एक थे यूपी के कथावाचक बाबा सूरदास

आशा विनय सिंह बैस, रायबरेली। लगभग तीन दशक पहले की बात होगी। हमारे गांव बरी (रायबरेली) में प्रतिवर्ष श्री शतचंडी महायज्ञ और रामलीला हुआ करती थी। दिन में यज्ञ, शाम को कथा-प्रवचन और रात को रामलीला का मंचन होता था। कथा-प्रवचन हेतु दूर-दराज से प्रसिद्ध कथावाचक आया करते थे। उन्हीं में से एक थे सूरदास जी। उनकी बड़ी प्रसिद्धि थी। लोग कहते कि सूरदास जी ने क्या गला पाया है? हारमोनियम कितनी मधुर बजाते हैं? भगवान की कृपा है उन पर, आंखे छीन ली लेकिन गायन, वादन, रामभक्ति जैसे सब गुण दे डाले। लोग उन्हें ‘यूपी का रवींद्र जैन’ कहते थे।

सूरदास जी सरल व्यक्ति थे। उस जमाने मे अम्बेसडर कार से आते थे। वह लोगों से कहते कि दिखावे से दूर रहो शायद इसीलिए गांव में कोई शौचालय नहीं होने के कारण टेंट लगाकर शौचालय को जाते थे। अपने भक्तों को ‘माया महा ठगिनी हम जानी’ का प्रवचन देने वाले सूरदास बाबा आज से तीन दशक पूर्व 400 रुपये प्रति घंटे में भक्तों को कथा सुनाते थे। वह कथा कम सुनाते-
“जब से हुई है शादी, आँसू बहा रहा हूँ।
आफत गले पड़ी है, उसको निभा रहा हूँ।
मैडम जी बीए पास हैं, वो काम क्या करेंगी, नहा के लक्स साबुन की खुशबू से तर रहेंगी।
उनसे बचे जो टुकड़े, उनसे नहा रहा हूँ।
आफत गले पड़ी है…”

जैसे लोकप्रिय गाने हारमोनियम के सुमधुर संगीत के साथ अधिक सुनाते थे। इस तरह युवाओं को खुद पढ़ने लिखने और पढ़ी-लिखी लड़की से शादी करने के लिए हतोत्साहित करते थे।

उनके मसालेदार प्रवचन का परिणाम यह होता कि जहाँ बाकी कथाओं में सिर्फ वृद्ध और धार्मिक लोग जुटते, सूरदास जी की कथा में युवा, वृध्द, नर, नारी सभी की खूब भीड़ रहती। क्योंकि उनके पास सबके लिए कुछ मसाला होता था।

बस उनमें एक ही कमी थी कि अपनी मार्केटिंग ठीक से नहीं कर पाए। वह छोटे बाबा थे इसीलिए अपने सत्संग में लाखों तो क्या हजारों की भी भीड़ इकट्ठा नहीं कर पाए। अपनी प्राइवेट आर्मी नहीं बना पाए। किसी रामद्रोही, जातिवादी नेता का संरक्षण नहीं जुटा पाए। किसी जाति विशेष को अपना वोट बैंक नहीं बना पाए।

वह इतने बुड़बक बाबा थे कि कोई चमत्कार तक नहीं कर पाए। कैंसर, हार्ट फेल्योर जैसी बीमारियों का अपने हैंडपंप का पानी पिलाकर इलाज नहीं कर पाए। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके अपने हाथों में चक्र नहीं दिखा पाए। देश भर में फाइव स्टार आश्रम नहीं बना पाए। खुद को भगवान विष्णु का, भोलेनाथ शंकर का अवतार घोषित नहीं कर पाए।

शायद इसीलिए उनके चरण रज लेने के लिए लाखों की भीड़ कभी उनके पीछे नहीं भागी।
और
उनमें से सैकड़ों भक्त ‘यही मेरे भगवान हैं- यही मेरे पालनहार हैं’ कहते-कहते यमलोक नहीं पहुंच गए।

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