निप्र, पश्चिमी चंपारण : पश्चिमी चंपारण, बेतिया के सिकटा प्रखंड स्थित धनकुटवा ग्राम में हिंदू बुनकरों की संस्था ‘पान एसोसिएशन’ के तत्वावधान में एक बैठक का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्था के सिकटा प्रखंड अध्यक्ष नीतीश कुमार ने किया। इस कार्यक्रम में संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर दास के साथ मुजफ्फपुर जिला इकाई के उपाध्यक्ष अन्नू दास, कोषाध्यक्ष संजय दास व रामेश्वर दास, नरेश दास, अमरेंद्र दास शामिल हुए। बैठक में स्थानीय पान समाज के सम्मानीय वरिष्ठ लोगो की सर्वसम्मति से प्रखंड स्तरीय निम्न पदाधिकारियों की नियुक्ति की गई।
प्रखंड अध्यक्ष : नीतीश कुमार
उपाध्यक्ष : राजकुमार दास
सचिव व मीडिया प्रभारी : अनिल कुमार दास
समेत 6 कार्यकारणी सदस्यों की भी नियुक्ति की गई।
उल्लेखनीय है कि पश्चिमी चंपारण जिले के सिकटा प्रखंड स्थित धनकुटवा गांव, जिसमे पान समाज के वोटरों की संख्या लगभग 1500 है। परंतु सामाजिक विखराव के कारण इस समाज का वहां आज तक एक भी वार्ड सदस्य या मुखिया तक नही बन पाया है। जब यह जानकारी पान एसोसिएशन के पास पहुँची तो यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ।
पान एसोसियेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर दास ने कोलकाता हिंदी न्यूज के संवाददाता को फोन पर बताया कि, चुकी सामाजिक जागरूकता हमारे पान एसोसिएशन के उद्देश्य में शामिल है, इसलिए वहाँ के स्थानीय समाजसेवी नीतीश कुमार दास कहने पर मैंने संस्था की मुजफ्फरपुर इकाई के पदाधिकारीयों को साथ लेकर वहाँ पहुंचा तथा समाज मे व्याप्त गुटबाजी को खत्म करते हुए प्रखंड इकाई का गठन किया साथ ही 2 वार्ड सदस्य एवं एक मुखिया प्रत्याशी की घोषणा वहाँ के समाज की सहमति से करवाने का सफल प्रयास किया गया।
हमारी संस्था पान एसोसियेशन पूरे भारत में और खास तौर पर बिहार में प्रखंड स्तर पर सभी पान-स्वांसी समाज के लोगों को सामाजिक और राजनीतिक रूप से जागरूक करने का काम पिछले कुछ वर्षों से कर रही है।
उल्लेखनीय है कि इन दिनों बिहार पंचायत चुनावों के मद्देनजर पान समाज की राजनीतिक हिस्सेदारी को मजबूत करने के लिए समाज की अनेकों संस्थाएं पंचायत स्तरीय कमिटी का गठन करवाने में लगे हुए हैं। जिससे कि आजाद भारत में भी अब तक राजनैतिक रूप से उपेक्षित हिंदू बुनकर अर्थात पान-स्वांसी समाज को एकबद्ध करके इनका सामाजिक विकाश किया जा सके और इस समाज की भी राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
कारण इस समाज की आर्थिक और राजनीतिक हालत आज भी काफी सोचनीय है। इनके वोट भी बिखरे हुए हैं अतः इस बुनकर समाज जिसे की पान-स्वांसी के नाम से जाना जाता है और पूरे बिहार में इस समाज की अनुमानतः आबादी लगभग सात प्रतिशत होने के बावजूद भी यह समाज आज तक राजनैतिक रूप से हाशिए पर ही रहा है।
जबकि इससे कम आबादी वाले जातियों के पंचायत से लेकर संसद तक तथा संतरी से मंत्री तक भरे पड़े हैं, कारण है इन सभी जातियों की एकजुटता। जबकि पान-स्वांसी समाज एकजुट नहीं होने के कारण आजादी के 74 सालों बाद भी दयनीय हालत में पड़े हुए हैं।
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