भ्रष्टाचार विरोधी सेल खोलने के बंगाल के राज्यपाल के फैसले से राज्य सरकार नाराज

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस के भ्रष्‍टाचार के मुद्दों पर लोगों से सीधे जानकारी हासिल करने के लिए राजभवन में एक विशेष सेल खोलने के फैसले को लेकर राजभवन और राज्य सचिवालय के बीच खींचतान बढ़ती दिख रही है। प्रस्तावित भ्रष्टाचार विरोधी सेल राज्य में हाल ही में संपन्न पंचायत चुनावों के दौरान राजभवन परिसर के भीतर खोले गए “शांति कक्ष” से संचालित होगा, जिसके माध्यम से अधिकारियों को चुनाव संबंधी हिंसा और रक्‍तपात की घटनाओं के बारे में जनता से सीधी शिकायतें मिली थीं।

राज्यपाल ने बुधवार को कहा, “भ्रष्टाचार विरोधी सेल की स्थापना मूल रूप से विश्वविद्यालय शिक्षा में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए की गई है क्योंकि राज्यपाल राज्य के विश्‍वविद्यालयों के कुलाधिपति हैं। लेकिन भ्रष्टाचार एक सर्वव्यापी मुद्दा है। जब भी किसी को भ्रष्टाचार के प्रयास का पता चलता है तो वे इसकी सूचना सेल को देने के लिए स्वतंत्र हैं। हम उन शिकायतों का विश्लेषण करेंगे, मामले को उचित अधिकारियों के समक्ष उठाएंगे और मामले पर कार्रवाई भी करेंगे। यह एक तरह की नैतिक पुलिसिंग होगी। कानूनी तौर पर संबंधित विभाग भी आवश्यक कार्रवाई करेगा।”

राज्य सरकार को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए राज्य के शिक्षा क्षेत्र से संबंधित राज्यपाल के विभिन्न फैसलों के खिलाफ राज्य सरकार के सुप्रीम कोर्ट जाने के फैसले की घोषणा के 48 घंटे के भीतर यह फैसला आया है। अब भ्रष्टाचार निरोधक सेल खोलने के फैसले से राज्य सरकार की नाराजगी और बढ़ गई है। राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु के अनुसार यह शिक्षा प्रणाली पर पूर्ण नियंत्रण करने का एक स्पष्ट प्रयास है।

उन्‍होंने कहा, “गवर्नर हाउस की ओर से इस तरह का हस्तक्षेप सभी गैर-भाजपा शासित राज्यों में हो रहा है। लेकिन पश्चिम बंगाल में उस हस्तक्षेप ने अभूतपूर्व रूप ले लिया है। उन्होंने राज्य शिक्षा विभाग पर चर्चा किए बिना इस सेल को खोलने का फैसला किया है, जिससे ऐसा लगता है कि वह पहले ही मानकर चल रहे हैं कि विभाग भ्रष्टाचार का अड्डा है। हालाँकि, राज्य भाजपा नेतृत्व ने कहा है कि राज्यपाल को अपने कार्यालय में रिकॉर्ड रखने का पूरा अधिकार है।

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