइलेट आदि भी इसी दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में भवन और भूमि तुलनात्मक रूप से ऊँची होना चाहिए।

दक्षिण-पश्चिम दिशा में मुखिया का कक्ष सबसे अच्छा वास्तु नियमों में इस दिशा को राक्षस अथवा नैऋत्व दिशा के नाम से संबोधित किया गया हैं। परिवार के मुखिया का कक्ष इसी दिशा में उपयुक्त होता है। परिवार के मुखिया का कक्ष इसी दिशा में होना चाहिए। सीढ़ियों का निर्माण भी इसी दिशा में होना चाहिएै इस दिशा में खुलापन जैसे खिड़की, दरवाजे आदि बिल्कुल न निर्मित करें। किसी भी प्रकार का गड्ढा, शौचालय अथवा नलकूप का इस दिशा में वास्तु के अनुसार वर्जित हैं।

दक्षिण-पूर्व दिशा में किचिन, सेप्टिक टेंक बनाना उपयुक्त होता है। यह दिशा अग्नि प्रधान होती हैं अतः इस दिशा में अग्नि से संबंधित कार्य जैसे कि किचिन, ट्रांसफार्मर, जनरेटर ब्वायलर आदि इसी दिशा में होना चाहिए। सेप्टिक टेंक भी इसी दिशा में बनाना ठीक रहता हैं।

दक्षिण दिशा यम की दिशा है यहां धन रखना उत्तम होता हैं। यम का आशय मृत्यु से होता है। इसलिए इस दिशा में खुलापन, किसी भी प्रकार के गड्ढे और शौचालय आदि किसी भी स्थिति में निर्मित करें। भवन भी इस दिशा में सबसे ऊंचा होना चाहिए। फैक्ट्री में मशीन इसी दिशा में लगाना चाहिए। ऊंचे पेड़ भी इसी दिशा में लगाने चाहिए। इस दिशा में धन रखने से असीम वृद्धि होती हैं। कोई भी जातक इन दिशाओं के अनुसार कार्यालय, आवास, दुकान फैक्ट्री का निर्माण कर धन-धान्य से परिपूर्ण हो सकता हैं।

दिशाएँ : वास्तु विज्ञान∕शास्त्र जिसे भवन निर्माण कला में दिशाओं का विज्ञान भी कहा जा सकता है, इसे समझाने के लिए सर्वप्रथम दिशाओं के विषय में जानना आवश्यक है। हम सभी जानते हैं कि धरातल स्तर (Two dimension) में आठ दिशाएँ होती हैं – पूर्व, ईशान, उत्तर, वायव्य, पश्चिम, नैऋत्य, दक्षिण व आग्नेय।
ऊपर आकाश व नीचे पाताल को सम्मिलित करने पर (Three dimension) 10 दिशाओं में पूरा भूमंडल∕संसार व्याप्त है अथवा कहा जा सकता है कि पूरे विश्व को एक स्थल में केन्द्र मानकर 10 दिशाओं में व्यक्त किया जा सकता है।

विदिशा भूखण्ड व विदिशा में निर्माण :
मुख्य दिशाएँ वास्तु या मकान की मध्य रेखा से 22.5 अंश या ज्यादा घूमी हुई हो तो ऐसे वास्तु को विदिशा में बना मकान या वास्तु कहा जाता है। ऐसे विदिशा मकान में वास्तु के उक्त सभी नियम व प्रभाव पूरी तरह नहीं लागू होते। ऐसे वास्तु ज्यादातर शुभ नहीं होते और वहाँ शुभ फल केवल निम्न कुछ दिशाओं में ही प्राप्त होता है अधिकतर ऐसे दिशाओं में बने मकान आदि धीमी गतिवाले, अशुभफलदायक और कई दशा में अत्यन्त हानिकारक परिणाम दर्शाते हैं।

