‘Black Box’ of Air Veteran Vinay Singh Bais!!!

नई दिल्ली। मैं AC(UT) SINGH VK के जीवन में पहली बार 25 मार्च 1996 को आया था। उस समय यह तांबरम के WTI में ट्रेनिंग कर रहे थे। मैं उनके जीवन में तब आया था, जब उनकी शादी भी नहीं हुई थी। मैं उनके साथ पिछले वर्ष सिल्वर जुबिली मना चुका हूँ। जब मैं पहली बार JUBILLE 5/3 में आया तो मेरे काले सुडौल चमकदार शरीर के सामने वाले साइड में सफेद पेंट से-
963 0104- S
AC(UT) SINGH VK
ENG FIT
4(T) SQN
लिखा गया था। ये अक्षर आज भी मेरे दिल में अंकित हैं।

मेरे आने के बाद AC(UT) SINGH VK ने मेरे अंदर लॉजिस्टिक से मिले हुए तमाम सामान, कई तरह के यूनिफॉर्म, घर से लाया हुआ बिस्तर आदि रखे थे। हालांकि AC(UT) SINGH VK को एयरफोर्स ने सरकारी कपबोर्ड (छोटी अलमारी) प्रदान की थी। जिसमें वह खाने पीने का सामान और कुछ अन्य चीजें रखा करते थे। अलमारी में वह घर से आए हुए पत्र और कई बार पैसे-रुपए भी रखते थे। लेकिन कुछ पत्र जो रंगीन हुआ करते थे वह उनको मेरे अंदर कपड़ों के बीच छुपा कर रखते थे, पता नहीं क्यों?

मैं उनके साथ WTI से MTI गया। वहाँ मैं उनके साथ पूरे 21 महीने RAJAJI -2 मे रहा। 18 मार्च 1998 की बात है। उस दिन AC(UT) SINGH VK बहुत खुश थे। उन्होंने तो नहीं बताया लेकिन बाकी लोगों से पता चला कि उन्हें डायरेक्ट LAC रैंक मिला हुआ है और अब उन्हें ‘P Staff’ के रूप में बीदर जाना होगा। तब पहली बार मेरी पूरी क्षमता के अनुसार मुझ में सामान रखा गया था। इसमें एयरफोर्स की कई तरह की यूनिफॉर्म, कुछ पुराने सिविल कपड़े, बहुत सारी टेक्निकल किताबें, कैंटीन का कुछ सामान और रम की दो बोतलें और कुछ पुराने पत्र थे। जब मैं LAC SINGH VK के साथ चेन्नई से बीदर आया। तब पहली बार मेरे ऊपर पेंट से
From-
LAC SINGH VK
CHENNAI
To,
SELF
BIDAR
लिखा गया था।
बीदर पहुंचने पर मुझे थोड़ी अधिक जगह नसीब हुई। मुझसे कुछ सामान निकाला गया और कुछ भरा भी गया। बीदर पहुंचने पर मैंने यह नोटिस किया कि मेरे अंदर कुछ मॉडर्न से गिफ्ट रखे जाने लगे थे, जो मुंबई से आते थे। तब मुझे किसी ने बताया कि LAC SINGH VK की शादी तय होने वाली है। मुझे थोड़ी जलन तो हुई कि इनकी जिंदगी में कोई और आने वाला है लेकिन फिर यह सोचकर संतोष कर लिया कि “फर्स्ट लव” तो मैं ही हूं । बीदर में ही LAC SINGH VK की शादी हुई और इनका कॉरपोरल रैंक में प्रमोशन भी हुआ। अब ये CPL SINGH VK बन चुके थे। तब इन्होने नीली वाली यूनीफार्म से ‘प्रोपेलर’ हटवाकर दोनों तरफ दो स्ट्रिप (फीतियां) लगवाई थी और खूब मिठाई भी बांटी थी।

