ब्रिटेन, ईरान, नेपाल की हुई पारी- अब अमेरिका की बारी- भारत का हैट्रिक 3.0 सब पर भारी

विश्व में बदलती सरकारे, बढ़ती तकरारों व युद्ध गुटबंदी के बीच भारत के बढ़ते प्रभाव से दुनियां हैरान!
दुनियां में भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा व प्रभाव राजनीतिक स्थिरता व रिकॉर्ड तोड़ने के क्रम को विश्व रेखांकित कर रहा है- एडवोकेट के.एस. भावनानी

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दुनियां में वर्ष 2024 में कुछ देशों में चुनाव हुए, कुछ में होंगे और कुछ देशों में प्रक्रिया शुरू है, जिसमें 5 नवंबर 2024 को मुख्यतः अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव होना है, हमनें देखे ब्रिटेन व ईरान में सरकार बदल गई व नेपाल में भी उठापटक शुरू है। उधर फ्रांस में भी सुगबुगाहट हो रही है। कुल मिलाकर अगर हम विश्व की गतिविधियों सहित रूस, यूक्रेन व इसराइल, हमास युद्ध में भी देखें तो युद्ध गुट बंदी और बढ़ती राजनीतिक तकरारों के बीच अगर हम अपने महान भारत देश को देखें तो हमें सुकून मिलेगा कि हमारे देश में राजनीतिक स्थिरता, गुटबंदी से दूर व अपनी वैश्विक प्रतिष्ठा और प्रभाव बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। भारतीय पीएम 8-9 जुलाई 2024 को रूस यात्रा पर हैं जिसके लिए रूस पीएम इस मॉस्को की बेहद अहम यात्रा को लेकर उत्सुक है और वह इस यात्रा को रूस तथा भारत के संबंधों के लिए अति महत्वपूर्ण मानता है। रूस के राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास एवं कार्यालय क्रेमलिन के प्रवक्ता ने शनिवार को यह बात कही। उन्होंने यह भी दावा किया कि पश्चिमी देश इस यात्रा को ईर्ष्या से देख रहे हैं। रूसी राष्ट्रपति के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री 22 वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे और वह आठ-नौ जुलाई को मॉस्को में रहेंगे। चूंकि अभी ब्रिटेन, ईरान, नेपाल की हुई पारी, अब अमेरिका की बारी, भारत का हैट्रिक 3.0 सब पर भारी तथा विश्व में बदलती सरकारे, बढ़ती तकरारो व युद्ध गुटबंदी के बीच भारत के बढ़ते प्रभाव से दुनियां हैरान है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, दुनियां में भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा व प्रभाव, राजनीतिक स्थिरता व रिकॉर्ड तोड़ने के क्रम को विश्व रेखांकित कर रहा है।

साथियों बात अगर हम ब्रिटेन में बदली हुई सरकार से भारत पर प्रभाव की करें तो, अगर लेबर पार्टी की सरकार भारत के साथ रिश्ते सुधारने को अपने एजेंडे का हिस्सा बनाती है, तो किएर स्टार्मर के लिए भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर दस्तख़त करना सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी। मीडिया मे एक एक्सपर्ट कहते हैं, संभावित विदेश मंत्री डेविड लैमी ने संकेत दिया है कि वो जल्दी से जल्दी मुक्त व्यापार समझौते को पूरा करना चाहते हैं और इसके लिए वो जुलाई का महीना ख़त्म होने से पहले ही भारत के दौरे पर जाएंगे। ख़बरों के मुताबिक़ 26 बिंदुओं में से ज़्यादातर पर दोनों देशों में सहमति बन चुकी है। जब ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अलग हुआ था (ब्रेग्ज़िट) तब दावा किया गया था कि इससे प्रवासियों की तादाद में काफ़ी कमी आएगी। लेकिन, ब्रेग्ज़िट के बाद से आज की तारीख़ में ब्रिटेन में प्रवासियों की आबादी सबसे ज़्यादा हो चुकी है। भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर दस्तख़त की राह में एक बड़ा रोड़ा ब्रिटेन आकर बसने वाले भारतीय कामगारों को वर्क परमिट जारी करने का है।

