पुस्तक समीक्षा : सब मिट्टी, गजल संग्रह, गजलकार – दीक्षित दनकौरी

।।पुस्तक समीक्षा।।
सब मिट्टी (गजल संग्रह)
गजलकार : दीक्षित दनकौरी
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
मूल्य : ₹299/-

सुरेश चौधरी ‘इंदु’, कोलकाता। गजलों का हिन्दी में कहा जाना कोई अकस्मात हुई घटना मात्र नहीं है, न ही यह दुष्यंत कुमार के बाद ही आई हुई विधा है। किसी भी विधा को परिपक्वता प्राप्त करने के लिए एक कालखंड की आवश्यकता होती है, हिन्दी गजलों के साथ भी यही हुआ है। कबीर की
हमन है इश्क मस्ताना हमन को होशियारी क्या,
रहें आजाद या जग से हमन दुनिया को यारी क्या।
इसे क्या हम हिन्दी गजल की श्रेणी में नहीं ले सकते?
दुष्यंत कुमार ने गजलों को हिंदी में लिखकर स्थापित किया यह सर्वमान्य है। एक नया चलन आरम्भ हुआ, उसके पहले अरबी फारसी शब्दों से युक्त उर्दू ग़ज़ल ही गजल मानी जाती थी। दुष्यंत कुमार की इस परंपरा को हिंदी के कई कवियों/शायरों ने आगे बढ़ाया। दुष्यंत के बाद हिंदी ग़ज़ल में जिन गिने-चुने दो-चार कवियों/शायरों ने एक मुकाम हासिल किया, उन चुनिंदा नामों में एक नाम है दीक्षित दनकौरी।

हर साहित्य के दो रूप होते हैं एक जन सामान्य के लिये ग्राह्य दूसरा शैक्षणिक कार्य हेतु। परंतु जब कोई शायर या रचनाकार वही गूढ़ बातें सरल सहज शब्दों में कह देता है तो मुंशी प्रेमचंद बन जाता है या दीक्षित दनकौरी। रचना वही युगों तक जीवित रहती है जो सीधे दिल में पहुंचे और उसकी मारक क्षमता ऐसी हो कि पाठक या श्रोता आह भी करे वाह भी करे।
एक प्रसिद्ध दोहे की पंक्ति है सिंहन के नहिं लेहड़े, हंस चले ना पात….
अर्थात कीमती वस्तु बहुतायत में नहीं पाई जाती, क्वालिटी कभी क्वांटिटी में नहीं मिलती। यही बात दनकौरी जी के शे’रों के साथ कही जा सकती है। दीक्षित दनकौरी के बहुचर्चित पहले गजल संग्रह ‘डूबते वक्त‘ के लगभग 23 वर्ष बाद यह दूसरा ग़ज़ल संग्रह सब मिट्टी देश के अग्रणी प्रकाशक, वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है जो हिंदी और उर्दू में साथ-साथ, यानी हर गजल हिंदी में भी और उर्दू में भी। इस संग्रह में 5-5 शे’रों वाली 48 शानदार गजलें हैं साथ ही चर्चित शे’र शीर्षक के अंतर्गत 45 उद्धरणीय शे’र भी हैं।

एक बैठकी में पूरी किताब पढ़ गया। लेकिन गजलों का आनंद तो चाय की चुस्की की तरह लेना चाहिए, धीरे-धीरे एक-एक सिप लेते हुए। अतः दुबारा, तिबारा रसास्वादन किया, और जब मन होता है तो बार-बार इन गजलों को पढ़कर भाव विभोर होता रहता हूं। चाय की चुस्की की तरह।
बस इतना ही कहूंगा कि इस संग्रह की हर गजल और हर गजल का हर शे’र उम्दा ही नहीं अनमोल हीरे जैसा है, जमा करके बांधकर मन की तिजोरी में सुरक्षित रखने लायक है। शीर्षक सब मिट्टी कितने साधारण से दो शब्द हैं, और आम लोग इन्हें सैकड़ों बार बोलते होंगे, प्रयोग करते होंगे पर कभी सोचा नहीं कि इन दो शब्दों को ग़ज़ल के मिसरों में इतने दार्शनिक अंदाज़ में पिरोया जा सकता है –
क़ब्रों पर लिख लो तहरीरें लाख मगर,
इज़्जत, शोहरत, मान, बड़ाई, सब मिट्टी।

सब मिट्टी मुहावरे को ग़ज़ल में प्रभावी ढंग से इस प्रकार का प्रयोग वो भी इतनी मार्मिकता से, कोई सिद्धहस्त शायर ही कर सकता है। दीक्षित दनकौरी के एक और शे’र का तेवर देखिए –
मुझे भी सर झुकाना चाहिए था,
तुझे पहले बताना चाहिए था।

खासियत तो यह है कि इतने सरल सामान्य शब्दों से कैसे कोई भावों का समंदर बना सकता है। भारी भरकम अल्फाज, भारी भरकम शब्दावली गजलों में सुनते आए हैं, तब आम बोलचाल वाले इन शब्दों को सुनकर लगता है ग़ज़ल केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि शब्दों के साथ भावनाओं का मेल है।
दीक्षित दनकौरी के निवास पर जाने का मुझे मौका मिला, मुझे बड़े भाई का स्थान देते हैं अतः उतना ही स्नेह घर पर इनके पूरे परिवार से मिला, ख़ास बात जो मैंने देखी कि इसी संग्रह का एक शे’र इनके घर के प्रवेश द्वार पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ है –
खुलूसो – मुहब्बत की खुशबू से तर है,
चले आईए,ये अदीबों का घर है।

सच है कि अदीबों के घर में ही यह संस्कारित सत्कार मिल सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी जी ने जब दीक्षित दनकौरी का यह शे’र संसद में पढ़ा था तो पूरे विश्व में रातों रात दीक्षित दनकौरी की ख्याति में चार चांद लग गए।

न मांझी, न रहबर, न हक़ में हवाएं,
है कश्ती भी जर्जर, ये कैसा सफर है।

मुझे इनका यूँ तो हर शे’र बहुत पसंद हैं पर कुछ तो दिल को छू जाते हैं। गजल जो प्रेमी-प्रेमिका और हुस्न के इर्द गिर्द लिपटी हुई थी, उसे सच्चे मायने में भावों में पिरोकर जीवन के विभिन्न आयामों से जोड़ने का काम इनकी शायरी ने किया है।

या तो कबूल कर मेरी कमजोरियों के साथ,
या छोड़ दे मुझे, मेरी तनहाइयों के साथ।

ये शब्द, ये सिद्धांत, ये जज्बा ही दीक्षित दनकौरी को आज के हिंदी गजलकारों में सबसे ऊंची पायदान पर रखता है। दीक्षित दनकौरी का यह शे’र तो मील का पत्थर है जो अदबी दुनिया में हमेशा-हमेशा के लिए अंकित हो गया है।

शे’र अच्छा-बुरा नहीं होता,
या तो होता है या नहीं होता।
गजल सृजन के साथ-साथ दीक्षित दनकौरी गजल के प्रसार-प्रसार के लिए भी पूरे मनोयोग से लगे हुए हैं। विश्व प्रसिद्ध गजल कुंभ जैसे उल्लेखनीय आयोजन भी कर रहे हैं।
मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं, आप यूँ ही बुलन्दियों पर रहें।

सुरेश चौधरी ‘इंदु’, समीक्षक

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