झूठ की आत्मकथा सच की कलम से 

डॉ. लोक सेतिया, स्वतंत्र लेखक और चिंतक

दरबार में बुलावा तमाम लोगों को नसीब की बात लगता होगा मुझे समझ ही नहीं आया चिंता होने लगी शामत आई कि कयामत आने वाली है। सबने कितनी बार हिदायत दी थी सच कहना लिखना इस युग में ठीक नहीं है पर मुझसे झूठ की महिमा गाई नहीं जाती सर कटाना मंज़ूर झुकाना नहीं सत्ता की चौखट पर। दिल्ली का हो या कहीं और शहर राज्य की राजधानी का खुला दरबार चाहे बंद दरवाज़े की महफ़िल नहीं गये बुलावा भी नहीं मिला कभी। कहा गया बेहद महत्वपूर्ण लेखकीय कार्य की खातिर आपकी सेवा की ज़रूरत है अवश्य पधारें। जो भी होगा देखा जाएगा सोच कर हाज़िर हुए मगर आदत है सर नहीं झुकाया नमस्कार कह कर सामने बैठ गए। चाय पिलाने को पूछा उनकी चाय का कहते हैं जवाब नहीं जिसने इक प्याली पीकर देखी याद रही और चाय की चाहत उनके पास ले जाती रहती है। मैंने कहा नहीं मुझे इच्छा नहीं है चाय ठंडा की औपचारिकता छोड़ बताएं मुझसे क्या बात लिखानी है। उन्होंने सोने चांदी के कलम सामने रख कर समझाया ऐसी कलमों से नवाज़ा जाएगा आपको हमारी आत्मकथा लिखनी है। मैंने बताया ये काम कथाकार इतिहासकार का है मैं तो व्यंग्यकार हूं तीखी बात लिखना आदत है। और उन लिखने वालों में से हर्गिज़ नहीं जो सरकारी ईनामात की चाहत में सत्ता की कीमती कलमों से जो गरीबों के लहू से भरी होती हैं शासकों का गुणगान करने वाला इतिहास लिखते हैं और शोहरत की बुलंदी को छू लेते हैं। मेरे पास इक आईना है जिस में हर किसी की असली सूरत दिखाई देती है। दर्पण झूठ न बोले हंस ले चाहे रो ले। 

 
 जाने क्या सोचकर सरकार ने मुझे अति गोपनीय निजी कक्ष में चलने को कहा और बोले लेखक जी चिंता मत करो जैसे निडरता पूर्वक बात कही है उसी तरह मुझे अपना आईना दिखलाओ अकेले में। कहने लगे मैंने कैमरों का कमाल बहुत देखा है शौक़ीन निजाज़ लोग रंगीन शानदार महंगे लिबास पहन कर तस्वीर बनवाते हैं हसीन महिलाओं की तरह अपनी सुंदरता पर लट्टू हो जाते हैं। सभी को लगता है ऊपरवाले ने मुझसे बढ़कर खूबसूरत कोई दुनिया में नहीं बनाया है। मगर सच का आईना सुनते रहे हैं असलियत दर्शाता है अपने आप को कोई देख नहीं सकता और बाज़ार में आजकल वही आईने मिलते हैं जो बिकते हैं और खरीदार को बड़ा खूबसूरत बतलाते हैं सोशल मीडिया टीवी अख़बार जैसे झूठे दर्पण मैंने भी खरीद कर अपनी महिमा का गुणगान करवाया है शोहरत हासिल की है मगर जाने क्यों कभी कभी अपने को नींद में देखकर पसीने पसीने हो जाता डरावना ख़्वाब जब नींद छीन लेता है। पहली बार उन्होंने शपथ खाई सच को सुनकर संयम नहीं खोने का वादा किया। 
 
मैंने सच दिखाना शुरू किया , सत्ता पर तमाम तरह के लोग होते रहे हैं। गंभीर स्वभाव वाले दर्द की बात सोचने वाले निराशा को आशा में बदलने के जीवट वाले और शाही ढंग से राजा बनकर बंसी बजाने वाले भले देश आग की लपटों में घिरा हो। लेकिन जैसे आजकल लोग मनोरंजन और समय बिताने को ऐसे टीवी शो सीरियल और फ़िल्में देखना पसंद करते हैं जिन में कोई ज़िंदगी और समाज की गंभीर चिंतन की बात नहीं हो बस हंसने ठहाके लगाने की बात हो। बेशक घटिया बेहूदा चुटकले हों या गंदी अश्लील हरकतों को देख कर मज़ाक़ के नाम पर नग्नता को बढ़ावा देना। ऐसे में आप मिले जो दिल खुश करने वाली अच्छी अच्छी बातें कहने का हुनर जानते हैं। हास्य कलाकार की सफलता इसी में होती है कि लोग उसकी झूठी बेबुनियाद कही बात को भी सच समझते हैं। बच्चे स्कूल नहीं जाना चाहते तभी पेट दर्द होने लगता है लगता है मेरे भाई की तरह आपकी आदत होगी बचपन में अगर पढ़ाई की हो तो। हास्य विनोद जीवन में ज़रूरी है मगर आपने हर चीज़ को मज़ाक बनाकर ठीक नहीं किया है। चार्ली चैपलिन की उलटी सीधी हरकतें दर्शक को हंसाती थीं मगर आपने हर कीमती चीज़ से लेकर संसाधन संस्थाओं संगठन तक को तहस नहस किया है और समझते हैं कितना मज़ा आया है ये उपहास की नहीं समाज की चिंता की बात है। 
 
खोटे सिक्के की कहानी है जिसे पिता ने संभाल कर तिजोरी में इक थैली में रख छोड़ा था। किसी को ठगना नहीं धोखा नहीं देना और शर्मिंदा नहीं होना किसी को देकर उस से धोखेबाज़ कपटी नहीं कहलाना पसंद नहीं था। मोह छोड़ नहीं सकते थे बेटा बेटा होता है चाहे खोटा सिक्का ही हो। कितने खोटे सिक्के शादी के बाज़ार में मुंह मांगे दाम पर बिकते हैं। बेटी देने वाले पछताते हैं मगर दामाद और बेटी की ससुराल का समंध निभाने को खामोश रहना पड़ता है। चुनाव में गलती जनता से हो जाती है नेता पहले सेवक बनने की बात कहते हैं जीत कर शासक समझने लगते हैं। जनता भरोसा करती है नेता कपट करते हैं बात से मुकर जाते हैं। आत्मकथा लिखना आसान नहीं है  खुद को सच्चाई के आईने में देख कर लोग सोचते हैं ये मैं नहीं कोई और है। मगर शायद आपकी आत्मकथा का शीर्षक मैं सुझा सकता हूं। विश्व के सबसे बड़े बहरूपिये का शासन। हमने इकरार नहीं किया उन्होंने भी इसरार नहीं किया , उन्होंने कोई चमत्कार नहीं किया अलविदा करते समय नमस्कार नहीं किया ये अत्याचार नहीं किया। फिर मिलने की कोई तारीख नहीं तय की फिर भी शायद बात आधी अधूरी है इक और मुलाक़ात ज़रूरी है।

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