लेबर पार्टी का घोषित लक्ष्य ये है कि वो वैध प्रवासियों की संख्या को कम करेगी और अवैध प्रवासियों को ब्रिटेन में दाख़िल होने से रोकेगी। ब्रिटेन में रह रहे बहुत से वैध भारतीय प्रवासी आईटी सेक्टर में काम करने वाले पेशेवर हैं। वो वर्क परमिट पर ब्रिटेन में रह रहे हैं और ब्रिटेन के तकनीकी क्षेत्र में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। वैसे ब्रिटेन में कुछ अवैध भारतीय प्रवासी भी रहते हैं। इनकी संख्या बहुत कम है। लेबर पार्टी की नीति में हुनरमंद प्रवासियों के कौशल का आर्थिक लाभ लेने के साथ-साथ प्रवासियों की कुल संख्या में कमी लाने के बीच संतुलन बनाने का है। ये पार्टी की व्यापक राजनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं को दर्शाता है। ब्रिटेन में रह रहे 6.85 लाख प्रवासियों में सबसे ज्यादा संख्या भारतीय मूल के लोगों की है। अपने नेशनल हेल्थ सिस्टम और आईटी सेक्टर को दुरुस्त करने के लिए ब्रिटेन को और हुनरमंद के साथ पेशेवर लोगों की दरकार है। इसके साथ-साथ उसकी ख़्वाहिश ये भी है कि ये हुनरमंद लोग सिर्फ़ भारत के न हों, दूसरे देशों से भी आएं।

लेबर पार्टी पारंपरिक रूप से विचारधारा पर आधारित विदेश नीति पर चलती रही है। मानव अधिकारों के रिकॉर्ड लेकर लेबर पार्टी अक्सर भारत और दूसरे देशों की आलोचना करती रही है।भारत की सरकार ने इसे कभी नहीं पसंद किया है। अगर किएर स्टार्मर, भारत के साथ अच्छे रिश्ते क़ायम करना चाहते हैं, तो फिर उनको भारत सरकार को ये यक़ीन दिलाना होगा कि वो ज़्यादा व्यवहारिक विदेश नीति पर चलेंगे। पिछली संसद में लेबर पार्टी के 15 सांसद पाकिस्तानी मूल के थे जबकि भारतीय मूल के केवल 6 सांसद थे। ज़ाहिर है कि लेबर पार्टी की सरकार पर पाकिस्तानी मूल के लोगों का दबाव होगा। अब ये देखना होगा कि ब्रिटेन की नई सरकार इन दोनों के बीच किस तरह संतुलन बनाती है। ब्रिटेन में हुए आम चुनावों में लेबर पार्टी को बड़ी जीत मिली है। लेबर पार्टी 14 साल के बाद सत्ता में वापस आ गई है। इस जीत के साथ ही लेबर पार्टी ने कंजर्वेटिव पार्टी और ऋषि सुनक को सत्ता से बाहर कर दिया है।

साथियों बात अगर हम ईरान में बदली हुई सरकार से भारत पर प्रभाव की करें तो, ईरान के चुनाव नतीजों का एलान हो गया है और सुधारवादी नेता मसूद पेजेशकियान को नया राष्ट्रपति चुन लिया गया है। इब्राहिम रईसी की हेलीकॉप्टर हादसे में मौत के बाद ईरान में नए राष्ट्रपति के लिए 28 मई को पहले चरण का मतदान हुआ। वहीं 5 जुलाई को हुए दूसरे चरण के मतदान के बाद मसूद पेजेशकियान ने जीत हासिल की है। उनकी पहचान एक उदारवादी और सुधारवादी नेता के रूप में हैं। अपने चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने सख्त हिजाब कानून को आसान बनाने का वादा किया था। भारत ईरान संबंधों पर क्या होगा असर? भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत आर्थिक संबंध रहे हैं। पेजेशकियन के राष्ट्रपति बनने के बाद इन संबंधों के और भी मजबूत होने की संभावना है। वे एक सुधारवादी नेता हैं और वह पश्चिमी देशों से भी संपर्क बढ़ाने के पक्षधर हैं। ऐसे में वह भारत के साथ संबंधों को प्राथमिकता नहीं देंगे, ऐसा होने की आशंका कम ही है।