बीदर से मैं हैदराबाद आया। चूंकि मैं बीदर से हैदराबाद सर्विस ट्रक से आया था इसलिए इस बार मेरे ऊपर-
From
CPL VK SINGH
Bidar
To
SELF,
AFA (हैदराबाद)
नहीं लिखा गया था।
अच्छा मुझे एक बात समझ नहीं आई कि अब CPL SINGH VK अपना नाम CPL VK SINGH क्यों लिखने लगे थे?? कोई तो कह रहा था कि सर्विस का नया नियम आया है कि अब वायु सैनिक अपना नाम सीधे-सीधे लिख सकते हैं। हैदराबाद में कुछ ही दिनों बाद मेरी सौतन यानी CPL VK SINGH की पत्नी इनके साथ रहने आ चुकी थी। उन्होंने इनके दो कमरे के क्वार्टर को खूबसूरती से सजाया था। आगे वाले कमरे में 2 कुर्सी, एक मेज और एक लकड़ी का तखत रहता था। चूंकि उस समय लिविंग- इन के बहुत से लड़के इनसे मिलने आया करते थे और उनके बैठने के लिए जगह कम पड़ जाती थी, इसलिए एक दिन CPL VK SINGH की पत्नी ने एक काला कंबल, एक सर्विस की नीली दरी और उसके ऊपर एक बढ़िया सा चद्दर बिछाकर मुझे सोफा बना दिया था। उस दिन मुझे पता चला कि मेरे अंदर सिर्फ सामान ही नहीं रखा जा सकता है, बल्कि मेरे ऊपर तशरीफ भी रखी जा सकती है।

इस बीच CPL VK SINGH की पत्नी ने एक सुंदर सी कन्या को जन्म दिया था। अब उसके भी कुछ कपड़े मेरे अंदर रखे जाने लगे थे। चूंकि यह मेरे अंदर पहले से रखे गए सामान के अतिरिक्त था इसलिए मुझे जबरन दबाकर बंद किया जाता था। लेकिन छोटी गुड़िया के छोटे-छोटे, नरम मुलायम कपड़ों के लिए मैं यह कष्ट भी सह लेता था।

फिर 2003 में अचानक एक बॉक्स और लाकर मेरे बगल में रख दिया गया। मुझे शक और आश्चर्य दोनों हुआ कि यह बॉक्स क्यों आया है? क्या अब मैं बूढ़ा हो चुका हूं और मुझे रिटायर कर दिया जाएगा या फिर कुछ और कारण है?? तभी किसी ने बताया कि CPL VK SINGH की पोस्टिंग आ गई है और इन्हें बैरकपुर जाना होगा। तब जाकर मेरी जान में जान आई।

अच्छा मुझे इस बात की राहत भी थी कि दूसरा बॉक्स आने से मेरा कुछ तो बोझ कम होगा और हुआ भी वही। इस ट्रांसफर के समय पहली बार मेरे चारों हुक में टाट की बोरी से सिलाई की गई ताकि भारी बॉक्स पकड़ने में सुविधा रहे और हाथ कल्लाए नहीं। इस बार मेरे ऊपर लोहे की स्ट्रिप भी बांधी गई ताकि मैं रेलवे कर्मचारियों की जुल्मी उठापटक से सुरक्षित रहूँ और मुझे कोई रास्ते में आसानी से खोल न सके और हां, पहली बार मेरे ऊपर पेंट या परमानेंट मार्कर से नहीं बल्कि कंप्यूटर से कागज की स्लिप निकाल कर –
FROM
CPL VK SINGH
Sec, bad
To,
SELF
Howrah
लिखा गया।
बैरकपुर में, मैं CPL VK SINGH के साथ सिविल, जुगाड वाले सरकारी क्वार्टर और फिर अंत में इनके खुद के क्वार्टर में रहा। यहां पर CPL VK SINGH पदोन्नत होकर SGT VK SINGH बन गए। अब इन्होने सभी यूनीफार्म से दो फीती हटवाकर तीन फीती लगवाई थी। इस बार इन्होने मिठाई तो खूब बांटी ही थी, इनके नाम से SNCO मेस के सभी ड्रिंकर ने दो-दो पैग दारू भी पी थी। लोग कहते थे कि यह वायुसेना की पुरानी परंपरा है। अब ये राइफल पकड़कर परेड नहीं करते थे तथा गार्ड ड्यूटी करने के बजाय गार्ड को चेक करते थे। कभी गार्ड ड्यूटी लग भी जाती तो एक छोटी और हल्की सी राइफल लेकर गार्ड ड्यूटी करते थे।

