भावनानी के व्यंग्यात्मक भाव : उई मां मैं तो अब मर गया

।।उई मां मैं तो अब मर गया।।
किशन सनमुख़दास भावनानी

बड़ी मुश्किल से ईडी, सीबीआई से बचाया था,
गुलाबी पहाड़ जख़ीरा ट्रिक से छुपाकर रखा था।
गुलाबी बंदी की घोषणा से अब फंस गया,
उई मां मैं तो अब मर गया।

पूरी जिंदगी भर भ्रष्टाचार लिया था,
पाप को इग्नोर कर मौज मस्ती किया था।
भविष्य के लिए गुलाबी बचाया गया था,
उई मां मैं तो अब मर गया।

जिंदगी मजे से कटेगी सोचा था,
प्लाट, फ़्लैट में रकम में फस जाऊंगा सोचा था।
गुलाबी हर पल साथ रखने का प्लान धरा रह गया,
उई मां मैं तो अब मर गया।

जब रेड पड़ी एफिडेविट क्लियर हूं दिया था,
गुलाबी क्या एक हरा भी नहीं है बोला था।
क्या करूं कहां जाऊं झूठ पकड़ा गया,
उई मां मैं तो अब मर गया।

भ्रष्टाचार तुझे तड़पाएगा पिताजी ऐसा बोला था,
अय्याशी रोबदारी की मस्ती में मस्त था।
हेकड़ी निकल गई सब धरा रह गया,
उई मां मैं तो अब मर गया।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

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