खासतौर पर रणनीतिक रूप से अहम चाबहार बंदरगाह पर दोनों देशों का फोकस रहेगा। भारत ने इस परियोजना में भारी निवेश किया है और यह बंदरगाह, भारत को पाकिस्तान को दरकिनार कर मध्य एशिया तक कनेक्टिविटी प्रदान करेगा। भारत ने चाबहार बंदरगाह टर्मिनल के विकास के लिए 12 करोड़ डॉलर देने का वादा किया है और ईरान में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए 25 करोड़ डॉलर की क्रेडिट लाइन देने की भी पेशकश की है। विशेषज्ञों का मानना है कि चाहे सत्ता में कोई भी रहे, ईरान की विदेश नीति में बदलाव की संभावना नहीं है। बता दें ईरान की एक तरह से दोहरी शासन व्यवस्था है जिसमें धर्म और गणतंत्र दोनों शामिल हैं। ईरानी शासन व्यवस्था के तहत ईरान के राष्ट्रपति परमाणु कार्यक्रम या फिर मध्य पूर्व में मिलिशिया समूहों के समर्थन सहित किसी भी बड़े मुद्दे पर कोई बड़ा नीतिगत बदलाव नहीं कर सकते हैं। हालांकि, ईरान के राष्ट्रपति कानून या किसी नीति की कठोरता या फिर इसके लागू होने के तौर-तरीकों को जरूर प्रभावित कर सकते हैं। इसके अलावा ईरान के राष्ट्रपति सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई (85 वर्षीय) के उत्तराधिकारी के चयन में शामिल होंगे जिसमें उनकी भूमिका काफी अहम हो सकती है।

साथियों बात अगर हम भारत के अहम पड़ोसी मुल्क नेपाल में उठी सियासी उठापटक की करें तो भारत के अहम पड़ोसी नेपाल में सियासी उठापटक तेज हो गई है। यहां राजनीतिक समीकरण बदलने से मौजूदा प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड की कुर्सी ख़तरे में पड़ गई है। प्रचंड ने कहा है कि वो पद से इस्तीफ़ा नहीं देंगे बल्कि संसद में विश्वासमत का सामना करेंगे। ऐसे में अब प्रचंड के पास 30 दिनों का वक्त है। प्रचंड की सरकार पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी (सीपीएन-यूएमएल) के समर्थन से चल रही थी। ओली की कम्युनिस्ट पार्टी का गठबंधन अब नेपाली कांग्रेस के साथ हो गया है। कम्युनिस्ट पार्टी के उप महासचिव ने कहा है कि नेपाली कांग्रेस से समझौते के कारण यह सब हो रहा है। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री नेपाली कांग्रेस से एक महीने से राष्ट्रीय एकजुटता की सरकार बनाने के लिए बात कर रहे थे। इसी वजह से अविश्वास का माहौल बना। ऐसे में हमने नेपाली कांग्रेस से गठबंधन किया।

