।।प्रकृति।।
अशोक वर्मा “हमदर्द”
मानव मोह जब से गहराया
भौतिक सुख ने ध्वज लहराया,
प्रकृति के विहंगम रूप को
तब तक मानव झेलेगा,
जब तक मनुष्य प्रकृति से खेलेगा।
होगा समय और भी भारी
पटे तालाब वृक्ष कट गई सारी,
ऑक्सीजन कम पड़ गये प्रकृति में
शीतकाल में भी मनुज गर्मी झेलेगा,
जब तक मनुष्य प्रकृति से खेलेगा।
मत थको तुम चलो अकेले
छोड़ो भोग विलासी झमेले,
आगे बढ़कर वृक्ष लगाकर
फल फूल ऑक्सीजन बहुत कुछ पाएगा,
जब मनुज चारो तरफ हरियाली लगाएगा।।