पुस्तक समीक्षा : कवियित्री नलिनी पुरोहित की “काव्यामृत रामायण”

।।पुस्तक समीक्षा।।
काव्यामृत रामायण
(प्रबंध काव्य)
डॉ. नलिनी पुरोहित
जाह्नवी प्रकाशन
गांधी नगर
382006
गुजरात
रुपए 350.00
सरल सुबोध भाषा में रामकथा की सारगर्भित अभिव्यंजना और कविता में लोकमंगल की कामना।

समीक्षक : राजीव कुमार झा, कवयित्री नलिनी पुरोहित के द्वारा रचित ‘काव्यामृत रामायण’ भगवान राम की सुंदर जीवनकथा की सरस काव्यमय प्रस्तुति के समान है।

सदियों से रामकथा ने हमारी जीवन चेतना के अलावा देश के साहित्य लेखन को गहराई से अनुप्राणित किया और इस काव्यग्रंथ की रचना को भी इस प्रसंग में देखा जा सकता है। रामायण में भक्ति रस के माध्यम से जीवन के यथार्थ की विवेचना और राज्यादर्श की स्थापना इसका प्रमुख प्रतिपाद्य माना जाता है। नलिनी पुरोहित के इस प्रस्तुत काव्यग्रंथ की विषयवस्तु में इस तथ्य का समावेश इसे वर्तमान संदर्भों में सार्थकता प्रदान करता है।

महाकाव्य की जीवनकथा के विस्तृत आयामों को उद्घाटित करता है और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष जीवन के समस्त पुरुषार्थों की विवेचना इसमें पढ़ने को मिलती है। नलिनी पुरोहित के ‘काव्यामृत रामायण’ सरलता से रामकथा के समस्त प्रसंगों के माध्यम से जीवन के यथार्थ को उद्घाटित करती है।

“फैली चहुं ओर खुशियों की लहर, जान ज्येष्ठ पुत्र राम बनेंगे युवराज/माता कौशल्या थकती नहीं बलैया, आशीर्वाद की झड़ी थी आज/इधर देवताओं की स्वर्गलोक में हुई सभा, जो बनेंगे राम भावी अवध राज/कैसे फलीभूत होगा विष्णु अवतार, कैसे फलीभूत होगा विष्णु अवतार, कैसे होगा पूर्ण रावण का संहार काज।”

“फेंक आभूषण, काले वस्त्र धारण कर पहुची कैकेयी कोप भवन में/कहा था जो कुछ मंथरा ने, उतरी थी हर बात नृपति प्रिया के गले में/दौड़ते हांफते आए नृप दशरथ, पूछने हाल कैकेयी का, कोप भवन में/पूछा क्या हुआ, मेरी प्राणप्रिया को, राजतिलक की इस शुभ घड़ी में।” “हो गया मैं पितृविहीन, विकल राम, दृगों से अविरल अश्रु बहाते/भाव विह्वल बने भाइयों संग, अवसाद नैनों से बहाते/वात्सल्यता में मां कौशल्या, कहे बेटे राम से धीरज बंधाते/खुद संयमित बन, सब्र से सबको करो शांत, होनी स्वीकारते।”

सदियों से रामकथा भारतीय जनजीवन में यहां लोगों के हृदय में आकंठ रची बसी रही है। इसमें हमारी संस्कृति का सच्चा स्वर प्रवाहित होता रहा है और यह पावन कथा जीवन के तमाम पक्षों की सुंदर विवेचना प्रस्तुत करती है। रामकथा के रचयिता के रूप में वाल्मीकि का नाम प्रसिद्ध है और उनकी रामायण को हमारे देश की साहित्यिक परंपरा में आदिकाव्य कहा जाता है। रामायण संसार का महान महाकाव्य है। इसमें हमारी संस्कृति और सभ्यता की गाथा वर्णित है । रामकथा का कथानक जीवन में धर्म-अधर्म और पाप-पुण्य के निकष पर सबको सद्कर्म की प्रेरणा देता है। वाल्मीकि की रामायण की प्रेरणा से कालांतर में भारत की समस्त भाषाओं में रामकथा की रचना हुई और आज भी राम की इस पावन कथा का गान यहां के समस्त कवियों की काव्य साधना का ध्येय रहता है। हिंदी की सुपरिचित कवयित्री नलिनी पुरोहित के रामकथा पर आधारित उनके काव्य ग्रंथ “काव्यामृत रामायण” का विवेचन इस प्रसंग में समीचीन है।

भारतीय समाज में रामायण की कथा यहां की अनगिनत लोक भाषाओं में रची – लिखी जाने के बाद लोकप्रिय हुई और जन जन के हृदय का हार बनकर राम के दिव्य चरित और पावन संदेश से समाज और संस्कृति को संबल प्रदान करती रही। नलिनी पुरोहित के “काव्यामृत रामायण” की रचनाभूमि और लेखन संदर्भ को भी इसी प्रसंग में देखा जाना चाहिए। राम के पावन चरित की सुंदर कथा का स्तवन करते हुए यहां इस काव्य ग्रंथ के सारे कथा सोपानों में हमारे देश की जीवन परंपरा के समग्र तत्वों से अवगत होने का सौभाग्य मिलता है और कवयित्री धर्म – अध्यात्म, ज्ञान, वैराग्य, कर्म, बुद्धि-विवेक की कसौटी पर रामकथा के माध्यम से इस कलिकाल में एक तरह से सबको नवजीवन का संदेश सुनाती है।

भारतीय काव्य परंपरा में रामकथा सचमुच अमृत के समान रही है और सबको सदाचार की सीख देती रही है। इसमें हमारी संस्कृति का सार समाया है। इस कथा में जीवन का प्रतिपाद् विस्तृत है और घर परिवार की संकीर्ण चहारदीवारी से लेकर इसमें दशरथ – जनक के राजदरबार और राम के वनवास श्री की कथा के रूप में आसुरी शक्तियों के साथ उनके विकट संघर्ष की कहानी धरती पर मानवता के विजय की गाथा का गान करती है। रामकथा पर आधारित नलिनी पुरोहित के इस प्रस्तुत काव्य ग्रंथ में देश की संस्कृति सभ्यता के इन अध्यायों का अवगाहन सुंदरता से हुआ है।

“हो गया मैं पितृविहीन, विकल राम, दृगों से अविरल अश्रु बहाते/भाव विहवल बने भाइयों संग, अवसाद नैनों से बहाते/वात्सल्यता में मां कौशल्या, कहे बेटे राम से धीरज बंधाते/खुद संयमित बन, सब्र से सबको करो शांत, होनी स्वीकारते”

फेंक आभूषण, काले वस्त्र धारण कर पहुची कैकेयी कोप भवन में/कहा था जो कुछ मंथरा ने, उतरी थी हर बात नृपति प्रिया के गले में/दौड़ते हांफते आए नृप दशरथ, पूछने हाल कैकेयी का, कोप भवन में/पूछा क्या हुआ, मेरी प्राणप्रिया को, राजतिलक की इस शुभ घड़ी में।”

सजल नयन मुस्कुरा उठे, पुन: वीर हनुमान को देख कर/डूबा रहूंगा तुम्हारे ऋणों से, रहना मेरे सगे भाई बनकर/अब न रहेगा अकेला राम, होगी सबकी दृष्टि तुम पर/महावीर बिना राम की कल्पना भी नहीं हो सकती धरा पर।”

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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