भारत और नेपाल लंबे वक्त से दोस्त रहे हैं। कहा जाता है कि नेपाल और भारत के बीच रिश्ता रोटी-बेटी का है। एक्सपर्ट कहते हैं, दोनों दोस्त रहे हैं तो दोनों के रिश्तों में ज्यादा बदलाव आने की उम्मीद नहीं है, ये नहीं कह सकते कि दोनों के रिश्ते ख़राब होंगे, लेकिन के.पी. शर्मा ओली आए तो थोड़ा-सा बदलाव हो सकता है क्योंकि वो पहले भारत से थोड़ा नाराज थे। एक्सपर्ट साल 2020 का वो वाकया याद दिलाते हैं, जब नेपाल ने अपना एक नक्शा जारी किया था, इस नक्शे से भारत सहमत नहीं था और उसने इसे अस्वीकर किया था। नेपाल ने मई 2020 में अपना आधिकारिक नक्शा जारी किया, जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा इलाक़ों को नेपाल की पश्चिमी सीमा के भीतर दिखाया है। सुरेंद्र फुयाल कहते हैं कि इसके बाद हाल ही में नेपाल ने उसी नक्शे को एक नोट में भी डाल दिया, तो इसे लेकर भी भारत में हलचल हुई थी। वो कहते हैं, अगर के.पी. शर्मा ओली प्रधानमंत्री बनते हैं तो ये भारत के लिए चुनौती साबित हो सकती है। लेकिन ये गठबंधन (सीपीएन-यूएमएल और नेपाली कांग्रेस) की सरकार होगी।

नेपाली कांग्रेस का ज़ोर कूटनीतिक रास्तों के जरिए समस्या का समाधान ढूंढने पर होता है। नेपाली कांग्रेस संतुलित और तटस्थ नजरिया रखते हुए काम करने को कह सकती है, ऐसे में दोनों के रिश्तों में अधिक बदलाव नहीं आना चाहिए। नेपाल में पिछले 13 सालों में 16 सरकारें बन और गिर चुकी हैं। इस तरह भारत के पड़ोसी देश में राजनीतिक अस्थिरता का दौर जारी है। ग़ौरतलब है कि नेपाल की प्रतिनिधि सभा जिसमें कि कुल 275 सीटें हैं उसमें नेपाली कांग्रेस के 89 सीट है जबकि सीपीएन, यूएमएल के पास 78 सीट है, ये दोनों मिला कर 167 होते हैं, जबकि बहुमत के लिए महज 138 सीट चाहिए। दोनों पार्टियों के बीच हुए समझौते की अब तक जो जानकारी सामने आयी है उसके मुताबिक दोनों नई सरकार तो बनाएंगे ही, चुनाव प्रक्रिया में सुधार और संविधान में संशोधन भी करेंगे। साथ ही पावर शेयरिंग फॉर्मूला यानि कि सत्ता में जिस तरह की भागीदारी हो इसका रोडमैप तैयार करेंगे। देऊबा और ओली डेढ़-डेढ़ साल के लिए पीएम बनेंगे। पीएम का पद पहले ओली संभाल सकते हैं।

साथियों बात अगर हम अमेरिका में 5 नवंबर 2024 को मतदान के परिणाम के बाद की स्थिति की करें तो अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव करीब आ रहे हैं। ऐसे में ट्रंप और बाइडेन की बीच मुकाबला है। दुनिया भर के एक्सपर्ट का मानना है कि अगर ट्रंप दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं तो यह भारत के साथ ही पूरी दुनियां के लिए ठीक नहीं होने की संभावना है। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने का नेगेटिव असर दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं पर दिखने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से हटेंगे, ट्रंप नाटो से अमेरिका को अलग कर सकते हैं, अन्य ताकतवर देशों होंगे हावी, अमेरिका की तरफ से आयात पर टैरिफ बढ़ाने का व्यापक असर होगा।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि ब्रिटेन, ईरान, नेपाल की हुई पारी- अब अमेरिका की बारी- भारत का हैट्रिक 3.0 सब पर भारी।विश्व में बदलती सरकारे बढ़ती तकरारों व युद्ध गुटबंदी के बीच भारत के बढ़ते प्रभाव से दुनियां हैरान! दुनियां में भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा व प्रभाव राजनीतिक स्थिरता व रिकॉर्ड तोड़ने के क्रम को विश्व रेखांकित कर रहा है।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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