बिहार : तारापुर नरसंहार 1932 के गुमनाम क्रांतिकारी तुलसी जुलाहा समेत सभी अनाम बलिदानियों को नमन

संजय कुमार तांती “व्योम” पटना। प्रत्येक वर्ष 15 फरवरी को बिहार के मुंगेर जिले के तारापुर में 1932 में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा हुए निर्मम नरसंहार में शहीदों को श्रंद्धाजलि दी जाती है। आजादी के बाद से हर साल 15 फरवरी को तारापुर दिवस मनाया जाता है। स्वतंत्रता संग्राम जब चरम पर था, सन 1931 ईस्वी में भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी देने से देश में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ माहौल काफी उग्र था। गांधी इरविन समझौता भी भंग हो गया था। अंग्रेजों ने कांग्रेस को अवैध संगठन घोषित कर उस पर प्रतिबंध लगा दिया था।

कांग्रेस के प्रमुख बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया था। मुंगेर क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर भी कांग्रेसी नेता गिरफ्तार किए गए थे। बिहार में युद्धक समिति के प्रधान सरदार शार्दुल सिंह कवीश्वर ने संकल्प पत्र जारी किया। इससे कांग्रेसियों और क्रांतिकारी में उन्माद भर गया। संकल्प पत्र में आह्वान किया गया था कि 15 फरवरी 1932 को सभी सरकारी भवनों पर तिरंगा झंडा लहराया जाए।

प्रत्येक थाना क्षेत्र में पांच सत्याग्रहियों का दल झंडा लेकर धावा करेगा, शेष अनेकों कार्यकर्ता दो सौ गज की दूरी पर गुप्त रूप से धावक दल के सहयोग में मनोबल बढ़ाएंगे। इस आव्हान को पूरा करने के लिए सुपौर जमुआ गांव में गुप्त बैठक हुई। जिसमें इलाके भर के स्वतंत्रता सेनानी और स्थानीय देशभक्तों ने हिस्सा लिया था। पूर्व योजना के अनुसार 15 फरवरी दिन सोमवार को दोपहर दो बजे धावक दल सहित क्रांतिकारियों ने तारापुर थाना पर धाबा बोल दिया।

वे लोग तिरंगा हाथों में लिए बेखौफ आगे बढ़ते जा रहे थे। भीड़ तारापुर थाना के इर्द-गिर्द जमा हो रही थी। बड़ा हाट सोमवार का दिन होने के कारण भीड़ वैसे भी अधिक थी। हाट करने वाले आमजन भी भारत माता की जय, वंदे मातरम का जय घोष कर प्रदर्शनकारियों के समूह का हिस्सा बने हुए थे।

मौके पर थाना में अंग्रेज कलेक्टर ई. ओ.ली. और एसपी डब्ल्यू. फ्लैग मौजूद थे, उसने ही निहत्थे भीड़ पर गोलियां चलवा दी। चारों तरफ अफरा-तफरी, चीख-पुकार मच गई। तभी मौका पाकर धावक दल थाना पर तिरंगा फहरा दिया। तारापुर के इस हृदय विदारक गोली कांड में सैकड़ो जान गई, अनेकों घायल हुए। तत्कालीन सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 50 लोग शहीद हुए और सैकड़ो घायल हुए थे।

अंग्रेजी सरकार की क्रूरता के कारण शहीदों को उनके पारिवारिक सदस्यों ने मुकदमा में फंसने के डर से शवों को पहचानने से भी इनकार कर दिया था। घटना के बाद आनन फानन में अंग्रेजों ने शवों को इधर उधर गुम कर दिया और कुछ को वाहनों में लादकर सुल्तानगंज गंगा नदी में बहा दिया। इसलिए मात्र 34 शहीदों को ही साक्षी के रूप में उजागर किया गया।

कुछ आमजन अपना साहस दिखाते हुए इनमें भी मात्र 13 की पहचान कर सके। इन 13 ज्ञात शहीदों में- शुकुल सोनार; तारापुर, बदरी मंडल; धनपुरा, संता पासी; तारापुर, महिपाल सिंह; रमचुआ, शीतल चमार; असरगंज, विश्वनाथ सिंह; छत्रहार, झोंटी झा; सतखरिया, सिंघेश्वर राजहंस; बिहमा, बसंत धानुक; लौदिया, रामेश्वर मंडल; पड़भारा, गैबी सिंह; महेशपुर, अशर्फी मंडल; कसटिकरी तथा चंडी महतो; चोरगांव वासी की पहचान हुई। शेष 21 शहीदों के शवों की पहचान भी नहीं हो पाई।

बाद में तारापुर के सामाजिक कांग्रेसी कार्यकर्ता बासुकीनाथ राय, नंदकिशोर चौबे, चंदर सिंह राकेश, द्वारका प्रसाद सिंह, हित लाल राजहंस, जय मंगल सिंह आदि के प्रयासों से इन बलिदानियों को याद रखा गया। वर्तमान में दिलचस्प मोड़ तब आया जब भाजपा प्रदेश प्रवक्ता जयराम विप्लव ने शहीद दिवस के अवसर पर शहीदों के परिजनों को क्षेत्र में खोज-खोज कर उन्हें सम्मानित करना शुरू किया। इस दौरान कई गुमनाम शहीदों के परिजनों का भी पता चला है।

माहपुर निवासी नवीन तांती (जेपी सेनानी) ने अपने वंश के परदादा तुलसी जुलाहा के तारापुर गोलीकांड में शहीद होने की बात कही। अनुमंडल पदाधिकारी को लिखित रूप से उन्होंने दावा किया कि तुलसी जुलाहा अविवाहित थे। वे घर से बाहर इधर उधर क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न रहा करते थे। 15 फरवरी की घटना के बाद उनके घर नहीं पहुंचने पर उनके भाई मुंशी जुलाहा तथा परिवार वालों द्वारा काफी खोजबीन की गई थी परंतु कहीं कोई पता नहीं लग पाया था।

तब से यह चर्चा मेरे घर परिवार में पूर्वजों द्वारा होता हुआ अब तक के वंश पीढ़ी में हम सबों की जानकारी में है। जयराम विप्लव के प्रयास से इन शहीदों को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने मन की बात कार्यक्रम से देश को बताकर श्रद्धांजलि दिया।

स्थानीय साहित्यकार संजय कुमार तांती “व्योम” ने भी अपनी रचना के माध्यम से किताब लिखकर जन जागृति लाने का काम किया है। विगत वर्ष 2022 में सरकार ने 13 शहीदों की प्रतिमा लगवाई है। संजय व्योम 2006 में तथा विप्लव जी ने भी इन शहीदों की वीरगाथा शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग सरकार से की है।

इस क्षेत्र के जनता की आंतरिक इच्छा है कि यह थाना परिसर शहीद स्मारक, ऐतिहासिक स्थल घोषित हो जाए तो यहां पर पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। इस तरह कह सकते हैं कि तारापुर गोलीकांड देश का दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड की पुनरावृत्ति थी। इस निर्मम नरसंहार के सभी शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि।

संजय कुमार तांती "व्योम" लेखक/कवि साहित्यकार
संजय कुमार तांती “व्योम”
लेखक/कवि साहित्यकार

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