हावड़ा स्थित रामराजा तल्ला के राम राजा पूजा का संक्षिप्त इतिहास

राज कुमार गुप्त, हावड़ा । पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले का सांतरागाछी क्षेत्र अनादि काल से जाना जाता है। जब की तुलनात्मक रूप से रामराजा तल्ला की ख्याति मात्र 250 वर्ष है। सांतरागाछी के तत्कालीन प्रसिद्ध जमींदार अयोध्या राम चौधरी द्वारा शाही पोशाक में राम-सीता की पूजा शुरू करने के तुरंत बाद राम मंदिर से सटे क्षेत्र को रामराजातल्ला के नाम से जाना जाने लगा। कहा जाता है कि राम भक्त जमींदार अयोध्या राम चौधरी को स्वप्न में श्री रामचंद्र की पूजा करने का निर्देश प्राप्त हुआ था। उस स्वप्नआदेेश को साकार करने के लिए वे इलाके में वृहतर तौर से सार्वजनिक पूजा के रूप में रामसीता की पूजा करने के लिए आग्रही हुए।

परंतु उस समय उस क्षेत्र में सार्वजनिक सरस्वती पूजा बहुत ही प्रसिद्ध थी और अधिकांश ग्रामीण इस पूजा में काफी हर्ष उल्लास से शामिल होते थे। नतीजतन, ग्रामीणों के एक समूह ने इस सार्वजनिक राम पूजा का विरोध किया। दोनों पक्षों के बीच कई चर्चाओं के बाद आखिरकार यह तय हुआ कि रामसीता की पूजा को ही बड़े रूप से किया जाएगा। लेकिन सरस्वती पूजा के दिन मूर्ति के निर्माण के लिए बांस की कटाई और प्रारंभिक पूजा के साथ रामसीता जी की विशाल मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू होगा, साथ ही रामसीता की मूर्ति के शीर्ष पर देवी सरस्वती की पांच मूर्तियां होंगी, जो कि उस समय छेत्र में हो रही पांच सार्वजनिक सरस्वती पूजा के तौर पर होगी।

उसी समय से अब तक सरस्वती पूजा के दिन ही छेत्र के षष्ठीतल्ला से निर्दिष्ट बांस की झाड़ी से बांस काटने फिर चौधरीपाड़ा के शिव मंदिर में इन बांसों की पूजा करने के बाद रामसीता की विशाल मूर्ति बनाने की प्रारंभिक तैयारी शुरू हो जाती है। फिर कुम्हारटोली के मूर्तिकार गौर पाल के वंशजों द्वारा रामराजातल्ला बाजार में आठचाला मूर्तियाँ बनाने का काम शुरू कर दिया जाता है।

ढाई सौ साल से भी अधिक पुरानी यह पूजा पहले तीन दिन, फिर पंद्रह दिन और फिर एक महीने तक होती थी। परंतु वर्तमान में राम राजा पूजा और उस अवसर पर लगने वाले मेले चैत्र या बैशाख मास की रामनवमी तिथि को शुरू होती है और बंगला श्रावण मास के अंतिम रविवार तक चलती है। पहले इस पूजा के दौरान हर शनिवार और रविवार को यात्रा होती थी परंतु अब ऐसा नहीं होता है, लेकिन प्रतिदिन पूजा, भोग, निबेदन, संध्याआरती आदि होते हैं।

रावण के वध के बाद श्री राम जी का राज्याभिषेक रूप का यहां पार्षदों समेत राजा राम और सीता की मूर्तियों की पूजा की जाती है। राम सीता जी की मूर्ति के दोनो तरफ महादेव और ब्रह्मा सहित (विष्णु के अवतार तो राम जी हैं ही) कुल 26 मूर्तियाँ हैं। परंतु रामसीता जी के सिर के शीर्ष पर पाँच सरस्वती मूर्तियाँ हैं। देवी जगधात्री की दो मूर्तियाँ भी दाएं बाएं हैं, सबसे ऊपर बासुदेव, राम के दोनों किनारों पर लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, विभीषण, हनुमान, जम्बवंत, शिवजी के अनुचर नंदी-भृंगी आदि की मूर्तियां भी होती है।

मुख्य मंदिर के बगल में महावीर हनुमान की एक अलग से विशाल मूर्ति की पूजा होती है। सावित्री-सत्यवन के अलग मंदिर कक्ष और विष्णु के बामन अवतार मूर्ति की भी अलग मंदिर कक्ष में पूजा की जाती है।

इसी क्षेत्र के अन्य जगहों पर सौम्य चंडी (चंडी माता) की पूजा पास इच्छापुर में तथा बाक्सारा में नई और पुरानी नवनारी (राधाकृष्ण) में की जाती है। सौम्य चंडी माता की पूजा रामनवमी से दो दिन पहले अर्थात सप्तमी से शुरू हो जाती है, जबकि नई और पुरानी नवनारी की पूजा अक्षय तृतीय और बुद्धपूर्णिमा पर शुरू होती है। हालांकि, केवल रामराजा तल्ला में ही चार महीने का लंबा मेला लगता है, जो भारत का सबसे लंबा मेला है।

अगस्त के दूसरे या तीसरे रविवार बंगला श्रवण के महीने में अंतिम रविवार को चारो विशाल मूर्तियों को जिन्हें रामविजय के नाम से जाना जाता है को एक ही दिन एक साथ गंगा में विसर्जित की जाती है। हालाकि दो साल पहले रामराजा की मूर्ति के ठीक सामने एक स्थाई मंदिर भी बना दी गई है। इसमें राम सीता जी की पत्थर की मूर्ति स्थापित की गई है। जिससे की श्री राम सीता जी की बारहों महीने नित्य पूजा हो सके।

साभार : प्रस्तुत लेख श्री रामराजा परिषद द्वारा प्रकाशित पुस्तक, एखोन दिगंत पत्रिका, हावड़ा जिले का इतिहास तथा अन्य स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर लिखा गया है।

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