भावनानी के व्यंग्यात्मक भाव

।।मैं मतदाता मेरी सिर्फ चुनाव में पूछ परख होती है।।
किशन सनमुखदास भावनानी

मैं मतदाता मेरी कहानी निराली होती है
हमेशा चुनाव में मेरी याद आती है
बाकी दिनों मेरी किस्मत ठोकर खाती है
मैं मतदाता मेरी सिर्फ चुनाव में पूछ परख होती है

कत्ल की रात मनीराम से नहलाई होती है
हाथ, पैर जोड़ खूब इज्जताई होती है
राजनीतिक पार्टियां मेरे द्वारे माथा टेकती है
मैं मतदाता मेरी सिर्फ चुनाव में पूछ परख होती है

एजेंसियां हमेशा तरकीब लड़ाकर कुआचरण रोकती है
अबकी बार सी विजिल ऐप से उल्लंघन रोकती है
आचार संहिता रोकने में खूब नियम झोकती है
मैं मतदाता मेरी सिर्फ चुनाव में पूछ परख होती है

चुनाव के समय दिन रात मेरी खूब पूजा होती है
वेज नॉनवेज से खूब आवभगत होती है
फिर पांच साल मेरी किस्मत रोती है
मैं मतदाता मेरी सिर्फ चुनाव में पूछ परख होती है

समाज के लिए जैसे त्योहारों की पर्व नवरात्र
रमजान, गुरुनानक जयंती, क्रिसमस होती है
मेरे लिए महापर्व मतदान की तिथि होती है
मैं मतदाता मेरी सिर्फ चुनाव में पूछ परख होती है

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

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