उत्तर दिनाजपुर। मकर संक्रांति आते ही चावल का आटा बनाने वाली ढेकी का मान और बढ़ जाता है। आधुनिकता के स्पर्श के साथ पारंपरिक बंगाली संस्कृति न केवल शहरों में बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी लुप्त होती जा रही है। इस्लामपुर शहर के पालपाड़ा में सुषमा पाल व उनके दोस्त के घर मोहल्ले की औरतें सुबह से ही डाली, सूप, छलनी लेकर पहुंच जाती है। सभी मकर संक्रांती के लिए नए चावल ढेकी में पीसने के लिए यहां आती हैं। कोई पीस रहा है, कोई आधे टूटे चावलों को कूट रहा है। अन्य चावल से भरी टोकरी के साथ अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। यह नजारा संक्राती के पूर्व संध्या की होती है। इस दिन ढेकी की आवाज से आस-पड़ोसियों की नींद खुलती है।
मकर संक्रांती पर पीठा बनाने के लिए चावल का चूरा एक आवश्यक सामग्री है। चावल के आटे की आपूर्ति के लिए आज की तारीख में मुट्ठी भर घरों में ही यह ढेकी उपलब्ध होते हैं जहां चावल का चुड़ा बनाया जाता है। ग्रामीण बंगाल की प्राचीन परंपरा अब इस्लामपुर में व्यावहारिक रूप से विलुप्त हो चुकी है। वर्तमान में आधुनिकता के स्पर्श से बंगाल का यह आकर्षण लुप्त होने को है। पहले अग्रहायण-पौष के महीने में खेत में धान की कटाई के साथ-साथ नए धान के कूटने या चावल पीसने की आवाज घर-घर तक सुनाई देती थी। इसके बाद मकर संक्रांती के दिन उस चावल के चूरे का पीठा और पुली बनाने की धुन पड़ती है।
मालदा में मकर संक्रांति में पीठा बनाने की तैयारी जोरों पर
मालदा। मकर संक्रांति को बंगाल में पीठा पर्व के रूप में भी जाना जाता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार बंगाल में पौष संक्रांती मनाया जाता है। पौष संक्रांति के दिन ग्रामीण क्षेत्रों में नई फसल घर आने के बाद धान के चावल से पीठे पुली बनाकर ‘पौष पर्व’ मनाया जाता है। ताजे चावल, खजूर के गुड़ और पाटली से तरह-तरह के पारंपरिक पीठे बनाए जाते हैं, जिनमें चावल के चूरे, नारियल, दूध और खजूर के गुड़ की जरूरत होती है। शनिवार को ग्रामीण क्षेत्र के बामनगोला प्रखंड में ऐसी तस्वीर कैद हुई, हर कोई पिठेपुली बनाने में जुटा है पूरे साजो सामान के साथ।
गौरतलब है कि ग्रामीण इलाकों में महिलाएं सात दिनों तक पिठेपुली का सामान बनाने में जुटी रहती हैं। पौष संक्रांति के अवसर पर गांव में घर-घर जाकर पिठेपुली सहित विभिन्न खाद्य सामग्री बनाने में अत्यधिक व्यस्तता देखी गयी। पुरानी परंपरा के अनुसार महिलाएं चावल को ढेकी में पीसती हैं और संक्रांती से पूजा-पर्वण के जरिए पीठा पुली बनाने का काम शुरू कर देती हैं। मालूम होता है कि वे कई दिनों से इन सामग्री को बनाने में लगी हुई हैं।