बंगाल चुनाव : ममता और जीत के बीच क्यों बढ़ता जा रहा है फासला ?

कोलकाता : बंगाल चुनाव जीतना ममता बनर्जी के लिए मुश्किल होता जा रहा है। टीएमसी से नेताओं का भारी संख्या में पलायन इस बात का साफ संकेत है। ममता को लोग चुनाव से ठीक पहले ठीक उसी तरह छोड़ रहे हैं जैसे बंगाल में 32 सालों से सत्ता पर काबिज सीपीएम को उसके नेता 2009 में छोड़ने लगे थेे। ममता के वोटों में सेंधमारी से ममता की परेशानी तो बढ़ने ही लगी है। ज़ाहिर है इन वजहों से ममता के लिए सत्ता में वापसी की राह दिन प्रतिदिन मुश्किल होती जा रही है। सरकार और पार्टी में तानाशाही रवैया पार्टी को अंदर से खोखला कर चुका है. पार्टी के एमपी और एमएलए अपने इलाके की समस्या सीएम के पास रखने से कतराते हैं। कहा जाता है कि कैबिनेट मीटिंग में भी मिनिस्टर रबर स्टांप की तरह काम करने पर मजबूर हैं। उन्हें कैबिनेट में किसी भी मसौदे पर अपने विचार रखने का मौका नहीं दिया जाता है, बल्कि उनसे बिना चर्चा किए सिर्फ हस्ताक्षर की उम्मीद की जाती है। हाल के दिनों में राजीव बनर्जी जो ममता के कैबिनेट में मंत्री रह चुके हैं वो लोगों के बीच ममता के डिक्टेटोरियल रवैये का जिक्र खुलकर करते हैं।

इतना ही नहीं पार्टी में कभी नंबर दो की हैसियत रखने वाले शुभेन्दु अधिकारी ने भी पार्टी के अंदर अभिषेक बनर्जी के भारी दखल से परेशान होकर, पार्टी से दरकिनार करना ही मुनासिब समझा। मुकुल रॉय, सौमित्र खान, अनुपम हाजरा और मिहिर गोस्वामी जैसे नेताओं की ऐसी लंबी लिस्ट है जो सालों ममता के साथ रहकर बीजेपी की नैया पर सवार होने में ही अपनी भलाई समझी।

जनप्रतिनिधियों में घुटन जैसी स्थिति : ममता के सामने तकलीफ बताए जाने पर ममता जनप्रतिनिधियों को नौकरशाह के सामने ही डांट देती हैं, जिससे सांसद और विधायक अपने ही जिले के अधिकारी के सामने अपमानित महसूस करते हैंं। बरूईपुर के एमएलए निर्मल चंद्र मंडल और ज्वॉयनगर की सांसद प्रतिमा मंडल की मांग पर ब्यूरोक्रेट्स के सामने मिली झाड़ पार्टी में जनप्रतिनिधियों की असलियत बयां करती हैं।एमएलए निर्मल चंद्र मंडल ने अपने इलाके में एक पुलिस स्टेशन की मांग को पूरा नहीं करने की बात सीएम के सामने जब रखी तो उन्हें ये कहकर ममता ने चुप करा दिया कि उनके (ममता) शासन में जितना हुआ है उतना किसी राज्य में नहीं. ममता ने गुस्से से एमएलए को कहा कि पुलिस स्टेशन बनाना ही काफी नहीं बल्कि पुलिस की बहाली भी करनी पड़ेगी जो वित्तीय कोष के भारी घाटे की वजह से फिलहाल संभव नहीं है. विधायक निर्मल चंद्र मंडल ममता की डांट मिलते ही चुप होकर बैठ गए।

वैसे बंगाल की राजनीति को समझने वाले मनोरंजन विश्वास कहते हैं कि राज्य में जनप्रतिनिधियों की नौकरशाह पर बहुत ज्यादा तरजीह शासन व्यवस्था में अराजकता पैदा करती हैं। इसलिए ममता बनर्जी सीपीएम के शासन से सीख लेकर संगठन और ब्यूरोक्रेट्स के बीच बेहतर समन्वय की कोशिश करती रही हैं लेकिन उनका ये प्रयास कामयाब होता नजर नहीं आता है।

कट मनी के नाम पर भ्रष्टाचार चरम पर : सत्ता में आने के बाद टीएमसी नेताओं में कांट्रेक्ट की मारामारी एक और वजह है, जिससे जनता के बीच बिना पैसे का काम नहीं होने को लेकर चर्चा आम है. ठेकेदार से स्थानीय नेता ऐन केन प्रकारेण भारी कमीशन की उगाही कैसे करते हैं इसको लेकर टीएमसी सरकार को विपक्ष अपने तरीके से घेर रही है. यही वजह है कि कमीशन के नाम पर कटमनी नाम से व्यवस्था में व्याप्त चलन के चलते लोगों में नाराजगी है। ममता ने इसे सालों तक नजरअंदाज किया लेकिन साल 2019 के चुनाव के बाद वहां के लोकल इलेक्शन में ममता ने खुद पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच माना कि कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा कटमनी के रूप में लिया गया कमीशन खराब चलन है और इसे पार्टी बर्दाश्त नहीं करेगी. बीजेपी के प्रवक्ता भाष्कर घोष कहते हैं कि यहां कोयला, खदान और सौ दिन के काम, होम फॉर ऑल जैसी योजनाओं में कट मनी सिस्टम का हिस्सा बन चुका है और इसको लेकर जनता में भारी नाराजगी है।

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