बैरकपुर में ही SGT VK SINGH की पत्नी ने एक सुंदर से पुत्र को भी जन्म दिया था। अब SGT VK SINGH के परिवार में मैं और मेरा एक साथी बॉक्स, खुद SGT VK SINGH, उनकी पत्नी, एक बिटिया और एक बेटा सहित कुल छह लोग हो चुके थे।

कुछ ही दिन हंसी खुशी से बीते होंगे की पता चला कि SGT VK SINGH को तेजपुर जाना होगा। तब मैंने पहली बार इन्हें काफी दुखी देखा था। लोग कह रहे थे कि तेजपुर सेमी हार्ड पोस्टिंग है। वहाँ का मौसम और जहाज दोनों ही खतरनाक हैं। हालांकि भारी मन से ही सही इन्होंने पैकिंग शुरू की। लेकिन अब SGT VK SINGH, उनकी पत्नी और दो बच्चो का सामान पहले से मौजूद दो बॉक्स में नहीं आ पा रहा था, इसलिए एक और बॉक्स खरीदा गया। चूंकि मैं काफी पुराना और बदरंग हो चला था अतः मेरे काले रंग के ऊपर गाढ़े हरे रंग की दो कोट पुताई की गई। अब मैं भी फौजी जैसा camouflage रंग का दिखने लगा था। बाकी दो बॉक्स भी इसी रंग से रंगे गए। मेरे ऊपर इस बार कंप्यूटर से निकाली गई कागज की स्लिप में कुछ इस प्रकार लिखा था –
FROM,
SGT VK SINGH
AFLC(BKP)
TO,
SELF
TEZPUR
अब मैं SGT VK SINGH के साथ हरे भरे, प्राकृतिक सुंदरता युक्त कस्बे तेजपुर आ गया था। लेकिन यहाँ बंदरों, साँपों और मच्छरों की बहुतायत थी। भूकंप और बारिश कभी भी आ जाती थी। पानी भी कुछ पीला और बदरंग सा था। तेजपुर में पता नहीं क्यों ये यूनिट में कम ही रहते थे। कभी तांबरम, कभी पुणे, कभी दिल्ली, कभी गुवाहाटी तो कभी शिलांग चले जाते थे- पूरे तीन चार महीने के लिए। मैं तो डर ही जाता था। फिर किसी ने मुझे बताया की कोर्स, टीडी यहां कुछ ज्यादा ही है। इसी आपाधापी में चार साल बीत गए।

अगस्त 2014 में एक दिन देखता हूं ये बहुत खुश हैं। कोई कह रहा था कि इन्हे चंडीगढ़ जाना है। SGT VK SINGH तेजपुर आने का नाम सुनकर जितना दुःखी हुए थे, यहां से जाने का समाचार सुनकर उतने ही खुश हुए। पुनः यहां वापस न आना पड़े इसके लिए इन्होंने हालेश्वर मंदिर में पूरे सेक्शन, पड़ोसियों और इष्ट मित्रों को खिचड़ी भी खिलाई थी। मारे खुशी के ये तमाम बांस से बने सजावटी आइटम खरीद लाए थे। कुछ चाय के पैकेट भी। रम की दो बोतल तो खैर मेरे साथ हर ट्रान्सफर में रहती ही थी। लेकिन इन सबको रखने के लिए एक नया बॉक्स लाया गया। अब SGT VK SINGH मियां-बीबी बच्चों समेत चार थे और हम भी अपने तीन साथियों समेत चार थे। अब हमारे परिवार में कुल आठ सदस्य थे।

पुनः हम चारों की एक बार फिर पैकिंग की गई। ताला लगाकर हमें लोहे की स्ट्रिप से बांधा गया तथा मेरे और मेरे साथियों के ऊपर –
FROM,
SGT VK SINGH
TEZPUR
TO
SELF
CHANDIGARH
लिखा गया।

