बंगाल की दुर्गा पूजा यूनेस्को की ‘सांस्कृतिक विरासत’ की सूची में शामिल

कोलकाता/ नयी दिल्ली। एक ओर जहां भारतीय प्रतिभाएं पूरी दुनिया में अपना परचम लहरा रही हैं, वहीं भारतीय पर्वों को भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मान्यता मिल रही है।शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र के निकाय यूनेस्को ने कोलकाता की विश्व प्रसिद्ध दुर्गा पूजा को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता देने की घोषणा बुधवार को की। यूनेस्को ने अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल पर जारी संदेश में लिखा,“कोलकाता की दुर्गा पूजा को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया है। भारत को बधाई।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूनेस्को की घोषणा पर प्रसन्नता जताते हुए ट्वीटर पर लिखा, “हर भारतीय के लिए यह गौरव और उत्साह का विषय है।”

मोदी ने कहा, “दुर्गा पूजा हमारी उच्च परंपराओं और मूल्यों को प्रदर्शित करती है। हर व्यक्ति को कोलकाता की दुर्गा पूजा का आनंद उठाना चाहिए।” यूनेस्को की पेरिस में चल रही अंतर सरकारी समिति की 16वीं बैठक में कोलकाता की दुर्गा को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करने वाली अमूर्त परंपराओं की सूची मे शामिल करने का फैसला किया गया है। यह बैठक 13 दिसंबर को शुरू हुई और 18 दिसंबर को संपन्न होगी।

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में बड़ी धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाई जाती है। इसकी गूंज दुनियाभर में सुनाई देती है और खासतौर पर बंगाल के लोग दुर्गा पूजा को अपने सबसे बड़े त्योहार के रूप में भी मनाते हैं। इस अवसर पर कोलकाता और अन्य बड़े शहरों में दुर्गा पंड़ालों छटा देखते बनती है। कोलकाता की दुर्गा पूजा को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता देने का प्रस्ताव पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से संयुक्त राष्ट्र संगठन को भेजा गया था।

एक बयान में यूनेस्को ने कहा हर साल सितंबर से अक्तूबर में दस दिनों तक मनाया जाने वाला दुर्गा पूजा केवल पूजा नहीं बल्कि व्यक्ति के ‘अपनी जड़ों तक लौटने का पर्व’ है।बयान के अनुसार, पूजा से कई दिनों पहले गंगा के किनारे से चिकनी मिट्टी लाकर मूर्ति बनाने का काम शुरू होता है। असल पूजा महालया के पहले दिन शुरू होती है जब सबसे पहले मूर्ति की आंखें बनाई जाती हैं। दस दिनों के बाद मूर्ति को वापस पानी में विसर्जित कर दिया जाता है।

पूजा के दस दिनों के दौरान पूरे शहर में पूजा पाडंल बनाए जाते हैं जबां दुर्गा की मूर्ति सजाई जाती है और सार्वजनिक तौर पर पूजा कार्यक्रम का आयोजन होता है। सभी धर्मों के लोग इन कार्यक्रमों में शामिल होते हैं।यूनेस्को ने कहा है कि ये त्योहार धर्म और कला के सार्वजनिक प्रदर्शन का बेहतरीन उदाहरण है और कलाकारों के लिए अपनी कला के प्रदर्शन का शानदार मौक़ा है।

बता दें कि यूनेस्को ने दुनियाभर की कुछ खास अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों की बेहतर सुरक्षा और उनके महत्व के बारे में दुनिया को जागरुक करने के लिए 2008 में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची बनाई थी। दुनिया भर से आए प्रपोजल्स को लेकर यूनेस्को की समिति उनके प्रोजेक्ट्स और प्रोग्राम्स की समीक्षा के बाद इस लिस्ट में शामिल करने पर फैसला करती है। कोलकाता की दुर्गा पूजा को इस बार भारत की ओर से इस लिस्ट के लिए नामांकित किया गया था।

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