विदिशा में अच्छे फलदायक मकान या वास्तु बनाने के नियम :
प्रवेश द्वार केवल ईशान दिशा से होने से ही विशिष्ट मंगलकारी होता है। मध्य पूर्व अथवा मध्य उत्तर से भी प्रवेश शुभ होता है।
विदिशा प्लाट में कमरे, मकान या वास्तु केवल ईशान और नैऋत्य दिशा को लम्बाई में रखकर बनाना हितकारी मंगलकारी है।
विदिशा प्लाट के ईशान में नैऋत्य से अधिक खाली जगह व ईशान को हल्का न नीचा रखना चाहिए।
अग्नि व वायव्य दिशा में एकदम बराबर खाली जगह रखना चाहिए।

उक्त 4 नियमों व लक्षणों से युक्त पूर्ण विदिशा (45 अंश घूमा) में बने वास्तु से भी अधिक और त्वरित अति मंगलकारी फलदायक पाये गये हैं परन्तु इनसे विपरीत विदिशा में बने वास्तु अमंगलकारी ही होते हैं। विदिशा के वास्तु में यदि प्रवेश, और खाली जगह नैऋत्य अग्नि व वायव्य से होता है तो ऐसे वास्तु अत्यन्त अशुभ फलदायक पाये गये हैं। विदिशा में नैऋत्य का प्रवेश वंशनाश, धन नाश का द्योतक है तथा आग्नेय से प्रवेश अग्निभय, चोरी लड़ाई-झगड़ा, पति∕पत्नि का नाश, अनैतिकता का जन्मदाता कहा गया है वायव्य का प्रवेश द्वार चोरी, कानूनी झगड़े, जेल, व्यापार-नाश, अधिक व्यय कराने वाला आदि पाया गया है। विदिशा के वास्तु अगर सही नियमानुसार न होने पर कई दशाओं में अपमृत्यु का कारण भी बनते हैं।

दिशा एवं विदिशा के भूखण्ड व भवन :
भवन या भूखण्ड का उत्तर, चुम्बकीय उत्तर से 22.5 डिग्री से कम घूमा होने से ऐसे भवन या भूखण्ड को दिशा में ही माना जाता है जबकि 22.5 डिग्री या उससे अधिक घूमा हुआ हो तो उसे विदिशा या तिर्यक दिशा का भूखण्ड या भवन कहा जाता है। प्राचीन काल में दिशा निर्धारण प्रातः काल व मध्याह्न के पश्चात एक बिन्दू पर एक छड़ी लगाकर सूर्य रश्मियों द्वारा पड़ रही छड़ी की परछाई तथा उत्तरायण व दक्षिणायन काल की गणना के आधार पर किया जाता था। वर्तमान में चुम्बकीय सुई की सहायता से बने दिशा सूचक यंत्र (Compass) से यह काफी सुगम हो गया है।
अब तो जी.पी.एस. (Global Positioning System) पर आधारित इलेक्ट्रोनिक कम्पास की सहायता से किसी भी वस्तु पर दिशाओं की निकटतम सही जानकारी मिल सकती है।

राशि के अनुसार करें अपने निवास का चयन :
साधारणतः निवास स्थान का चयन करते समय व्यक्ति असमंजस में रहता है कि यह मकान उसके लिए कहीं अशुभ तो नहीं रहेगा। इस दुविधा को दूर करने के लिए निवास स्थान के कस्बे, कालौनी या शहर के नाम के प्रथम अक्षर से अपनी राशि व नक्षत्र का मिलान कर शुभ स्थान का चयन करना चाहिए।

