अनमोल रिश्ता (लघुकथा) : गोपाल नेवार, ” गणेश”

कॉलोनी में नये आए पड़ोसी ने रामबदन जी से जिज्ञासा किया – ” मैं कई दिनों से देख रहा हूँ आप दोनों पति-पत्नी उस तस्वीर के सामने नित्य श्रद्धांजलि दिया करते है। मैं जानना चाहता हूँ वे कौन है । ”
उत्तर में रामबदन जी ने कहा – ” ये मेरे कोई रिश्तेदार नहीं न ही मेरे कोई अपने है पर हम इन्हें सबसे निकट के रिश्तेदार के रूप में या सच कहूँ तो ईश्वर के रूप में पूजते है। ”
” भला ऐसा क्यों ? ”
संक्षिप्त में कहा – ” एक रात दो अपरिचित युवक एवं युवती हमारे घर उपस्थित हुए और आश्रय देने की प्रार्थना करने लगे। हम उहापोह की स्थिति में थे पर अन्त में उन्हें अपने घर में शरण दिया । उन्हीं के द्वारा यह मालुम हुआ कि रात में सफर के दौरान ट्रेन में डकैती हो गई थी। इनके सभी सामान लूट लिए गए थे। कुछ देर उपरान्त लुटेरों के दल ने मेरे घर पर आक्रमण कर दिया तथा सामान लूटना शुरू किया । दोनों ने डाकुओं को पहचान लिया, समय न गँवाते हुए दोनों ने पास में रखी धारदार कटारी से डाकुओं पर आक्रमण कर दिया । कई डाकू वहीं ढ़ेर हो गए पर वे दोनों भी मारे गए। हमने ही उनका अंतिम संस्कार किया । उसी दिन से हम उन्हें श्रद्धांजलि देते आए है और अंतिम समय तक हम श्रद्धांजलि देते रहेंगे। “

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