चंडीगढ़ मे ये शहर और काम से तो बहुत खुश थे लेकिन लोगों से दुखी थे। कहते थे कि बड़े और सुविधायुक्त शहरों में लोग सिर्फ अपने से मतलब रखते हैं। पोस्टिंग आने पर न कोई रिसीव करने आता है न जाते समय ज्यादा लोग छोडने स्टेशन जाते हैं। लोग अब मॉडर्न हो चले थे। चंडीगढ़ में SGT VK SINGH अपना सामान कम करते जा रहे थे। मुझे किसी ने बताया कि यह नौकरी छोड़ने वाले हैं और डेढ़ साल बीतते-बीतते इन्होंने अपनी विंटर, समर, जंगल ड्रेस वाली यूनिफार्म, पीटी किट, सारे जूते और अन्य सामान बॉक्स में रख दिया। अब अंतिम बार मुझे चंडीगढ़ से दिल्ली जाने के लिए पैक होना पड़ा।

अब मैं उनके साथ ही दिल्ली में ही रहता हूं। कोई कह रहा था कि अब मुझे फिर कभी लोहे की स्ट्रिप से बांधा नहीं जाएगा और न ही मुझे फिर से ट्रक, ट्रेन, बस का मुश्किल और झेलाऊ सफर करना पड़ेगा। हालांकि अब मेरे साथ के तीनों बॉक्स को बेंच दिया गया है। मेरे अंदर का भी ज्यादातर सामान निकाल लिया गया है। अब मेरे साथ Air Veteran Vinay Singh Bais की तीन अलग अलग तरह की यूनिफॉर्म, एक पीटी ड्रेस, एक ओवरऑल, तीन तरह की कैप, दो तरह के चमड़े के जूते (बीएल और एंकलेट), एक पीटी शू, एक काला और एक नीला कंबल, एक नीली दरी, एक सफेद बेडशीट, एक नीली और एक काली बेल्ट, तीन तरह की नेम प्लेट, एक मोटा सा फौजी जैकेट, एक नीला स्वेटर, एक पुराना मग और थाली, एक प्लास्टिक की सफेद रंग की हरे कवर वाली पानी की बोतल, डिप्लोमा की किताबें, तमाम प्रमाण पत्र, कुछ ट्रॉफी और मेडल, कुछ बेहद पुराने पत्र और एक डायरी आज भी मेरे अंदर रखे हुए हैं।

एक दिन Air Veteran Vinay Singh Bais का कोई रिश्तेदार इनके घर आया तो इनसे कहने लगा कि ये क्या कबाड़ तुमने घर में जमा कर रखा है। तुम्हारा इतना बड़ा घर है। इसमें कई अलमारी हैं। बॉक्स वाले बेड हैं। फिर भी तुम इस कबाड़ जैसे बॉक्स को यहां क्यों रखे हुए हो? फिर वह बताने लगे कि अब तो एयर फोर्स भी वायुसैनिकों को बॉक्स की जगह स्टाइलिश किट बैग देने लगी है। नेवी वाले तो वर्षों से इस खटारा बॉक्स की जगह सूटकेस देते आए हैं। अब जिस बॉक्स को फौजी भी नहीं पूछते, तुम सिविलियन होकर उसी बॉक्स को क्यों गले लटकाए हुए हो?? इसे किसी कबाड़ी को बेच क्यों नहीं देते??

उस दिन मैंने Air Veteran Vinay Singh Bais को पहली बार गुस्सा और भावुक एक साथ होते हुए पहली बार देखा था। रिश्तेदार की बात सुनकर इनका चेहरा लाल हो गया था और आंखे कुछ नम सी हो गई थी। वह बहुत धीरे से लेकिन स्पष्ट शब्दों में बोले थे –
“हर पुरानी चीज कबाड़ नही होती। कुछ चीज़ें अनमोल होती हैं इसने जीवन की आपाधापी में मेरा साथ न छोड़ा, तो अब सेटल होने के बाद मैं इससे कैसे पीछा छुड़ा लूं। जब तक मैं इस घर में हूं, यह बॉक्स भी मेरे साथ ही रहेगा।”
#ArmedForcesVeteransDay

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