शहर व निवासकर्ता की राषि एक ही होना चाहिए। दोनों राषियां आपस में एक दूसरे से 6‘8 या 3-11 पड़े तो धन संचय में बाधा और वैर विरोध उत्पन्न करती है तथा दोनों राषियों में 2-11 का संबंध होने पर रोगप्रद साबित होती है।
इनके अलावा 1,4,5,7,9,10 वह राशियां हो तो वास्तुशाास्त्र के अनुसार लाभप्रद मानी गई है। उदाहरणतः आपकी राशि वृष है और जयपुर में आप मकान खरीद रहे है तो यह आपके लिए लाभदायक रहेगा। क्योंकि वृष राशि से गिनने पर जयपुर की मकर राशि 9 वीं पड़ेंगी तथा मकर से गिनने पर वृष 5वीं राशि है।
अतः निवासकर्ता और निवास स्थान की राषियों वृष-मकर में 9-5 का संबंध होने से शुभ तथा लाभप्रद संयोग बनेगा। इसी प्रकार निवास स्थान के नक्षत्र से अपने नक्षत्र तक गिनने से जो संख्या आए उससे भी शुभता का अनुमान लगाया जा सकता है।

निवास स्थान के नक्षत्र से व्यक्ति का नक्षत्र यदि 1,2,3,4,5 पड़े तो धनलाभ के अच्छे योग बनेंगे। 6,7,8 पड़ने पर वहां रहने से धनाभाव बना रहेगा। 9,10,11,12,13वां नक्षत्र होने पर धन-धान्य, सुख-समृद्धि में वृद्धि करता है।

यदि व्यक्ति का नक्षत्र 14,15,16,17,18,19वां हो तो जीवन साथी के प्रति चिंताकारक है। निवासकर्ता का नक्षत्र यदि 20 वां हो तो हानिकारक है। यदि व्यक्ति का नक्षत्र 21, 22, 23, 24, हो तो संपत्ति में बढ़ोतरी होती है।

25वें नक्षत्र का व्यक्ति भय, कष्ट और अशांत रहता है। 26वां हो तो लड़ाई-झगड़ा और 27वां हो तो परिजनों के प्रति शोक को दर्शाता है। राशि और नक्षत्र का संयोग बनने पर ही निवासकर्ता के लिए श्रेष्ठ फल प्रदान करता है।

पूर्व-दक्षिण में बनी सीढ़ियाँ अत्यंत शुभ :
वास्तु के अनुसार मकान में सीढ़ी या सोपान पूर्व या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। यह अत्यंत शुभ होता है। अगर सीढ़ियाँ मकान के पार्श्व में दक्षिणी व पश्चिमी भाग की दाईं ओर हो, तो उत्तम हैं। अगर आप मकान में घुमावदार सीढ़ियाँ बनाने की प्लानिंग कर रहे हैं, तो आपके लिए यह जान लेना आवश्यक है कि सीढ़ियों का घुमाव सदैव पूर्व से दक्षिण, दक्षिण से क्यूपश्चिम, पश्चिम से उत्तर और उत्तर से पूर्व की ओर रखें। चढ़ते समय सीढ़ियाँ हमेशा बाएँ से दाईं ओर मुड़नी चाहिए। एक और बात, सीढ़ियों की संख्या हमेशा विषम होनी चाहिए। एक सामान्य फार्मूला है- सीढ़ियों की संख्या को 3 से विभाजित करें तथा शेष 2 रखें- अर्थात्‌ 5, 11, 17, 23, 29 आदि की संख्या में हों। वास्तु शास्त्र में भवन में सीढ़ियाँ वास्तु के अनुसार सही नहीं हो, तो उन्हें तोड़ने की जरूरत नहीं है। बस आपको वास्तु दोष दूर करने के लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक कमरा बनवाना चाहिए। यदि सीढ़ियाँ उत्तर-पूर्व दिशा में बनी हों, तो।

तिजोरी (गल्ला) : मकान में गल्ला कहाँ रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार मकान में तिजोरी-गल्ला, नकदी, कीमती आभूषण आदि सदैव उत्तर दिशा में रखना शुभ होता है। क्योंकि कुबेर का वास उत्तर दिशा में होता है इसलिए उत्तर दिशा की ओर मुख रखने पर धन वृद्धि होती है।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें
जोतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
9993874848

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